धार्मिक विषयों पर बनी बॉलीवुड फिल्में जिनपर खड़ा हुआ विवाद!
बॉलीवुड फिल्में आमतौर पर मनोरंजन का एक ऐसा पैकेट होती हैं, जिनमें गाने, डांस, रोमांस और स्टंट सीन भरे होता है। कहा जाता है कि फिल्में हमारे समाज का आईना होती हैं। इसलिए कुछ विवादित मुद्दों पर भी फिल्ममेकर्स फिल्में बनाने से नहीं चूकते।
By Tilak RajEdited By: Updated: Sat, 11 Apr 2015 11:15 AM (IST)
नई दिल्ली। बॉलीवुड फिल्में आमतौर पर मनोरंजन का एक ऐसा पैकेट होती हैं, जिनमें गाने, डांस, रोमांस और स्टंट सीन भरे होता है। कहा जाता है कि फिल्में हमारे समाज का आईना होती हैं। इसलिए कुछ विवादित मुद्दों पर भी फिल्ममेकर्स फिल्में बनाने से नहीं चूकते। ऐसी फिल्में हमारे समाज की कुरीतियों पर कटाक्ष करती हैं। इसलिए कई लोग इन पर सवाल उठाते हैं और विवाद खड़ा हो जाता है। इस हफ्ते रिलीज हुई फिल्म 'धर्म संकट में' ऐसे ही विवादित मुद्दे पर बनी फिल्म है।
इसे भी पढ़ें: परेश रावल बनेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी!धर्म संकट में
धर्म हमारे समाज का अहम हिस्सा है। शायद इसलिए फिल्ममेकर ने इस मुद्दे को अपनी फिल्म के जरिए उठाया है। 'धर्म संकट में' ब्रिटिश कॉमेडी फिल्म 'द इनफिडेल' से स्पष्ट रूप से प्रेरित है। मूल फिल्म की तरह इस फिल्म में भी धर्म और धार्मिक पहचान के संकट का चित्रण कॉमिकल रखा गया है। ऐसी फिल्मों के लिए परेश रावल उपयुक्त कलाकार हैं। और उन्होंने धर्मपाल के किरदार को अच्छी तरह निभाया है। निर्देशक फुवाद खान ने भारतीय संदर्भ में यहूदी और मुसलमान चरित्रों की मूल कहानी को हिंदी और मुसलमान चरित्रों में बदल दिया है। उन्होंने मुसलमानों के बारे में प्रचलित धारणाओं और मिथकों पर संवेदनशील कटाक्ष किया है। हिंदी फिल्मों के इतिहास में इस विषय पर अनेक फिल्में बनी हैं कि इंसान पैदाइशी अच्छा या बुरा नहीं होता। उसके हालात और परवरिश ही उसके वर्तमान के कारण होते हैं।इसे भी पढ़ें: सलमान की इस फिल्म के लिए करना पड़ेगा दो साल इंतजार!
धर्म हमारे समाज का अहम हिस्सा है। शायद इसलिए फिल्ममेकर ने इस मुद्दे को अपनी फिल्म के जरिए उठाया है। 'धर्म संकट में' ब्रिटिश कॉमेडी फिल्म 'द इनफिडेल' से स्पष्ट रूप से प्रेरित है। मूल फिल्म की तरह इस फिल्म में भी धर्म और धार्मिक पहचान के संकट का चित्रण कॉमिकल रखा गया है। ऐसी फिल्मों के लिए परेश रावल उपयुक्त कलाकार हैं। और उन्होंने धर्मपाल के किरदार को अच्छी तरह निभाया है। निर्देशक फुवाद खान ने भारतीय संदर्भ में यहूदी और मुसलमान चरित्रों की मूल कहानी को हिंदी और मुसलमान चरित्रों में बदल दिया है। उन्होंने मुसलमानों के बारे में प्रचलित धारणाओं और मिथकों पर संवेदनशील कटाक्ष किया है। हिंदी फिल्मों के इतिहास में इस विषय पर अनेक फिल्में बनी हैं कि इंसान पैदाइशी अच्छा या बुरा नहीं होता। उसके हालात और परवरिश ही उसके वर्तमान के कारण होते हैं।इसे भी पढ़ें: सलमान की इस फिल्म के लिए करना पड़ेगा दो साल इंतजार!
पीके
आमिर खान और अनुष्का शर्मा की फिल्म 'पीके' में भक्ति और आस्था के नाम पर चल रहे गोरखधंधे पर कटाक्ष किया गया था।धर्माडंबर और अहंकार में मची लूटपाट और दंगों से भरी घटनाओं के इस देश में दूर ग्रह से एक अंतरिक्ष यात्री आता है और यहां के माहौल में कनफुजियाने के साथ फ्रस्टेटिया जाता है। वह जिस ग्रह से आया है, वहां भाषा का आचरण नहीं है, वस्त्रों का आवरण नहीं है और झूठ तो बिल्कुल नहीं है। सच का वह हिमायती, जिसके सवालों और बात-व्यवहार से भौंचक्क धरतीवासी मान बैठते हैं कि वह हमेशा पिए रहता है, वह पीके है। धर्म के नाम पर चल रही राजनीति और तमाम किस्म के भेदभाव और आस्थाओं में बंटे इस समाज में भटकते हुए पीके के जरिए हम उन सारी विसंगतियों और कुरीतियों के सामने खड़े मिलते हैं, जिन्हें हमने अपनी रोजमर्रा जिंदगी का हिस्सा बना लिया है। आदत हो गई है हमें, इसलिए मन में सवाल नहीं उठते। हम अपनी मुसीबतों के साथ सोच में संकीर्ण और विचार में जीर्ण होते जा रहे हैं। राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी की कल्पना का यह एलियन चरित्र पीके हमारे ढोंग को बेनकाब कर देता है।दोजख : इन सर्च ऑफ हेवेन
निर्देशक जैगम इमाम ने अपने ही लिखे उपन्यास 'दोजख' पर बनाई है यह फिल्म और इसका टाइटल भी इसके नाम पर ही रखा है, दोजख : इन सर्च ऑफ हेवेन। फिल्म की कहानी कुछ इस तरह है। एक मुस्लिम मौलवी (ललित मोहन तिवारी) होता है, जिसे सभी प्यार से चचा के नाम से पुकारते हैं। वह काफी परेशान रहता है, क्याेंकि उसका 12 साल का इकलौता बेटा जॉन मोहम्मद (गैरिक चौधरी) लापता हो जाता है, जिसे वह प्यार से जानू बुलाता है। वैसे तो वह पैदा तो मुस्लिम परिवार में हुआ होता है, लेकिन उसकी दिलचस्पी ज्यादा हिंदू धर्म में होती है। वह मंदिर के पुजारी से घंटों बातें करता है, रामलीला में हनुमान का किरदार निभाता है और गंगा के घाट पर प्रवचन भी सुनता है। मगर मौलवी अपने बेटे की इस आदत की वजह से उस पर काफी गुस्सा करता है। जब तक जानू की अम्मी जिंदा होती है, दोनों बाप-बेटे के बीच सुलह कराती है, मगर एक हादसे में जानू के अम्मी की मौत हो जाती है। इसके बाद कई भावुक घटनाएं घटती हैं, जिन्हें बाकी की फिल्म में दिखाया गया है।
आमिर खान और अनुष्का शर्मा की फिल्म 'पीके' में भक्ति और आस्था के नाम पर चल रहे गोरखधंधे पर कटाक्ष किया गया था।धर्माडंबर और अहंकार में मची लूटपाट और दंगों से भरी घटनाओं के इस देश में दूर ग्रह से एक अंतरिक्ष यात्री आता है और यहां के माहौल में कनफुजियाने के साथ फ्रस्टेटिया जाता है। वह जिस ग्रह से आया है, वहां भाषा का आचरण नहीं है, वस्त्रों का आवरण नहीं है और झूठ तो बिल्कुल नहीं है। सच का वह हिमायती, जिसके सवालों और बात-व्यवहार से भौंचक्क धरतीवासी मान बैठते हैं कि वह हमेशा पिए रहता है, वह पीके है। धर्म के नाम पर चल रही राजनीति और तमाम किस्म के भेदभाव और आस्थाओं में बंटे इस समाज में भटकते हुए पीके के जरिए हम उन सारी विसंगतियों और कुरीतियों के सामने खड़े मिलते हैं, जिन्हें हमने अपनी रोजमर्रा जिंदगी का हिस्सा बना लिया है। आदत हो गई है हमें, इसलिए मन में सवाल नहीं उठते। हम अपनी मुसीबतों के साथ सोच में संकीर्ण और विचार में जीर्ण होते जा रहे हैं। राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी की कल्पना का यह एलियन चरित्र पीके हमारे ढोंग को बेनकाब कर देता है।दोजख : इन सर्च ऑफ हेवेन
निर्देशक जैगम इमाम ने अपने ही लिखे उपन्यास 'दोजख' पर बनाई है यह फिल्म और इसका टाइटल भी इसके नाम पर ही रखा है, दोजख : इन सर्च ऑफ हेवेन। फिल्म की कहानी कुछ इस तरह है। एक मुस्लिम मौलवी (ललित मोहन तिवारी) होता है, जिसे सभी प्यार से चचा के नाम से पुकारते हैं। वह काफी परेशान रहता है, क्याेंकि उसका 12 साल का इकलौता बेटा जॉन मोहम्मद (गैरिक चौधरी) लापता हो जाता है, जिसे वह प्यार से जानू बुलाता है। वैसे तो वह पैदा तो मुस्लिम परिवार में हुआ होता है, लेकिन उसकी दिलचस्पी ज्यादा हिंदू धर्म में होती है। वह मंदिर के पुजारी से घंटों बातें करता है, रामलीला में हनुमान का किरदार निभाता है और गंगा के घाट पर प्रवचन भी सुनता है। मगर मौलवी अपने बेटे की इस आदत की वजह से उस पर काफी गुस्सा करता है। जब तक जानू की अम्मी जिंदा होती है, दोनों बाप-बेटे के बीच सुलह कराती है, मगर एक हादसे में जानू के अम्मी की मौत हो जाती है। इसके बाद कई भावुक घटनाएं घटती हैं, जिन्हें बाकी की फिल्म में दिखाया गया है।
ओ माई गोड
परेश रावल की बेहतरीन फिल्मों में से एक 'ओह माय गॉड' भगवान के खिलाफ न होकर उनके नाम पर व्यवसाय चलाने वालों के खिलाफ थी। धर्म का भय बताकर धर्म के नाम पर जो लूट-खसोट की जा रही है उन लोगों पर व्यंग्य करते हुए उन्हें बेनकाब करने की कोशिश की गई, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा भी। आस्था के नाम पर अंधे बने हुए लोग भी कम दोषी नहीं हैं। मंदिरों में चढ़ावे के नाम पर पैसे, हीरे-जवाहरात, मुकुट, सिंहासन चढ़ाए जाते हैं जिनकी कीमत सुन हम दंग रह जाते हैं। फिल्म कांजी भाई की भूकंप में दुकान बरबाद हो जाती है और इंश्योरेंस कंपनी इसे ‘एक्ट ऑफ गॉड’ करार देते हुए हर्जाना देने से इंकार कर देती है। कांजी भाई भगवान के खिलाफ मुकदमा दायर करते हैं कि यदि उन्होंने उनकी दुकान बरबाद की है तो उन्हें हर्जाना देना पड़ेगा। कोर्ट कांजी भाई को कहती है कि वे भगवान होने का सबूत दें। कांजी भाई सभी धर्मों के पंडित, मौलवी और पादरी को लीगल नोटिस भेजते हैं। ‘ओह माय गॉड’ धर्मभीरू लोगों को यह बात सिखाती है कि भगवान से डरो नहीं, बल्कि उनसे प्यार करो।इसे भी पढ़ें: इमरान खान ने सीने पर गुदवाए बेटी के पांव!
परेश रावल की बेहतरीन फिल्मों में से एक 'ओह माय गॉड' भगवान के खिलाफ न होकर उनके नाम पर व्यवसाय चलाने वालों के खिलाफ थी। धर्म का भय बताकर धर्म के नाम पर जो लूट-खसोट की जा रही है उन लोगों पर व्यंग्य करते हुए उन्हें बेनकाब करने की कोशिश की गई, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा भी। आस्था के नाम पर अंधे बने हुए लोग भी कम दोषी नहीं हैं। मंदिरों में चढ़ावे के नाम पर पैसे, हीरे-जवाहरात, मुकुट, सिंहासन चढ़ाए जाते हैं जिनकी कीमत सुन हम दंग रह जाते हैं। फिल्म कांजी भाई की भूकंप में दुकान बरबाद हो जाती है और इंश्योरेंस कंपनी इसे ‘एक्ट ऑफ गॉड’ करार देते हुए हर्जाना देने से इंकार कर देती है। कांजी भाई भगवान के खिलाफ मुकदमा दायर करते हैं कि यदि उन्होंने उनकी दुकान बरबाद की है तो उन्हें हर्जाना देना पड़ेगा। कोर्ट कांजी भाई को कहती है कि वे भगवान होने का सबूत दें। कांजी भाई सभी धर्मों के पंडित, मौलवी और पादरी को लीगल नोटिस भेजते हैं। ‘ओह माय गॉड’ धर्मभीरू लोगों को यह बात सिखाती है कि भगवान से डरो नहीं, बल्कि उनसे प्यार करो।इसे भी पढ़ें: इमरान खान ने सीने पर गुदवाए बेटी के पांव!