Interview: हर एज ग्रुप के लिए गोलमाल अगेन के जरिए कॉमेडी और ह्यूमर का डबल डोज़ लेकर आ रहे हैं रोहित शेट्टी
विस्तार में पढ़िए फिल्म 'गोलमाल अगेन' के डायरेक्टर रोहित शेट्टी से खास बातचीत।
फिल्म की स्क्रिप्ट और शूटिंग में कितना समय दिया
हमने स्क्रिप्ट के लिए 8 से 9 महीनों का रेशो रखा था। हां, कभी-कभी किसी फिल्म में दो साल लग जाते हैं। लेकिन शूटिंग तो हम 5 से 6 महीनों में पूरी कर ही लेते हैं। एेसा कभी नहीं हुआ कि मेरी फिल्म में 6 महीने से ज्यादा शूटिंग के लिए वक्त लगा हो।
गोलमाल अगेन में तब्बू और परिणीति के टैलेंट को कैसे यूज किया है
जिस प्रकार 'गोलमाल 3' में मिथुन द और रत्ना पाठक ने फिल्म में जान डाली थी उसी प्रकार तब्बू और परिणीति 'गोलमाल अगेन' में करते दिखाई देंगे। 'गोलमाल रिटर्न्स' और 'गोलमाल 3' में यही अंतर था। इसलिए 'गोलमाल 3' को अच्छा रिस्पॉन्स भी मिला था। 'गोलमान अगेन' की बात करें तो जो लड़कों के 5 कैरेक्टर हैं वो खास तौर पर कॉमेडी करते हैं।
एक्टर्स में ज्यादा बदलाव नहीं, अब आगे किसके साथ करना चाहते हैं काम
मैं अपने ही झोन में खुश हूं। मुझे लगता है कि एक्टर्स के साथ कम्फर्टेबल होना चाहिए। जब फिल्म बन रही होती है तो वह माहौल होना चाहिए। समझ लीजिए कि एक फिल्म का सेट लगा हुआ है लेकिन बारिश के कारण शूटिंग रुकी हुई है। एेसे में माहौल अमूमन मस्ती भरा हो जाता है। लेकिन एेसा न करते हुए सब स्ट्रेस में रहे तो हम कैसे अॉडियंस को एंटरटेन करेंगे। हमारा बिजनेस ही एंटरटेनमेंट वाला है तो स्ट्रेस में हम रहेंगे तो कैसे दूसरों को एंटरटेन कर सकेंगे। हां, एक ख्वाइश जरूर ही कि अमिताभ बच्चन जी के साथ काम करना है, चूंकि उनकों देखकर बडे़ हुए हैं।
बच्चों को ध्यान में रखकर फिल्म बनाने के लिए सोचना पड़ता है या आज भी अंदर बच्चा जिंदा है
एेसा देखा गया है कि, अब बच्चे ज्यादा एनिमेशन नहीं देखते हैं। लेकिन उन्हें 'फास्ट एंड फ्यूरस' या 'सिंघम' जैसी फिल्में पसंद आती हैं। क्योंकि इसमें एनिमेशन नहीं बल्कि कॉमेडी के साथ ह्यूमर और एक्शन है। इसलिए इस बार भी यही कोशिश की गई है। जैसा कि जब 'सिंघम' बनाई थी तो यह ध्यान में रखा था कि ब्लड ज्यादा नहीं दिखाना है चूंकि इसे सब एज ग्रुप वाले देख सकें।
गोलमाल सीरिज़ की फिल्मों को लेकर अॉडियंस की राय क्या है
मुझे याद है कि जब 'चैन्नई एक्सप्रेस' बनाई थी तब मुझे एक लेडी मिली थी। उस लेडी ने मुझसे कहा था कि मेरी बच्ची छोटी है जो परेशान करती है और काम नहीं करने देती। लेकिन जब भी उसे फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' दिखाती हूं तो वो शांति से बैठ जाती है और मैं 3 घंटे में अपना सारा काम कर लेती हूं। एक और वाकया याद आता है जब 'गोलमाल 3' के लिए चंडीगढ़ गए थे। वहां पर एक हमारे एरिया का व्यक्ति मिला जिसने बताया कि उसके पिताजी की मृत्यु हो गई थी। इस दौरान माहौल गमहीन था और मां दुखी थीं। लेकिन जब 'गोलमाल' दिखाई तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
फिल्मों के सीक्वेल को लेकर आपकी क्या राय है
मुझे लगता है कि जो सेटेलाइट फ्रेंडली फिल्में हैं उन्हीं फिल्मों का सीक्वेल बनाना चाहिए। मतलब कि जो ज्यादा बार टेलीविजन पर दिखाई जा चुकी है या फिर यंग जनरेशन ने जिन फिल्मों को बार-बार देखा है, उन फिल्मों का सीक्वेल सक्सेसफुल रहता है। एेसी फिल्म का सीक्वेल बनेगा जो लोग जानते ही नहीं है तो वो सक्सेसफुल नहीं रहेगा।
करण जौहर और तिग्माशु धूलिया जैसे डायरेक्टर एक्टिंग में उतर गए, तो आपने क्या सोचा है
नहीं, मैं अपने डायरेक्शन से खुश हूं। टेलीविजन पर बस थोड़ा बहुत किया था वो भी कॉमेडी सर्कस में। लेकिन ज्यादा नहीं करना है।
रीजनल सिनेमा को सफलता मिल रही है, क्या कहेंगे
मुझे लगता है कि यह एक फेज़ है। हर फिल्म का एक दौर आता है। चार-चार साल में यह फेज़ बदलता है। हर तरह के सिनेमा चलता है।
सेंसर फिल्मों पर कैंची चला रहा है, क्या यह सही है
सेंट्रल बोर्ड अॉफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) को अपने नॉर्म्स को चेंज करने की जरुरत है। पहले दो या फिर तीन साल में एक एेसी फिल्म आती थी जिस पर कैंची चलाई चलानी पड़ती थी। लेकिन अब तो एेसी फिल्में ज्यादा और जल्दी-जल्दी आ रही हैं जिनपर सेंसर कैंची चला रहा है। लेकिन अगर अॉडियंस एेसी फिल्में पसंद कर रही हैं तो कैंची चलाने की जरुरत नहीं है। एेसे केसेस में सेंसर को अपने नॉर्म्स में बदलाव लाना चाहिए।