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EXCLUSIVE- मोहेंजो-दारो की कहानी मेरी जुबानी: अक्षयादित्य लामा

मोहेंजो-दारो की कहानी शुरू होती है मकर संक्राति के दिन सप्त सिन्धु के पवित्र जल स्नान से। माँ शक्ति की आराधना के बाद फसलों का उत्सव शुरू होता है।

By Manoj KumarEdited By: Updated: Tue, 09 Aug 2016 07:24 PM (IST)
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मुंबई। रितिक रोशन और पूजा हेगड़े स्टारर आशुतोष गोवारिकर की फ़िल्म 'मोहेंजो-दारो' काफी समय से विवादों के कारण चर्चा में है।

फ़िल्म इस हफ्ते रिलीज हो रही है, लेकिन कुछ महीने पहले लेखक अक्षयादित्य लामा ने आशुतोष गोवारिकर पर उनकी कहानी को चुराने का आरोप लगाया। मामला अदालत तक जा चुका है। लेकिन अब लामा की लिखी कहानी सामने आ गई है। खुद अक्षयादित्य लामा ने इस कहानी का खुलासा किया है। 'मोहेंजो-दारो' की कहानी आपके सामने पेश है। सही-गलत का फैसला आपको करना है।

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"मोहंजो दाडो की कहानी शुरू होती है मकर संक्राति के दिन सप्त सिन्धु के पवित्र जल स्नान से। माँ शक्ति की आराधना के बाद फसलों का उत्सव शुरू होता है और उसके बाद आम जनता भी मोहंजो दाडो के उत्सव में शामिल हो जाती है। अलग अलग देशों के लोग वहां सामानों की बिक्री के लिए आते हैं। लोग मोहंजो दाडो के राजा की अनुमति का इन्तजार कर रहे होते हैं तभी राजा वरुण और अपनी पत्नी महामाया के साथ लोगों के बनाये कुंड के पास आते हैं। सूर्य और प्रकृति की पूजा की जाती है और जय शक्ति जय सिन्धु के जयघोष के बीच उत्सव की शुरुआत होती है। उत्सव में हड्डपा , कालीबंगा और लोथल के प्रमुख भी आये हैं।मोहंजो दाडो में चारो ओर ख़ुशी का माहौल है, नाच-गाना हो रहा है। सभी वरुण की जय जयकार कर रहे हैं। वरुण भी अपनी पत्नी और दस साल के बेटे इंद्र के साथ बेहद प्रसन्न हैं लेकिन इन सबके बीच वरुण का सौतेला भाई कुराव खुश नहीं है क्यूंकि उसे लगता है कि उसे ही मोहंजो दाडो का राजा बनाया जाना चाहिए लेकिन प्रतिनिधि सभा ने वरुण को चुना और इस काम में मोहंजो दाडो के पुजारी मंथर का बहुत बड़ा हाथ रहा। मंथर ना सिर्फ मोहंजो दाडो का सबसे बड़ा हितैषी है बल्कि ये बेहद चालाक शख्स वरुण का बाल सखा भी है . इस कारण कुराव उसे पसंद नहीं करता लेकिन आज सारे मतभेद भुला कर उसे हाथी के पैर में बाँध कर एक गुप्त सन्देश भेजता है हाथी आर्यन के खेमे में पहुंचता है जहाँ मित्रा उस सन्देश को पढता है . सन्देश लिखा होता है - मोहंजो दाडो के लोग जश्न में डूबे हैं यही सही समय है हमले का . सन्देश पढ़ कर अपनी कुटिल मुस्कान बिखेरता हुआ मित्रा हमले की तैयारी में लग जाता है। जयघोष और जश्न के बीच आर्यन और मोहंजो दाडो के लोगों के बीच युद्ध शुरू हो जाता है।

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पहले तो उत्सव के माहौल में डूबे लोग थोड़े कमजोर पड़ते हैं लेकिन जैसे ही वरुण ने एकजुट रह कर लोगों में लड़ने का जोश भरा आर्यन्स पर हमला तेज हो गया। आर्यन की सेना हार गई और दुष्ट मित्रा को बंदी बना लिया गया। इस युद्ध में मंथर की आठ साल की बेटी सुगंधा और वरुण के दस साल के बेटे इंद्र ने भी भाग लिया जीत के बाद इंद्र ने ये कहते हुए मित्रा को माफ़ कर देने की अपील की कि आज के दिन जब खुशियों को बाटने का दिन है तो ऐसे में किसी की जान कैसे ली जा सकती है। वरुण ने मित्रा की जान बख्श दी और उत्सव तक नगर में ही रहने की अनुमति दे दी। मित्रा ने इस बात के लिए वरुण और इंद्र का आभार माना कुराव को ये बातें पसंद नहीं आई लेकिन इससे पहले कि मित्रा उसकी मंशा को वरुण तक पहुंचा देता, कौरव ने बेहद शातिर चाल खेल कर वरुण को मार दिया और सारा इल्जाम मित्रा पर लगा दिया। मित्रा समझ गया था कि उसे फंसा दिया गया है लेकिन कुछ भी साबित करने की बजाय उसने वहां से बच कर भाग निकलने में भी भलाई समझी।

इस बीच पति के मौत के सदमे में वरुण की बीबी महामाया का भी निधन हो गया . सारे हालत को समझते हुए वरुण की आया वरुण को लेकर मोहंजो दाडो से भाग जाती है। मोहंजो दाडो की जनता के ये समझने के बाद कि इंद्र भी मर चुका है कुराव को नगर का प्रमुख बना दिया गया। मोहंजो दाडो के लोग जो अब तक सज्जन थे सत्ता बदलने के साथ लालची बन गए . धोखेबाज़ बन गए और राजनीति करने लगे . इस बीच इंद्र की आया धारी ने अब फिर से हड्ड्प्पा में रहना शुरू कर दिया था वो शादी के पहले आर्यन थी. समय के साथ इन्द्र बीती बातों को भूल चुका था. वो धारी की इस बात को भी सच मानने लगा था कि उसका नाम इंद्र नहीं शिवम् है और धारी ही उसकी असली माँ है . धारी शादी के पहले से ही कुम्भार थी। वो मिटटी के बर्तन बनाने का काम जानती थी और उसने इंद्रा ( शिवम ) को भी मिटटी का बर्तनों का अच्छा शिल्पकार बना दिया उधर कुराव सत्ता में आने के बाद मनमानेपन पर उतर आया था उसने प्रतिनिधि सभा के फैसले के बिना ही अपने बेटे अक्षत को मोहंजो दाडो का अगला राजा बनाने की घोषणा कर दी।

नगर में अपनी स्थिति मजबूत बनाने के लिए उसने मंथर की बेटी सुगंधा के साथ अपने बेटे अक्षत की शादी तय कर दी . मंथर इससे खुश नहीं था लेकिन हालात को देखते हुए उसने इस समय चुप रहने में भी भलाई समझी ताकि उसकी बेटी की जान बच जाय। कुराव ने धीरे धीरे पडोसी राज्यों के साथ मित्रता का हाथ बढ़ाया लेकिन उस काल में सिन्धु सभ्यता में में भर्ष्टाचार अपने चरम पर पहुँच गया था . दूसरी तरफ मित्रा , कौरव से बदले के लिए तैयार बैठा था शिवम् अब बड़ा हो गया . उसके मिटटी के बर्तनों की हद्दपा के आसपास के इलाकों में तूती बोलती थी . बेहद बलशाली लेकिन स्वभाव से बेहद दयालु शिवम् को सब पसंद करते थे , शिवम् साधारण जीवन से खुश था लेकिन जब भी वो मोहंजो दाडो का नाम सुनता बेचैन हो जाता . उसके दोस्तों ने उसे बताया था कि मोहंजो दाडो में हर साल एक मेला लगता है जहाँ जा कर वो अपने मिटटी के बर्तनों को बेच सकता है . शिवम् भी वहां जाना चाहता था लेकिन हर बार माँ उसे मना कर देती. दोस्तों को जाते देख शिवम की उदासी बढ़ जाती थी . पर एक दिन उसे जाने की अनुमति मिल गई।

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मोहंजो दाडो जाते वक्त उसका सामना मित्रा से हो गया . शिवम् बहादुरी से लड़ता है और इस बात से प्रसन्न हो कर मित्रा उसे अपना घोड़ा तोहफे में देता है . मित्रा इस बात से प्रभावित होता है कि कई सालों के बाद उसे एक ऐसा योद्धा देखने मिला . ऐसी वीरता उसने सिर्फ वरुण और इंद्रा में देखी थी . शिवम् को ये नाम सुन कर एक झटका लगता है . मित्र उसे अपनी कहानी बताता है और ये भी कि वो कुराव से अपना बदला लेना चाहता है मोहंजो दाडो पहुँच कर शिवम् को सब कुछ अपना अपना सा लगने लगता है .उसके पैर अचानक उस जगह की ओर मुड जाते हैं जहाँ उसने बचपन बिताया था . तभी उसे वहां सुगंधा दिखती है .पहली ही नजर में शिवम् को उससे प्यार हो जाता है और मेले में सुगंधा का पीछा करने लआअगता है।

ये बात सुगंधा भी महसूस करती है लेकिन एक अनजान आदमी की हरकतें देख कर वो शिवम् को भाव नहीं देती . हालाँकि जैसे ही सुगंधा को पता चलता है कि शिवम् आर्यन है वो उसे तुरंत मोहंजो दाडो छोड़ कर चले जाने को कहती है ताकि उत्सव का माहौल ख़राब ना हो . शिवम् ( इंद्र) समझ नहीं पाता कि आखिर वो ऐसी कौन सी बात है जिसके कारण आर्यन और मोहंजो दाडो के बीच बनती नहीं इस बीच शिवम् को ये पता चल जाता है कि बहुत साल पहले आर्यनो ने मोहंजो दाडो के राजा वरुण की हत्या कर दी थी। हालाँकि तभी उसे वरुण के बारे में मित्रा के कहे शब्द और उसका बदला याद आ जाता है। शिवम् दुविधा में पड़ जाता है और एक एक कर सारी घटनाएं सोचने लगता है। इस बीच जंगल में एक शेर सुगंधा पर हमला कर देता है लेकिन शिवम उसे बचा लेता है। इस बात से प्रभावित हो कर सुगंधा, शिवम् को अपना दिल दे बैठती है। दोनों अब सबसे नज़रे बचा कर एक दूसरे से मिलने रोज जंगल में पहुँच जाते हैं। शिवम् से मिलने के बाद सुगंधा को लगता है जैसे उसे जीवन का नया मतलब मिल गया हो। वो ये भी भूल जाती है कि अक्षत से उसकी सगाई हुई है।

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शिवम् अब अक्सर सुगंधा के लिए मिट्टी के खूबसूरत बर्तन बनाता है और घोड़े पर अपने साथ अपनी प्रियतमा को सैर करवाने भी ले जाता है। एक दिन कुराव के सिपहसालार कुरुध इन सारी बातों को जान लेता है और जा कर कुराव को सब बता देता है। शिवम् और सुगंधा के मोहब्बत कि खबर सुन कर कुराव का खून खौल उठता है और वो अक्षत को बुला कर खूब खरी खोटी सुनाता है। मिज़ाज़ का गुस्सैल और निर्दयी अक्षत तब शिवम् और सुगंधा को सबक सिखाने की ठान लेता है। तभी धूर्त कुराव अपने बेटे से कहता है की जो भी काम करना है उसे बड़ी चालाकी से अंजाम दिया जाय क्योंकि सुगंधा के पिता मंथर की मोहंजो दाडो में काफी लोकप्रियता है और एक भी गलत कदम से लेने के देने पड सकते हैं। कुराव और अक्षत, शिवम् को रास्ते से हटाने के लिए योजना बनाते है लेकिन शिवम् किसी तरह बच जाता है। पर इन सबके बीच कुराव को ये पता लग जाता है कि शिवम् ही असल में इंद्र है। मंथर को भी सब कुछ पता चल जाता है। मंथर अब प्रतिनिधि सभा बुलाकर कुराव की सारी हकीकत बता देना चाहता है लेकिन इससे पहले वो कामयाब होता कुराव उसकी हत्या कर देता है। सुगंधा ये सारी घटना देख लेती है लेकिन कुराव उसे कैद कर लेता है।

शिवम् को अब सारी बातें याद आ जाती है और वो पिता की हत्या का बदला लेने की ठान कर मित्रा को पत्र लिखता है। लेकिन इससे पहले कुछ हो पाता कुराव और अक्षत प्रतिनिधि सभा को इस बात का यकीन दिला देते हैं कि सुगंधा से मोहंजो दाडो को खतरा है क्योंकि वो मोहंजो दाडो के सबसे बड़े दुश्मन आर्यन के इंद्र से मोहब्बत करती है इसलिए सुगंधा के गले में बड़ा सा पत्थर बांध कर उसे सिंधु नदी में फेंक दिया जाय। इंद्र ये सुन कर बौखला जाता है। उसके दोस्त उसे रोकते है लेकिन वो अकेले ही उस दरबार में पहुँच जाता है जहाँ सुगंधा को सजा देने की तैयारी चल रही है। इंद्र सबसे लड़ता है। कुराव उसको हराने के लिए अपनी पूरी सेना भेज देता है। मित्रा इंद्र की मदद1 के लिए अपनी सेना लेकर आ जाता है। युद्ध में हजारो जानें जाती देख इंद्र का दिल बैठ जाता है। वो दोनों तरफ के लोगों के मारे जाने से आहात हो कर युद्ध ना करने का फैसला करता है। फिर ये तय होता है कि हार जीत का फैसला इंद्र और अक्षत के बीच सीधी लड़ाई से होगा।

कुराव इस बात पर ये सोच कर राजी हो जाता है की वो इंद्र को अपने जाल में फंसा लेगा और अक्षत उसे मार डालेगा लेकिन ऐसा होता नहीं और इंद्र जीत जाता है। सारे भेद खुल जाते है जनता को पता चल जाता है कि कुराव ने वरुण और मंथर को मारा और इंद्र ही वरुण का बेटा है। तभी कुराव ,नदी के बाँध का दरवाजा खोल देता है ताकि तबाही आ जाये। सुगंघा पानी के बहाव में डूबने लगती है। इंद्र अपनी जान पर खेल कर उसे बचा लेता है। मोहंजो दाडो अब भी सुरक्षित नहीं है। इंद्र कई लोगों की जान बचाता है लेकिन उसके सामने सिंधु सभ्यता को बचाने का सवाल है। तब इंद्र कहता है सभ्यता कभी नहीं मरेगी वो पीढ़ियों के लिए निशानी छोड़ जाएँगी। हम सब गंगा नदी के किनारे नया जीवन शुरू करेंगे और नई सभ्यता बसाएंगे।"