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मंजिल अभी बाकी है - इरफान खान

खते-सीखते मैं यहां तक तो आ गया, पर मंजिल अभी दूर है। मैंने जो प्रोफेशन चुना है, वह मेरे मकसद और लक्ष्य के करीब पहुंचने के लिए है। शोहरत, पैसा, नाम...यह सब बायप्रोडक्ट हैं। मैं इन सब के बारे में सोचकर इस सफर पर नहीं चला था, यह सब तो

By Monika SharmaEdited By: Updated: Mon, 17 Nov 2014 02:52 PM (IST)

मुंबई। खते-सीखते मैं यहां तक तो आ गया, पर मंजिल अभी दूर है। मैंने जो प्रोफेशन चुना है, वह मेरे मकसद और लक्ष्य के करीब पहुंचने के लिए है। शोहरत, पैसा, नाम...यह सब बायप्रोडक्ट हैं। मैं इन सब के बारे में सोचकर इस सफर पर नहीं चला था, यह सब तो मिलना ही था। जयपुर से निकलते समय कहां पता था कि कहां पहुंचेंगे? अभी पहुंचे भी कहां हैं। थिएटर करता था तो मां ने परेशान होकर डांटा था...यह सब काम आएगा क्या? मैंने अपनी सादगी में कह दिया था कि आप देखना कि इस काम के जरिए मैं क्या करूंगा? मेरे मुंह से निकल गया था और वह मेरी बात सुनती रह गई थीं। उन्हें यकीन नहीं हुआ था लेकिन मुझे भी पता नहीं था कि कैसे होगा...क्या होगा?

बदल रहा है सिनेमा

अभी सिनेमा बदल गया है। करने लायक कुछ फिल्में मिल जाती हैं। अगर पिछली सदी के अंतिम दशक जैसा ही चलता रहता तो माहौल डरावना हो जाता। हमें कुछ और सोचना पड़ता। निर्देशकों की नई पौध आ गई है। वे ताजा मनोरंजन ला रहे हैं। दर्शक भी उन्हें स्वीकार कर रहे हैं। लंचबॉक्स इसी का उदाहरण है। आप देखिएगा अभी कितने एक्टर आएंगे। लोग मेरा नाम लेते रहते हैं लेकिन जल्दी ही तादाद बढ़ेगी। हमारे एक्टर हॉलीवुड में भी काम करेंगे। मेनस्ट्रीम हॉलीवुड की फिल्मों में भी हमारी मांग बढ़ेगी।

जुरासिक का माहौल

कुछ महीने पहले जुरासिक पार्क की शूटिंग करके लौटा हूं। मुझे पता चला था कि स्टीवन स्पीलबर्ग मेरे साथ काम करना चाहते हैं। महीने, दो महीने के बाद पता चला कि वे खुद इस फिल्म को डायरेक्ट नहीं कर रहे हैं। वे निर्माता बन गए। स्पीलबर्ग ने नए डायरेक्टर के ऊपर छोड़ दिया कि वह चाहे तो मुझे ले या हटा दे। बहुत मजा आया, बहुत ही मजेदार और खिलंदड़ा किरदार है मेरा। जुरासिक पार्क में मैं पार्क ओनर का रोल कर रहा हूं। मेरा किरदार थोड़ा दिखावटी और शो-ऑफ करने वाला है। पहली बार ऐसी यूनिट दिखाई पड़ी, जो दो-ढाई महीने साथ काम करने के बाद भी एक-दूसरे को देखकर खुश होती थी। यहां पर अनुराग कश्यप और निशिकांत कामत के सेट पर ऐसा माहौल रहता है।

दर्शकों का रखना है ख्याल

यहां की बात करूं तो पूरा साल स्पेशल एपीयरेंस में ही चला गया। पहले गुंडे की और फिर हैदर। अभी पीकू कर रहा हूं। मुझे पता है कि दर्शक मुझे पसंद कर रहे हैं। मैं यही कोशिश कर रहा हूं कि वे निराश न हों। पीकू के बाद तिग्मांशु के साथ एक फिल्म करूंगा। सुजॉय घोष के साथ भी काम करना है। संजय गुप्ता के साथ भी बात चल रही है। मैं चालू किस्म की फिल्में नहीं कर सकता। मुझे अपने रोल में कुछ अतिरिक्त दिखना चाहिए। हां अगर डायरेक्टर पर भरोसा हो तो हां कर सकता हूं।

काम में हो ईमानदारी

नए एक्टर मेरी तरह बनना चाहते हैं। मुझे लगता है अपने काम और व्यवहार से मैं कोई सिग्नल दे रहा हूं। जिस नए एक्टर का एंटेना चालू होगा, वह मुझे ग्रहण कर लेगा और फिर मुझसे आगे निकल जाएगा। मैंने खुद ऐसे ही दूसरों के सिग्नल पकड़े थे। चलते-चलते यहां तक आ गया। मेरे लिए एक्टिंग सिर्फ पैसा कमाने और सुरक्षा का साधन नहीं है। पैसे और सुरक्षा तो हैं, लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा, वह हमारे काम का बायप्रॉडक्ट है। अभी कुछ दिनों पहले किसी ने कहा कि आप की पान सिंह तोमर देखने के बाद मुझे जीने का मकसद मिल गया। उसने हाथ भी नहीं मिलाया। कहा और निकल गया। मुझे लगा इससे ज्यादा पवित्र तारीफ नहीं हो सकती। अपने जीवन के लिए इसे महत्वपूर्ण मानता हूं, इसलिए काम में भी ईमानदारी होनी चाहिए। मैं यहां फिल्म करता हूं। किसी और देश के किसी शहर में कोई हिल जाता है। वह मेरे किरदार से कुछ सीख लेता है। उस सीख को मैं वैल्यू देता हूं। वह अनमोल है।

लोगों का काम है कहना

कुछ लोग मुझे अहंकारी समझते हैं। मैं इसकी परवाह नहीं करता। किसी कमरे में आप केवल चुपचाप बैठ जाएं तो देख लें बाकी नौ आप के बारे में क्या-क्या बातें करने लगते हैं। सभी के अपने निर्णय और दृष्टिकोण होंगे। किसी को लगेगा कि यह मारने वाला है। कोई कहेगा अहंकारी है। किसी को मैं प्यारा लगूंगा। तीसरा कहेगा या चौथा कहेगा कि कोई स्कीम कर रहा है। नौ लोग होंगे तो नब्बे कहानियां बनेंगी। मुझे इस पचड़े में रहना ही नहीं है। अगर मुझे चुप रहना अच्छा लग रहा है तो मैं चुप रहूंगा। कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।

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