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दोबारा लिखनी पड़ी थी 'पीके' की कहानी

'3 इडियट्स' में आमिर खान के साथ कामयाबी का इतिहास बना चुके राजकुमार हिरानी अब फिल्म 'पीके' लेकर आ रहे हैं। रिलीज से पहले ही चर्चा में आ चुकी इस फिल्म के पीछे क्या-क्या हुई मशक्कत, उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया अमित कर्ण और स्मिता श्रीवास्तव के साथ...

By Monika SharmaEdited By: Updated: Thu, 20 Nov 2014 03:37 PM (IST)
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मुंबई। '3 इडियट्स' में आमिर खान के साथ कामयाबी का इतिहास बना चुके राजकुमार हिरानी अब फिल्म 'पीके' लेकर आ रहे हैं। रिलीज से पहले ही चर्चा में आ चुकी इस फिल्म के पीछे क्या-क्या हुई मशक्कत, उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया अमित कर्ण और स्मिता श्रीवास्तव के साथ...

आपको कहानियों की प्रेरणा कहां से मिलती है?

मुझे इंसानों से जुड़ी कहानियां अच्छी लगती हैं। मैं हृषिकेश मुखर्जी की फिल्में देखता था। उस किस्म की कहानियां पसंद हैं तो अंदर से वैसे ही निकलती हैं।

'पीके' में आमिर खान के सीन पर बवाल उठने की आशंका है?

फिल्म देखने पर रेडियो की पूरी कहानी समझ में आएगी। फिल्म देखने पर यह भी समझ में आएगा कि ऐसा पोस्टर क्यों है। वह पोस्टर जैसा कि आमिर ने भी कहा कि सनसनी फैलाने के लिए नहीं था। हमारी सोच है, जिसे ट्रांजिस्टर के जरिए देख रहे हैं।

फिल्म क्या कहना चाहती है? ट्रेलर और पोस्टर से कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा है?

ट्रेलर दो तरीके से बनते हैं। अगर कहानी यूनीक है तो कुछ अंश बता दो तो आडियंस आती है। कभी लगता है कहानी नहीं बतानी चाहिए। उसे देखने का अनुभव अलग होगा। मुझे लगता है कि 'पीके' की कहानी बता देंगे तो देखने का अनुभव खराब कर देंगे। इस वजह से पोस्टर और वीडियो में बात की है कि कौन क्या है?

फिल्म की एडिटिंग आप खुद ही करते हैं?

मुझे एडिटिंग करने में मजा आता है। इस काम को जज करना मुश्किल होता है। एडिटर का काम दिखता नहीं है। आपको पता ही नहीं होता कितने खराब रैशेज आए थे और उसने संवारकर ठीक कर दिए या अच्छे रैशेज को खराब कर दिया। कोई भी डायरेक्टर कैसी भी फुटेज लेकर आया हो एडिटर उसे चार तरीके से एडिट कर सकता है। हृषिकेश मुखर्जी अपनी एडिटिंग के लिए मशहूर थे। शॉट भी कम लेते थे। उन्हें पता रहता था कि किसके बाद क्या डालना है।

आपको और अभिजात को 'पीके' का आइडिया बोरिवली पार्क में आया था। उसके बाद डेवलपमेंट की क्या कहानी थी?

सही कहा आपने। हमें आइडिया बोरिवली पार्क में आया। हम क्या कहना चाहते थे वह हमें पता था, पर कैसे कहना है वह पता नहीं चल पा रहा था। हमारा नायक कैसा हो, उसे गढ़ने में प्रॉब्लम आ रही थी। अभिजात ने कहा कि हमारा कैरेक्टर ऐसा हो सकता है। मुझे अच्छा लगा। हम लग गए, अपने नायक को गढ़ने में। हमने एक ड्राफ्ट लिख भी लिया। मैं और अभिजात सोच रहे थे कि हमने बड़ी यूनीक फिल्म लिखी है, पर हमारे एक जानने वाले ने कहा कि फलां अंग्रेजी फिल्म देखो। कहीं वह वैसी तो नहीं। हमने फिल्म देखी और वह आइडेंटिकल वैसी ही निकली। उस रात मैं और अभिजात सिर पकड़कर बैठ गए। हमारी एक साल की मेहनत बेकार हो गई। वह फिल्म 'इंसेप्शन' थी। हमने पूरी फिल्म दोबारा लिखी।

आपके टाइटल बड़े गजब के होते हैं?

टाइटल ही दर्शकों को फिल्म के बारे में उत्सुक और आकर्षित करते हैं। मेरा मानना है कि फिल्म का टाइटल प्रासंगिक हो, पर वह ज्यादा रिवीलिंग न हो। 'पीके' का नाम पहले हमने 'टल्ली' रखा था। 'एक था टल्ली', पर तब 'एक था टाइगर' आ गई तो हमें नाम चेंज कर 'पीके' रखना पड़ा।

आप कंटेंट के किंग तो हैं ही, मार्केटिंग और प्रमोशन में आपकी क्या रणनीति रहती है?

मुझे लगता है कि सारी चीजें स्क्रिप्ट और शूटिंग के दौरान ही निकल आती हैं। '3 इडियट्स' में जब ऑल इज वेल का गाना शूट हो रहा था तो मुझे वहीं लग गया था कि ड्रम में बैठे हुए या बम चेयर पर बैठे तीनों कलाकारों की तस्वीर एक बढि़या पोस्टर इमेज बन सकती है। कोर इमेज तो वहीं से निकल आती है। 'पीके' में आमिर के इतने गेटअप और लुक हैं कि पोस्टर इमेज के लिए ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ी।

आमिर बड़े स्टार हैं। वे किरदार में डूब भी जाते हैं। उनका क्रिएटिव इनपुट कितना रहा फिल्म में?

आमिर बहुत इंटेलिजेंट इंसान हैं। उन्हें समझाना बहुत आसान है। जो फिल्म में पैसा लगा रहा हो, उसे समझाना बड़ा मुश्किल होता है। बात-बात पर वह कहता रहेगा कि यार ऐसा कर तो रहे हो, पर क्या वह वर्क करेगा? इंटेलिजेंट लोगों के साथ ऐसा नहीं है। वह आपकी एक्सपर्टीज और आपकी अवधारणा पर पूरा भरोसा करते हैं। आमिर बहुत सपोर्टिव हैं। फिल्मों को लेकर उनका कमिटमेंट बहुत ज्यादा है।

राजस्थान के अलावा और कहां-कहां शूटिंग हुई है? अनुष्का पत्रकार बनी हैं। बाकी कलाकार क्या हैं?

फिल्म राजस्थान के अलावा दिल्ली और बेल्जियम में शूट की गई है। अनुष्का तो पत्रकार हैं। संजय दत्त भैरों सिंह बैंड वाले का रोल प्ले कर रहे हैं। बाकी किरदार क्या कर रहे हैं, वह फिल्म देखने के बाद पता चलेगा।

आमिर पूरी फिल्म में भोजपुरी बोलते दिखेंगे, कोई खास वजह?

हिंदुस्तान में इतनी भाषाएं हैं कि यह ख्याल मुझे रोमांचित करता रहता है कि उस टोन का इस्तेमाल अगर संवादों में हो तो फिल्म रोचक बन जाएगी। फिल्म का अधिकांश सेट राजस्थान में है तो पहले हमने सोचा कि मूल भाषा राजस्थानी रखी जाए। आमिर ने कहा कि अगर हम भोजपुरी में उनके संवाद कन्वर्ट करें तो कैसा रहेगा। हमें आइडिया पसंद आया, पर फिर हमें एक्सपर्ट चाहिए था, जो हिंदी को भोजपुरी में कन्वर्ट करे। भोजपुरी के लिए शांतिभूषण जुड़े। उन्होंने आमिर को भोजपुरी की ट्रेनिंग दी। वे लगातार कई महीने आमिर के संग बैठे तो बात बनी। शांतिभूषण ने डायलॉग भी भोजपुरी में ट्रांसलेट किए।

यानी उस किरदार का रूट कनेक्शन बिहार या यूपी से है?

जी हां, आप समझ सकते हैं कि उनका कनेक्शन उक्त राज्यों में से ही है।