कपूर, कुमार और खान के संग कैसे काम करूं?
मुंबई। फिल्मकार विकास बहल की फिल्म 'क्वीन' में कंगना रनोट निभा रही हैं रानी नामक बिंदास लड़की का किरदार। यह फिल्म रानी के युवा होने और अपना अस्तित्व ढूंढ़ने के बारे में है। कंगना खुद को रानी से काफी रिलेट करती हैं। वह रानी के संघर्ष करने वाले स्वभाव से खुद को जुड़ा पाती हैं। रा
By Edited By: Updated: Thu, 27 Feb 2014 03:21 PM (IST)
मुंबई। फिल्मकार विकास बहल की फिल्म 'क्वीन' में कंगना रनोट निभा रही हैं रानी नामक बिंदास लड़की का किरदार। यह फिल्म रानी के युवा होने और अपना अस्तित्व ढूंढ़ने के बारे में है। कंगना खुद को रानी से काफी रिलेट करती हैं। वह रानी के संघर्ष करने वाले स्वभाव से खुद को जुड़ा पाती हैं। रानी कभी भी हार नहीं मानती है। कंगना से बातचीत के अंश:
अब छोटे से शहर की कंगना में क्या तब्दीलियां आई हैं? पहले के मुकाबले ज्यादा परिपक्व, समझदार और शांत हुई हूं। अपने स्पेस में रहना पसंद करने लगी हूं। किसी भी चीज को अपनी कमजोरी नहीं बनने देती। खुद को लगातार एक्सप्लोर करने का मिशन जारी है। शुरू से ही यकीन था कि फिल्म जगत में अपनी जगह बना लेंगी?
ऐसा तो नहीं कह सकती। मैं भी पहले सशंकित थी। घबराती, टूटती और बिखरती, मगर फिर खुद को संवारती। इस जगत में मैंने छोटी सी उम्र में ही कदम रख दिए थे। 15-16 साल की थी, जब यहां आ गई थी। अब 30 की हो रही हूं। मेरे जेहन में इतना जरूर था कि अगर फिल्मों में सफलता नहीं मिली तो स्टडीज में चली जाऊंगी। स्टडीज में नहीं जा पाती, तो इसी इंडस्ट्री में कैमरे के पीछे वाले कामों में चली जाती। कभी लगा कि ग्लैमर की दुनिया छोड़ कर घर चली जाऊं?
पढ़ें:जानिए कैसा होगा कंगना रनौत का मिस्टर परफेक्ट? वह तो अभी भी लगता है कि बोरिया-बिस्तर बांध घर चली जाऊं। खासकर मुंबई की जिंदगी में जो एक बेचैनी है, वह मुझे बेचैन कर रख देती है। मेरे परिजन मुझसे बेहतर जिंदगी बसर कर रहे हैं। सुबह उठ कर परांठे बनाते हैं। फिर पहाड़ी घूमने जाते हैं। शाम को अपने दोस्तों के संग गप्पे लड़ाते हैं। मैं 15 साल पहले मुंबई आई थी। वे डेढ़ दशक कैसे निकल गए, उसका पता ही नहीं चला। ..यानी सफलता की कीमत अदा करनी पड़ती है। सुकून और सफलता साथ-साथ नहीं मिल सकते? आपको रेलेटिव सक्सेस चाहिए तब तो आपको अपना सुकून खोना होगा, मगर आपने अपने लिए सफलता के मायने तय किए हैं और उसमें आप उम्दा कर रहे हैं तो आप भले दुनिया की नजरों में असफल रहें, पर आप अपनी नजरों में सफल हैं। असल सफलता वही है। कंगना को आगे कभी हम कपूर, कुमार और खान के संग काम करते देखेंगे? वे भी वैसे ही प्रोजेक्ट्स और किरदारों में रुचि रखते हैं, जिनमें मुझे है। उन्हें भी दमदार रोल चाहिए और मुझे भी। जहां वैसा नहीं होता, मैं उसका हिस्सा नहीं बनती। ऐसे में एक ही म्यान में दो तलवारें कैसे रह सकती हैं। फिर मुझे उनके बिना 'क्वीन', 'रिवॉल्वर रानी' व अन्य अच्छी फिल्में मिल रही हैं तो मैं क्यों उनके साथ वाली फिल्मों में महज शो-पीस बनकर रहूं। .फिर 'रज्जो' करने के पीछे क्या वजह रही? उसके पीछे आज के जमाने की कथित ताकतें नहीं थी। एक सीधे-सरल फिल्म बफ नौकरशाह ने तवायफों की जिंदगी से लोगों को कनेक्ट करने की कोशिश की। वह नहीं हो सकी, पर उसे बनाने की मंशा बहुत साफ थी। (अमित कर्ण)