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मेरे दिल के बेहद करीब है 'पीके' - आमिर खान

अपने अब तक के फिल्मी सफर में 'पीके' का रोल सबसे मुश्किल मानते हैं आमिर खान। इसके म्यूजिक रिलीज के सिलसिले में नोएडा आए मिस्टर परफेक्शनिस्ट से बात की रतन ने...

By Monika SharmaEdited By: Updated: Mon, 24 Nov 2014 11:33 AM (IST)
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अपने अब तक के फिल्मी सफर में 'पीके' का रोल सबसे मुश्किल मानते हैं आमिर खान। इसके म्यूजिक रिलीज के सिलसिले में नोएडा आए मिस्टर परफेक्शनिस्ट से बात की रतन ने...

आप 'पीके' के बारे में कुछ नहीं बताना चाहते हैं। अगर आपको बताना हो तो इसके बारे में क्या बताएंगे?

मैं यही बताना चाहूंगा कि मुझे पच्चीस साल से भी अधिक हो गए हैं फिल्में करते हुए लेकिन इस फिल्म में जितनी मेहनत और चुनौती का सामना करना पड़ा, उतना अब तक के करियर में नहीं हुआ। मेरे लिए यह रोल बहुत ही चैलेंजिंग था। यह फिल्म मेरी पिछली सभी फिल्मों से बिल्कुल अलग है। इसमें हर बार की तरह एक नए विषय को दिखाने की कोशिश हुई है, जिसके लिए पूरी टीम ने बहुत मेहनत की है। मैं यह कह सकता हूं कि फिल्म मेरे दिल के बहुत करीब है।

...तो माना जाए कि यह मुश्किल काम था आमिर खान के लिए?

वाकई यह काफी मुश्किल काम था। अगर स्क्रिप्ट मनोरंजक नहीं हुई, तो फिल्म बोझिल हो जाएगी। सिर्फ भाषण देने के लिए तो फिल्में बनाई नहीं जातीं। किसी भी अच्छी फिल्म में दर्शकों को पकड़कर रखने की क्षमता होनी चाहिए। 'पीके' की स्क्रिप्ट काफी जटिल है। ऐसी स्क्रिप्ट को मनोरंजक बनाना बड़ा चैलेजिंग था। राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी ने इस काम को अच्छी तरह अंजाम दिया है।

क्या 'पीके' वैसी ही फिल्म बनी है, जैसी कि आपने स्क्रिप्ट पढ़ी थी?

हां, यह फिल्म वैसी ही बनी है, जैसी स्क्रिप्ट में थी। यह सच है कि कई बार स्क्रिप्ट को पर्दे पर उतारना मुश्किल होता है। स्क्रिप्ट में फिल्म कुछ और होती है, लेकिन पर्दे पर आते-आते वह कुछ और हो जाती है। हालांकि राजकुमार हिरानी के साथ ऐसा नहीं होता है। मैं उनकी फिल्म कर चुका हूं। वे अपनी स्क्रिप्ट को तैयार करने में तीन-चार साल का समय लेते हैं। '3 इडियट्स' को रिलीज हुए पांच साल हो चुके हैं। अब उनकी यह फिल्म आ रही है। वे अलग तरह के निर्देशक हैं।

आपके किरदार के बारे में अब भी सीक्रेट बना हुआ है। कभी एलियन तो कभी नौ रोल की बात होती है। सच क्या है?

सच्चाई रिलीज के दिन सामने आएगी। नौ किरदारों की अफवाह इसलिए फैल रही है, क्योंकि हमने अपने नौ पोस्टर जारी कर दिए हैं। सभी पोस्टर कहानी को आगे बढ़ाते हैं, इसलिए इस तरह की बात की जा रही है। हमारे लिए यह अच्छा है कि 'पीके' को लेकर लोगों में रहस्य बना रहे।

'पीके' नाम से कुछ भी अंदाज नहीं लगता कि फिल्म की कहानी क्या होगी? इस नाम ने आपकी फिल्म को सीक्रेट बनाए रखने में कितनी मदद की?

मुझे लगता है कि किसी भी फिल्म का नाम उसकी कहानी से ही निकलता है। फिल्म का सब्जेक्ट इस मामले में अहम रोल निभाता है। 'पीके' नाम रखने की वजह फिल्म देखने के बाद आसानी से साफ हो जाएगी। मैं अभी इस बारे में कुछ भी नहीं कहूंगा।

आपने फिल्म में भोजपुरी बोली है। यह कैसे हुआ?

मैंने इस फिल्म के सारे संवाद भोजपुरी में ही बोले हैं। इसमें मुझे कठिनाई तो हुई लेकिन मजा भी बहुत आया। शूटिंग से पहले मुझे इसके लिए ट्रेनिंग लेनी पड़ी। एक-एक शब्द का अभ्यास किया। उसके बाद भी शूटिंग के दौरान परेशानी हुई। इसे सीखने के बाद मुझे पता चला कि भोजपुरी बहुत ही मीठी और सीखने में आसान है। दर्शकों को फिल्म में इसका अलग आनंद मिलेगा।

भोजपुरी की बजाए किसी और भाषा को क्यों नहीं रखा गया?

जाहिर है, इसे बोलने वाले और समझने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है।

फिल्म में आपने पान भी बहुत खाए हैं, उसका अनुभव?

कहानी और किरदार के नेचर के हिसाब से शूटिंग के दौरान मुझे बहुत पान खाने पड़ते थे। यहां तक कि एक-एक सीन से पहले कई-कई पान खाने पड़ते थे। पान की मांग को देखते हुए सेट पर ही पान का स्टॉल लगाया गया था। कई बार तो मेरे मुंह पर इसका असर भी हुआ और जीभ भी कटी लेकिन मजा आया।

आपको काफी कम स्क्रिप्ट पसंद आती हैं। साइन करते समय उसमें क्या खास देखते हैं?

मैं कहानी पर गौर करता हूं कि आखिर इसमें नया क्या है? मैं किसी किरदार को तभी अपना सौ प्रतिशत दे सकता हूं, जब कुछ नया करने को मिलेगा। रोल पढ़ने के बाद अगर लगता है कि वह चैलेंज दे रहा है, तभी मेरे भीतर रोमांच पैदा होता है। कहानी पसंद आने के बाद ही मैं बैनर और डायरेक्टर के बारे में जानकारी हासिल करता हूं। कहानी दिल को नहीं छूती है तो फिर बैनर या डायरेक्टर का मेरे लिए कोई महत्व नहीं होता।

किरदार में पूरी तरह ढल जाने के लिए आप क्या करते हैं?

इस मामले में स्क्रिप्ट से मदद मिलती है। कहानी से ही मेरे मन में हलचल मचती है। ऐसे में मैं अपने रोल के लिए नई संभावनाएं तलाशना शुरू कर देता हूं। मेरे लिए कंटेंट बैक बोन की तरह है।

आपकी फिल्म में संजय दत्त अहम रोल में हैं। क्या उन्हें जेल में फिल्म दिखाने का इंतजाम करेंगे?

हम जेल प्रशासन से अनुरोध करेंगे कि संजय दत्त और अन्य कैदियों के लिए 'पीके' की स्क्रीनिंग रखी जाए। अगर प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया तो हम जरूर ऐसा करेंगे।

संजय दत्त के साथ के अनुभव के बारे में कुछ बताएंगे?

संजू बहुत अच्छे कलाकार के साथ ही अच्छे व्यक्ति भी हैं। वे मेरे बड़े भाई की तरह हैं। उनके साथ काम करने में काफी मजा आया।

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