'बाहुबली' से न करें 'पुली' की तुलना - श्रीदेवी
श्री देवी विमेन सेंट्रिक फिल्मों को रीडिफाइन करती रही हैं। शादी के बाद उन्होंने खुद को पूरी तरह परिवार को समर्पित कर दिया। ‘हल्ला बोल’ के गेस्ट रोेल को छोड़ दें, तो श्रीदेवी ने ‘इंग्लिश विंग्लिश’ से 15 सालों बाद कमबैक किया। अब उनकी मेगाबजट फिल्म ‘पुली’ आई है। यह
By Monika SharmaEdited By: Updated: Sun, 04 Oct 2015 11:20 AM (IST)
‘इंग्लिश विंग्लिश’ की भरपूर कामयाबी के बाद फिल्म ‘पुली’ में रानी की भूमिका में नजर आ रही हैं श्रीदेवी। एक साथ कई भाषाओं में रिलीज हुई इस मेगाबजट फिल्म और अपनी जिंदगी के लम्हों को उन्होंने साझा किया अमित कर्ण से...
श्री देवी विमेन सेंट्रिक फिल्मों को रीडिफाइन करती रही हैं। शादी के बाद उन्होंने खुद को पूरी तरह परिवार को समर्पित कर दिया। ‘हल्ला बोल’ के गेस्ट रोेल को छोड़ दें, तो श्रीदेवी ने ‘इंग्लिश विंग्लिश’ से 15 सालों बाद कमबैक किया। अब उनकी मेगाबजट फिल्म ‘पुली’ आई है। यह तमिल, तेलुगू, मलयालम के साथ-साथ हिंदी में भी रिलीज होगी।जागरण फिल्म फेस्टिवल में शशि कपूर को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्डप्राथमिकता में परिवार
इस फिल्म के बारे में श्रीदेवी बताती हैं, ‘पुली’ फैंटसी फिल्म है। यह हर वर्ग को पसंद आएगी। पुली का मतलब ‘टाइगर’ होता है। पर ‘बाहुबली’ के साथ इस फिल्म की तुलना न करें। दोनों फिल्मों की कहानी एक दूसरे से पूरी तरह अलग है। ‘पुली’ का स्केल अलग है। बहुत दिनों बाद इस तरह की फिल्म बनी है। फिल्म के लिए निर्देशक मुझसे काफी अर्से से मिलना चाहते थे। मैंने फिल्म की स्क्रिप्ट सुनी तो बहुत अच्छी लगी। मैैं फिल्म में रानी के किरदार में हूं। मेरे लिए इस तरह का किरदार निभाना दिलचस्प रहा है। ‘पुली’ की शूटिंग चेन्नई में हुई है और फिल्म सेट भी वहीं है। ‘इंग्लिश-विंग्लिश’ के बाद मुझे कई हिंदी फिल्मों के प्रस्ताव मिले, पर उनमें स्पार्क महसूस नहीं हुआ। मुझे सिर्फ काम के लिए फिल्मों में काम नहीं करना। मैंने अपने लिए कोई बाध्यता भी नहीं रखी है। मैैं गिनती के हिसाब से फिल्मों में काम नहीं करती हूं। कहानी मेरे लिए मायने रखती है। अगर स्क्रिप्ट अच्छी हो तो मैं साल में चार फिल्में भी कर सकती हूं। हां, मेरे लिए परिवार पहले है। मैैं अपने बच्चों के साथ समय बिताना चाहती हूं। परिवार को छोड़कर शूटिंग करना मेरे लिए व्यर्थ है।’
इस फिल्म के बारे में श्रीदेवी बताती हैं, ‘पुली’ फैंटसी फिल्म है। यह हर वर्ग को पसंद आएगी। पुली का मतलब ‘टाइगर’ होता है। पर ‘बाहुबली’ के साथ इस फिल्म की तुलना न करें। दोनों फिल्मों की कहानी एक दूसरे से पूरी तरह अलग है। ‘पुली’ का स्केल अलग है। बहुत दिनों बाद इस तरह की फिल्म बनी है। फिल्म के लिए निर्देशक मुझसे काफी अर्से से मिलना चाहते थे। मैंने फिल्म की स्क्रिप्ट सुनी तो बहुत अच्छी लगी। मैैं फिल्म में रानी के किरदार में हूं। मेरे लिए इस तरह का किरदार निभाना दिलचस्प रहा है। ‘पुली’ की शूटिंग चेन्नई में हुई है और फिल्म सेट भी वहीं है। ‘इंग्लिश-विंग्लिश’ के बाद मुझे कई हिंदी फिल्मों के प्रस्ताव मिले, पर उनमें स्पार्क महसूस नहीं हुआ। मुझे सिर्फ काम के लिए फिल्मों में काम नहीं करना। मैंने अपने लिए कोई बाध्यता भी नहीं रखी है। मैैं गिनती के हिसाब से फिल्मों में काम नहीं करती हूं। कहानी मेरे लिए मायने रखती है। अगर स्क्रिप्ट अच्छी हो तो मैं साल में चार फिल्में भी कर सकती हूं। हां, मेरे लिए परिवार पहले है। मैैं अपने बच्चों के साथ समय बिताना चाहती हूं। परिवार को छोड़कर शूटिंग करना मेरे लिए व्यर्थ है।’
एकाधिकार तो टूटेगा
श्रीदेवी कहती हैं, ‘हिंदी सिनेमा में बेहतरी के बहुतेरे बदलाव हो रहे हैं। इन तब्दीलियों ने दर्शकों की सोच भी बदली है। दर्शक नईतरह की फिल्मों को खुले तौर पर अपना रहे हैैं। वे महिला प्रधान और आर्ट फिल्में देखना पसंद कर रहे हैैं। महिलाप्रधान फिल्में बेहतरीन तरीके से व बड़े स्केल पर बन भी रही हैैं। वैसी फिल्मों में फिल्मकारों का भरोसा भी मजबूत हुआ है। यह अच्छी बात है। अब इससे हीरो का एकाधिकार टूटेगा। मैं नहीं मानती कि हेमा जी, रेखा जी और मेरे बाद साउथ की प्रतिभाओं ने हिंदी फिल्म जगत में अपनी छाप नहीं छोड़ी है। श्रुति हसन साउथ की हैैं। वे बहुत अच्छे तरीके से काम कर रही हैैं। वे प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं। मेरे लिए भाषा कभी बाधा नहीं रही है। मुझे सिर्फ अच्छी फिल्म करनी है। फिर चाहे वो कोई भी भाषा हो। मैैंने मलयालम फिल्मों से शुरुआत की थी। मेरे लिए अच्छा काम मायने रखता है।’जिम्मेदारियों में संतुलन
श्रीदेवी की बेटियों को लेकर बॉलीवुड में काफी दिलचस्पी है लेकिन खुद उनका इस बारे में नजरिया बहुत साफ है, ‘आज के बच्चे एक्टिंग में बहुत दिलचस्पी रखते हैैं लेकिन परिजन के तौर पर हमें उनका सही मार्गदर्शन करना है। मेरे लिए मेरी दोनों बेटियों की पढ़ाई सबसे जरूरी है। मेरी बड़ी बेटी जान्हवी ने अभी ग्रेजुएशन पूरा किया है और छोटी बेटी भी पढ़ रही है। इस समय एक्टिंग में जाना उनके लिए जल्दबाजी होगी। वे दोनों पहले पढ़ाई पूरी करेंगी। इसके बाद वे एक्टिंग में जाने का विचार करेंगी। एक मां अपने बच्चों के प्रति जिम्मेदारी नहीं भूल सकती है। एक कामकाजी महिला होने के बावजूद परिवार और फिल्मों के प्रति मैैंने अपनी हर जिम्मेदारी में बैंलेस बनाए रखा है।’
श्रीदेवी कहती हैं, ‘हिंदी सिनेमा में बेहतरी के बहुतेरे बदलाव हो रहे हैं। इन तब्दीलियों ने दर्शकों की सोच भी बदली है। दर्शक नईतरह की फिल्मों को खुले तौर पर अपना रहे हैैं। वे महिला प्रधान और आर्ट फिल्में देखना पसंद कर रहे हैैं। महिलाप्रधान फिल्में बेहतरीन तरीके से व बड़े स्केल पर बन भी रही हैैं। वैसी फिल्मों में फिल्मकारों का भरोसा भी मजबूत हुआ है। यह अच्छी बात है। अब इससे हीरो का एकाधिकार टूटेगा। मैं नहीं मानती कि हेमा जी, रेखा जी और मेरे बाद साउथ की प्रतिभाओं ने हिंदी फिल्म जगत में अपनी छाप नहीं छोड़ी है। श्रुति हसन साउथ की हैैं। वे बहुत अच्छे तरीके से काम कर रही हैैं। वे प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं। मेरे लिए भाषा कभी बाधा नहीं रही है। मुझे सिर्फ अच्छी फिल्म करनी है। फिर चाहे वो कोई भी भाषा हो। मैैंने मलयालम फिल्मों से शुरुआत की थी। मेरे लिए अच्छा काम मायने रखता है।’जिम्मेदारियों में संतुलन
श्रीदेवी की बेटियों को लेकर बॉलीवुड में काफी दिलचस्पी है लेकिन खुद उनका इस बारे में नजरिया बहुत साफ है, ‘आज के बच्चे एक्टिंग में बहुत दिलचस्पी रखते हैैं लेकिन परिजन के तौर पर हमें उनका सही मार्गदर्शन करना है। मेरे लिए मेरी दोनों बेटियों की पढ़ाई सबसे जरूरी है। मेरी बड़ी बेटी जान्हवी ने अभी ग्रेजुएशन पूरा किया है और छोटी बेटी भी पढ़ रही है। इस समय एक्टिंग में जाना उनके लिए जल्दबाजी होगी। वे दोनों पहले पढ़ाई पूरी करेंगी। इसके बाद वे एक्टिंग में जाने का विचार करेंगी। एक मां अपने बच्चों के प्रति जिम्मेदारी नहीं भूल सकती है। एक कामकाजी महिला होने के बावजूद परिवार और फिल्मों के प्रति मैैंने अपनी हर जिम्मेदारी में बैंलेस बनाए रखा है।’
फैंस की दीवानगी जब बन जाए सिरदर्दसांसों में बसा है अभिनय
क्या वे कभी राजनीति में सक्रिय होंगी? जवाब मिलता है, ‘राजनीति मेरे बस की बात नहीं है। मेरा फोकस परिवार और फिल्म है। मुझे राजनीति में दिलचस्पी भी नहीं है। यह जरूरी नहीं कि राजनीति में जाकर ही अच्छा काम किया जा सकता है। राजनीति के बाहर रहकर भी समाज के लिए काम करने के ढेरों विकल्प हैं। मैं एक्टिंग के अलावा कुछ नहीं कर सकती हूं। मैैं निर्देशन या लेखन की तरफ भी नहीं आ सकती हूं। यह बहुत मुश्किल काम है। मैैं बचपन से एक्टिंग करती आई हूं। ताउम्र एक्टिंग ही करूंगी, क्योंकि एक्टिंग मेरी सांसों में रची-बसी है।’खुश हूं हर भूमिका में
एक मां, पत्नी, बेटी और एक्टर बनने में मुझे कभी कठिनाई नहीं हुई। मैैं जीवन की हर भूमिका व जिम्मेदारी से खुश हूं। मैैं अपने बच्चों से बहुत प्यार करती हूं। मेरा मानना है कि बच्चों के साथ माता-पिता को दोस्त की तरह व्यवहार करना चाहिए। बच्चे भी मां से हर बात शेयर करें। मैं बहुत लकी हूं। वे मेरे साथ समय बिताना पसंद करते हैैं और मेरा आदर भी करते हैैं।असली था वो किरदार
मुझे हमेशा अच्छे निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिला। गौरी शिंदे की फिल्म ‘इंग्लिश-विंग्लिश’ से मैंने हिंदी फिल्मों में वापसी की। मेरे लिए ‘इंग्लिश-विंग्लिश’ से ज्यादा कोई भी रियल किरदार नहीं है। इस फिल्म में मेरा किरदार असली जिंदगी से प्रेरित रहा है। हर कोई इस किरदार से आसानी से जुड़ पाता है। निर्देशक गौरी शिंदे ने बखूबी इस किरदार को बनाया था।खुश रहना है पसंद
मौजूदा दौर की महिलाप्रधान फिल्मों की बात करूं तो मुझे ‘क्वीन’ और ‘तनु वेड्स मनु’ बहुत पसंद हंै। कंगना तो कमाल कर रही हैं। पहले भी महिलाप्रधान फिल्में बनती थी। पर वे अलग तरह से बनाई जाती थीं। ‘नगीना’, ‘चांदनी’ भी महिलाप्रधान फिल्में थी। ‘लम्हे’ फिल्म में मेरा किरदार मुझे काफी पसंद है। ‘चालबाज’ में मैैंने चुलबुली लड़की का किरदार निभाया था। मैैं लोगों को खुश रखना पसंद करती हूं और हमेशा खुशनुमा माहौल में रहना चाहती हूं।आइएसएल का शानदार ओपनिंग, देखें तस्वीरें
क्या वे कभी राजनीति में सक्रिय होंगी? जवाब मिलता है, ‘राजनीति मेरे बस की बात नहीं है। मेरा फोकस परिवार और फिल्म है। मुझे राजनीति में दिलचस्पी भी नहीं है। यह जरूरी नहीं कि राजनीति में जाकर ही अच्छा काम किया जा सकता है। राजनीति के बाहर रहकर भी समाज के लिए काम करने के ढेरों विकल्प हैं। मैं एक्टिंग के अलावा कुछ नहीं कर सकती हूं। मैैं निर्देशन या लेखन की तरफ भी नहीं आ सकती हूं। यह बहुत मुश्किल काम है। मैैं बचपन से एक्टिंग करती आई हूं। ताउम्र एक्टिंग ही करूंगी, क्योंकि एक्टिंग मेरी सांसों में रची-बसी है।’खुश हूं हर भूमिका में
एक मां, पत्नी, बेटी और एक्टर बनने में मुझे कभी कठिनाई नहीं हुई। मैैं जीवन की हर भूमिका व जिम्मेदारी से खुश हूं। मैैं अपने बच्चों से बहुत प्यार करती हूं। मेरा मानना है कि बच्चों के साथ माता-पिता को दोस्त की तरह व्यवहार करना चाहिए। बच्चे भी मां से हर बात शेयर करें। मैं बहुत लकी हूं। वे मेरे साथ समय बिताना पसंद करते हैैं और मेरा आदर भी करते हैैं।असली था वो किरदार
मुझे हमेशा अच्छे निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिला। गौरी शिंदे की फिल्म ‘इंग्लिश-विंग्लिश’ से मैंने हिंदी फिल्मों में वापसी की। मेरे लिए ‘इंग्लिश-विंग्लिश’ से ज्यादा कोई भी रियल किरदार नहीं है। इस फिल्म में मेरा किरदार असली जिंदगी से प्रेरित रहा है। हर कोई इस किरदार से आसानी से जुड़ पाता है। निर्देशक गौरी शिंदे ने बखूबी इस किरदार को बनाया था।खुश रहना है पसंद
मौजूदा दौर की महिलाप्रधान फिल्मों की बात करूं तो मुझे ‘क्वीन’ और ‘तनु वेड्स मनु’ बहुत पसंद हंै। कंगना तो कमाल कर रही हैं। पहले भी महिलाप्रधान फिल्में बनती थी। पर वे अलग तरह से बनाई जाती थीं। ‘नगीना’, ‘चांदनी’ भी महिलाप्रधान फिल्में थी। ‘लम्हे’ फिल्म में मेरा किरदार मुझे काफी पसंद है। ‘चालबाज’ में मैैंने चुलबुली लड़की का किरदार निभाया था। मैैं लोगों को खुश रखना पसंद करती हूं और हमेशा खुशनुमा माहौल में रहना चाहती हूं।आइएसएल का शानदार ओपनिंग, देखें तस्वीरें