क्या 'बेवकूफियां' एक प्रेम कहानी है?
मुंबई। बड़ी और पूरी भव्यता के साथ ही उच्च वर्ग की कहानी पर आधारित फिल्में बनाने वाले यशराज बैनर ने अब अपना ध्यान मध्य वर्ग की ओर मोड़ दिया है। इस बैनर ने इसी वर्ग को ध्यान में रखकर हाल में फिल्म 'शुद्ध देसी रोमांस' का निर्माण किया। यशराज से एक बार फिर ऐसे ही वर्ग की
By Edited By: Updated: Wed, 12 Mar 2014 03:59 PM (IST)
मुंबई। बड़ी और पूरी भव्यता के साथ ही उच्च वर्ग की कहानी पर आधारित फिल्में बनाने वाले यशराज बैनर ने अब अपना ध्यान मध्य वर्ग की ओर मोड़ दिया है। इस बैनर ने इसी वर्ग को ध्यान में रखकर हाल में फिल्म 'शुद्ध देसी रोमांस' का निर्माण किया। यशराज से एक बार फिर ऐसे ही वर्ग की कहानी फिल्म 'बेवकूफियां' में आ रही है। इसमें हीरोइन सोनम कपूर हैं। बातचीत सोनम कपूर से।
आप खूबसूरत हैं। फिल्मी खानदान से आती हैं। फिर भी आप वहां नहीं हैं, जिसके लिए डिजर्व करती हैं? सही कहा आपने, लेकिन मैं प्लानिंग में यकीन नहीं करती। वैसा किया होता, तो आज मेरा करियर किसी और मुकाम पर होता। बहरहाल फिल्म 'बेवकूफियां' की स्क्रिप्ट मुझे दो साल पहले मिली थी। उन दिनों मंदी का दौर था। लोग जॉब से निकाले जा रहे थे। वे डिमोट हो रहे थे। तब मेरे भी कई दोस्त थे, जो उस फेज से गुजर रहे थे। हबीब फैजल वैसी ही कहानियां लिखते हैं, जिनसे असल जिंदगी रिफ्लेक्ट होती है। अब देखा जा रहा है कि हमारे यहां मिडिल क्लास काफी इमर्ज हो रहा है। इस फिल्म के हीरो की जॉब चली जाती है। सिर्फ हीरोइन की जॉब बच पाती है। ऐसे में उसका प्यार सरवाइव कर पाता है कि नहीं, फिल्म इसी बारे में है। इसमें ऋषि कपूर और आयुष्मान खुराना मेरे साथ हैं। आज कल ऐसा होता भी है कि लड़कियां अपने ब्वॉयफ्रेंड के मुकाबले ज्यादा कमाती हैं। ऐसे में मैंने इस कहानी से काफी जुड़ाव महसूस किया। वैसे भी 'रांझणा' के बाद मैं ऐसी फिल्म करना चाहती थी, जिसमें कम से कम ड्रामा हो। आपकी व्यक्तिगत जिंदगी में पैसा कितना अहमियत रखता है?
मेरी मां का कहना है कि पैसा बिल्कुल अपने किसी करीबी की तरह होता है। वह जब आपके पास होता है, तो आपको उसकी अहमियत महसूस नहीं होती, जब वह आपकी जिंदगी में नहीं होता, तब उसकी कमी महसूस होती है। प्यार अनकंडीशनल होता है, ऐसा प्यार करने वाले सोचते हैं, लेकिन उनके परिजन प्यार से ज्यादा पैसे व स्थायित्व को अहमियत देते हैं। वैसे परिजनों की चिंता को आप कितना जायज मानती हैं?
मेरे ख्याल से ज्यादातर युवा गलत वजहों से एक-दूसरे से अपने परिजनों की मर्जी के खिलाफ जाते हैं। वे लड़कों या लड़कियों की जॉब व स्टेटस देखकर शादी करते हैं। दो या तीन साल बाद जब जॉब चली जाती है, तब न तो वह रुतबा होता है, न ही प्यार रह पाता है। ..तो अपनी सोसाइटी में हाउस हस्बैंड की अवधारणा को जोर देना चाहिए? मेरे ख्याल से पति-पत्नी दोनों को काम करना चाहिए। वैसे भी अब इंडिया में काम करने के मौके कम नहीं हैं। आप पहले भी बड़े बैनरों के साथ काम कर चुकी हैं। यशराज के साथ पहला एसोसिएशन है आपका। कैसे देखती हैं इसे? मैं बैनर देखकर फिल्में साइन नहीं करती। मेरे पापा भी इस बैनर के साथ काम कर चुके हैं। मेरे ख्याल से सभी बड़े बैनर कमोबेश एक ही तरीके से काम करते हैं। आपका किताबों और दिल्ली से वास्ता गहराता जा रहा है। आपकी आने वाली फिल्म भी लेखिका अनुजा चौहान की किताब पर आधारित है। इस इत्तफाक को कैसे देखती हैं? यह सच में एक हसीन इत्तफाक है, क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर भी मुझे किताबों से बहुत प्यार है। आज की जेनरेशन का किताबों से मोहभंग हुआ लगता है, जो अच्छी बात नहीं है। दिल्ली पता नहीं क्यों मेरी फिल्मों का अभिन्न हिस्सा बनती जा रही है। शायद मैं मूल रूप से नॉर्थ इंडियन लड़की हूं, तो वैसी लड़की का कैरेक्टर प्ले करने का मौका मिल रहा है। इन दिनों कौन सी किताब पढ़ रही हैं? देवदत्त पटनायक की किताबों से मुझे बहुत ही लगाव है। आध्यात्मिक विषयों पर उनकी पकड़ और लेख कमाल के हैं। पुराण, उपनिषद के कहानियों को वे बड़े रोचक तरीके से पेश करते हैं। उनकी 'प्रेग्नेंट किंग' मुझे बहुत पसंद है। उनके अलावा अमिताभ घोष, विक्रम सेठ की लिखी किताबें भी पसंद आती हैं। हिंदी साहित्य से कितना लगाव है आपका? दुर्भाग्य से मेरी पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में हुई है, तो हिंदी साहित्य से जरा कम रिश्ता हुआ, लेकिन जो अच्छा लगता है, मैं पढ़ती हूं। असल जिंदगी में किस किस्म की 'बेवकूफियां' आपने की हैं? यही कि जो भी सोचती हूं, वह जुबां पर आ जाता है। जो सोचती हूं, वह बोल जाती हूं। ऐसे में लोगों को लगता है कि मैं बेवकूफ हूं। मैं तो किसी को अप्रैल फूल भी नहीं बनाती। हां, मेरे भाई जरूर लोगों के साथ शरारतें करते रहते हैं। (अमित कर्ण)