'ओह माय गॉड' का जलवा
अजय ब्रह्मात्मज नई दिल्ली। परेश रावल गुजराती और हिंदी में 'कांजी वर्सेस कांजी' नाट सालों से करते आए हैं। उनके शो में हमेशा भीड़ रहती है। हर शो में वे कुछ नया जोड़ते हैं। उसे अद्यतन करत रहते हैं। अब उस पर 'ओह माय गॉड' फिल्म बन गई। इसे उमेश शुक्ला ने निर्देशित किया है। फिल्म की जरूरत के हिसाब से स्क्रिप्ट में
By Edited By: Updated: Thu, 04 Oct 2012 12:42 PM (IST)
अजय ब्रह्मात्मज
नई दिल्ली। परेश रावल गुजराती और हिंदी में 'कांजी वर्सेस कांजी' नाट सालों से करते आए हैं। उनके शो में हमेशा भीड़ रहती है। हर शो में वे कुछ नया जोड़ते हैं। उसे अद्यतन करत रहते हैं। अब उस पर 'ओह माय गॉड' फिल्म बन गई। इसे उमेश शुक्ला ने निर्देशित किया है। फिल्म की जरूरत के हिसाब से स्क्रिप्ट में थोड़ी तब्दीली की गई है। नाटक देख चुके दर्शकों को फिल्म का अंत अलग लगेगा। वैसे नाटक में इस अंत की संभावना जाहिर की गई है।उमेश शुक्ल के साथ परेश रावल और अक्षय कुमार के लिए 'ओह माय गॉड' पर फिल्म बनाना साहसी फैसला है। धर्मभीरू देश केदर्शकों के बीच ईश्वर से संबंधित विषयों पर प्रश्नचिह्न लगाना आसान नहीं है। फिल्म बड़े सटीक तरीके से किसी भी धर्म की आस्था पर चोट किए बगैर अपनी बात कहती है। फिल्म का सारा फोकस ईश्वर के नाम पर चल रहे ताम-झाम और ढोंग पर है। धर्मगुरू बने मठाधीशों के धार्मिक प्रपंच को उजागर करती हुई 'ओह माय गॉड' दर्शकों को स्पष्ट संदेश देती है कि ईश्वर की आराधना की रुढि़यों और विधि-विधानों से निकलने की जरूरत है। कांजी भाई घोर नास्तिक व्यक्ति हैं। वे हर मौके पर ईश्वर केनाम पर चल रहे ढोंग का मजाक उड़ाते हैं। वे अपने वाजिब सवालों से ईश्वर की सत्ता को चुनौती देते हैं। उनके सवालों का मुख्य स्वर है कि अगर ईश्वर है तो आखिर क्यों मनुष्य की मुश्किलें बनी हुई हैं? मनुष्य पर हो रहे अत्याचार को अपने चमत्कार से वह क्यों नहीं खत्म नहीं करता? ऐसा लगता है कि फिल्म आस्तिकों व आस्थाओं पर चोट करती है, लेकिन फिल्म का अंतिम संदेश आस्तिकाओं के पक्ष में है। दरअसल, 'ओह माय गॉड'आस्था के तालाब में उग आई रुढि़यों की जलकुंभी की सफाई कर देती है। यह कतई न समझें न कि फिल्म ईश्वर के विरोध में है। यह फिल्म ईश्वर के एजेंट और एजेंसी के खिलाफ है। उसके नाम पर चल रहे प्रपंच का पर्दाफाश करती है। इस फिल्म का संदेश आम दर्शकों तक पहुंचे तो समाज के लिए बेहतर है। फिल्म मुख्य रूप से परेश रावल के किरदार कांजी भाई पर टिकी है। उन्होंने दृश्यों के अनुरूप इसे निभाया है। उनकी पकड़ कहीं भी कमजोर नहीं होती। कृष्ण के रूप में अक्षय कुमार के आगमन के बाद दोनों कलाकारों की संगत फिल्म का आनंद बढ़ा देती है। सुपरबाइक पर शूट पहने हुए कृष्ण के रूप में कृष्ण का आधुनिक रूप खुलता नहीं। लेखक-निर्देशक ने कृष्ण को अच्छी तरह से फिल्म में पिरोया है। अक्षय कुमार ने इस किरदार को जिम्मेदार तरीके से निभाया है। फिल्म के सहयोगी किरदार सिद्धेश्वर, लीलाधर और गोपी रोचक और मजेदार बनाते हैं। मिथुन चक्रवर्ती और गोविंद नामदेव ने अपने संवादों और भावों से फिल्म की रोचकता बढ़ा दी है। दोनों फिल्म में एक ही परिधान और भावमुद्रा में रहे हैं,लेकिन सिद्ध अभिनेता की तरह उन्होंने अपनी भंगिमाओं से बुहत कुछ कह दिया है। कांजीभाई की पत्नी सुशीला की भूमिका में लुबना सलीम जंचती हैं। कांजीभाई के सहयोगी महादेव साथ देते हैं।ओह माय गॉड की खूबी इसके संवादों और अक्षय-परेश की केमिस्ट्री से निखरी है। किसी भी धर्म और उससे जुड़ी आस्था का निरादर न करते हुए भी फिल्म उपयोगी संदेश देती है। फिल्म में स्पष्ट कहा गया है कि किसी का धर्म छीनोगे तो वे तुम्हें धर्म बना देंगे।
साढ़े तीन स्टारअवधि-1 X2 मिनट
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