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फिल्म रिव्यू: हवा हवाई (4 स्टार)

अमोल गुप्ते में बाल सुलभ जिज्ञासा और जीत की आकांक्षा है। उनके बाल नायक किसी होड़ में शामिल नहीं होते, लेकिन अपनी जीतोड़ कोशिश से स्वयं ही सबसे आगे निकल जाते हैं। इस वजह से उनकी फिल्में नैसर्गिक लगती हैं। फिल्म निर्देशन और निर्माण किसी विचार की बेहतरीन तकनीकी प्रोसेसिंग है, जिसमें कई बार तकनीक हावी होने से कृत्रिमता आ जाती है। अमोल गुप्ते इस कृत्रिमता से अपनी फिल्मों को बचा लेते हैं।

By Edited By: Updated: Fri, 09 May 2014 03:01 PM (IST)
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मुंबई (अजय ब्रह्मात्मज)।

प्रमुख कलाकार: पार्थो गुप्ते, साकिब सलीम, प्रज्ञा यादव और मकरंद देशपांडे।

निर्देशक: अमोल गुप्ते।

स्टार: चार।

अमोल गुप्ते में बाल सुलभ जिज्ञासा और जीत की आकांक्षा है। उनके बाल नायक किसी होड़ में शामिल नहीं होते, लेकिन अपनी जीतोड़ कोशिश से स्वयं ही सबसे आगे निकल जाते हैं। इस वजह से उनकी फिल्में नैसर्गिक लगती हैं। फिल्म निर्देशन और निर्माण किसी विचार की बेहतरीन तकनीकी प्रोसेसिंग है, जिसमें कई बार तकनीक हावी होने से कृत्रिमता आ जाती है। अमोल गुप्ते इस कृत्रिमता से अपनी फिल्मों को बचा लेते हैं। अमोल गुप्ते की 'हवा हवाई' के बाल कलाकार निश्चित ही उस परिवेश से नहीं आते हैं, जिन किरदारों को उन्होंने निभाया है। फिर भी उनकी मासूमियत और प्रतिक्रिया सहज और सरल लगती है। उनके अभिनय में कथ्य या उद्देश्य का दबाव नहीं है। एक मस्ती है।

कुछ सपने सोने नहीं देते। अर्जुन हरिश्चंद्र वाघमारे उर्फ राजू का भी एक सपना है। पिता की मृत्यु के बाद वह एक चायवाले के यहां काम करता है। कुछ बच्चों को रोलरब्लेडिंग करते देख कर उसकी भी इच्छा होती है कि अगर मौका मिले तो वह भी अपने पांवों पर सरपट भाग सकता है। पहली समस्या तो यही है कि रोलरब्लेड कहां से आए? उसकी कीमत के पैसे तो हैं नहीं। राजू अपना सपना दोस्तों से बांटता है तो वह सभी का सपना हो जाता है। कचरे से रोलरब्लेड तैयार किया जाता है। राजू का जोश देख कर बच्चों का कोच लकी विस्मित रह जाता है। वह उसके सपने को अपना लेता है और तय करता है कि वह राजू को रोलरब्लेडिंग सिखाने के साथ विजेता भी बनाएगा। लकी और राजू की कोशिशों में अड़चनें आती हैं, लेकिन आखिरकार उनके सपने पूरे होते हैं।

अमोल गुप्ते ने 'हवा हवाई' को विश्वसनीय और वास्तविक तरीके से पेश किया है। बच्चों का उत्साह और जिंदगी के प्रति उनका रवैया वंचितों के सुख और सपनों की झलक देता है। संपन्न बच्चों के प्रति उनके मन में ईष्र्या नहीं है। वे हीनभावना से भी ग्रस्त नहीं हैं। बच्चों की इस दुनिया को हम बड़ों की नजरों से देखते हैं तो उनमें बड़ा फर्क और भेद नजर आता है। अमोल गुप्ते इन बच्चों के प्रति संवेदनशील हैं। उनके लिए हर बच्चा मासूम और शुद्ध है। उन्होंने राजू के सपनों के लिए संपन्न बच्चों के ग्रे नहीं किया है। यह इस फिल्म की खूबसूरती है।

पार्थ ने राजू के किरदार को चरित्रगत भोलेपन के साथ जिया है। उसके समूह के बाकी बच्चे भी अपनी तरह से स्मार्ट और तेज हैं। बाल कलाकारों के चयन में अमोल गुप्ते ने आवश्यक सावधानी बरती है कि सभी बच्चे एक समूह और परिवेश के दिखें। पार्थ के अभिनय में किसी प्रकार का बनावटीपन नहीं है। इस फिल्म में साकिब सलीम का अभिनय उल्लेखनीय है। सधे निर्देशक के हाथों हमेशा कलाकार निखर जाते हैं। पलकों, पुतलियों और भंगिमाओं से साकिब सलीम ने लकी को भावपूर्ण तरीके से पर्दे पर उतारा है। गौर करें तो इस किरदार को अतिनाटकीय ढंग से भी चित्रित किया जा सकता था, लेकिन अमोल गुप्ते के निर्देशन में साकिब सलीम संयमित रहते हैं। लकी के किरदार से वे प्रभावित करते हैं। राजू की मां बनी नेहा जोशी के पास अधिक संवाद नहीं हैं, फिर भी वह अपनी भाव-भंगिमाओं से सब कुछ व्यक्त करती हैं। सिद्ध कलाकार छोटे से छोटे दृश्य में भी अपनी प्रतिभा जाहिर कर देते हैं।

'हवा हवाई' देखने की योजना बनाते समय सबसे पहले इस धारणा को तोड़ देना चाहिए कि आप बच्चों की फिल्म देखने जा रहे हैं। अगर बच्चे नायक हैं तो क्या फिल्म बच्चों की हो जाती है? 'हवा हवाई' बाल मन की मर्मस्पर्शी फिल्म है, जो हमारे समाज में मौजूद सद्गुणों को लेकर चलती है। फिल्म का निर्मल भाव आनंदित करता है। इसे सभी उम्र के दर्शक देख सकते हैं।

बच्चों के साथ फिल्म निर्देशित करते समय अमोल गुप्ते खास सावधानी बरतते हैं। उनके समय और सुविधा के हिसाब से ही वे शूटिंग करते हैं। इस वजह से उनकी फिल्मों में एक अनगढ़पन भी रहता है। अपनी तकनीकी कुशलता और सोच की स्पष्टता से अमोल गुप्ते शिल्प की इस बाधा से उबर जाते हैं।

अवधि: 120 मिनट

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