फिल्म रिव्यू: षमिताभ (साढ़े तीन स्टार)
'षमिताभ' अनोखी व प्रयोगवादी किस्सागोई करने को मशहूर फिल्मकार आर. बाल्की की फिल्म है। 'षमिताभ' की कहानी एक गूंगे शख्स की है, जो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का सुपरस्टार बन जाता है। वह भी तब, जब वह न किसी फिल्मकार का सगा-संबंधी है। न उसके पास संसाधन हैं। न वह टिपिकल
By rohit guptaEdited By: Updated: Fri, 06 Feb 2015 09:42 AM (IST)
अमित कर्ण
प्रमुख कलाकार: अमिताभ बच्चन, धनुष, अक्षरा हासन और रेखा।निर्देशक: आर बाल्कि
संगीतकार: इलैयाराजा
स्टार: 3.5
'षमिताभ' अनोखी व प्रयोगवादी किस्सागोई करने को मशहूर फिल्मकार आर. बाल्की की फिल्म है। 'षमिताभ' की कहानी एक गूंगे शख्स की है, जो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का सुपरस्टार बन जाता है। वह भी तब, जब वह न किसी फिल्मकार का सगा-संबंधी है। न उसके पास संसाधन हैं। न वह टिपिकल हीरो जैसा दिखता ही है। वह फिर भी कैसे सितारा बनता है, उस सफर को बाल्की ने विश्वसनीय तरीके से पोट्रे किया है। 'षमिताभ' बड़ी खूबसूरती से हिंदी फिल्मकारों व सितारों की लकीर के फकीर वाली सोच व कार्यप्रणाली पर करारा प्रहार कर जाती है। वह माइंडलेस मसाला फिल्मों पर तंज कसते हुए उन्हें आड़े हाथों लेती है। फिल्म में अमिताभ बच्चन के असल जिंदगी से जुड़े अनुभव भी हैं। उन्हें असल जिंदगी में हिंदी फिल्म जगत को बॉलीवुड कहना पसंद नहीं है। उसे एक संवाद से उनका किरदार फिल्म में कह जाता है। फिल्म यह सवाल भी उठाती है कि क्या एक आम चेहरे-मोहरे वाला शख्स कभी सुपरस्टार नहीं बन सकता?
'षमिताभ' में किरदारों की असुरक्षा, अविश्वास और अहम की गुत्थमगुत्थी है। यह ग्लैमर जगत में नाम और दाम कमाने को संघर्षरत दो शख्स दानिश(धनुष) और अमिताभ सिन्हा(अमिताभ बच्चन) की गाथा है। मुंबई के पास इगतपुरी इलाके का दानिश गूंगा, गरीब और आम चेहरे-मोहरे वाला शख्स है, पर वह बचपन से फिल्मों का दीवाना है। उसे जिंदगी में हीरो ही बनना है। उसकी मां उसके इस मुश्किल ख्वाब से परेशान और चिंतित है। दानिश बड़ा होता है। बस ड्राईवर बन अपनी मां को सहारा देना चाहता है कि उसकी मां चल बसती है। उसके बाद वह सपनों के शहर मुंबई आता है। वहां येन-केन-प्रकारेण एक फिल्म की एडी अक्षरा(अक्षरा हासन) से टकाराता है। अक्षरा उसके जुनून से काफी प्रभावित होती है। वह उसकी मदद करना चाहती है, मगर दानिश का गूंगापन आड़े आ जाता है। फिर तकनीक की मदद से दानिश इस काबिल बन पाता है कि वह किसी और की आवाज अपने मुंह से निकाल सकता है। फिर वे निकल पड़ते हैं दमदार आवाज की तलाश में। उस सफर में वे एक कुंठित, सनकी और शराबी वृद्ध अमिताभ सिन्हा से टकराते हैं, जो खुद 40 साल पहले हीरो बनने आया था। पर उसकी आवाज के चलते उसे काम नहीं मिलता। ऐसे में दोनों के कॉमन इंटरेस्ट मेल खाते हैं और फिर निकल पड़ते हैं हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से अपना बकाया लेने। उनकी जुगलबंदी रंग लाती है। दानिश का नया नाम षमिताभ रखा जाता है और पहली ही फिल्म सुपरहिट हो जाती है। आगे भी मतांतर के बावजूद दोनों कामयाब प्रोजेक्ट करते हैं, लेकिन दोनों के बीच जल्द ही अहम और क्रेडिट लेने के टकराव का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है।किसी भी फिल्म का रिव्यू पढ़ने के लिए क्लिक करें
फिल्म पूरी तरह अमिताभ बच्चन के नाम है। वे अपनी दमदार संवाद अदायगी से बताते हैं कि 70 पार होने के बावजूद उनमें अब भी काफी ऊर्जा और उत्साह बाकी है। अब यह फिल्मकारों पर निर्भर करता है कि वे उनके किन शेड्स को उभार और बाहर निकाल पाने में सक्षम है। 'षमिताभ' इस ओर इशारा करती है कि अमिताभ बच्चन को उनके कद की स्क्रिप्ट दें। धनुष ने अपने किरदार से अमिताभ बच्चन की बुलंद आवाज और चेहरे पर हाव-भाव को ठीक-ठाक तौर पर कैरी किया है। अक्षरा हासन इस फिल्म से अपना डेब्यू कर रही हैं। उन्होंने असिस्टेंट डायरेक्टर यानी एडी की भूमिका का निर्वहन किया है। वे बड़ी स्वीट लगी हैं, लेकिन उन्हें अपनी अदाकारी पर अभी और काम करना होगा।
फिल्म का निर्देशन असाधारण है। आर. बाल्की ने 156 मिनट लंबी फिल्म को बोझिल नहीं होने दिया है। उन्होंने परिस्थितियों का ताना-बाना बेहद रोचक और तार्किक बुना है। फिल्म में अभिनेत्री रेखा को सीन पर ला अमिताभ बच्चन की आवाज बोलने वाले शख्स को बेस्ट एक्टर दिलवाने का आइडिया अनोखा और खूबसूरत बन पड़ा है। स्वानंद किरकिरे ने अपनी प्रतिष्ठा के मुताबिक सीन को आगे बढ़ाने में मदद करने वाले गाने लिखे हैं। इलैयाराजा का संगीत कर्णप्रिय है। पीसी श्रीराम की सिनेमैटोग्राफी उम्दा है।अवधि: 156 मिनट40 साल बाद पाकिस्तान में रिलीज होगी शोले
फिल्म का निर्देशन असाधारण है। आर. बाल्की ने 156 मिनट लंबी फिल्म को बोझिल नहीं होने दिया है। उन्होंने परिस्थितियों का ताना-बाना बेहद रोचक और तार्किक बुना है। फिल्म में अभिनेत्री रेखा को सीन पर ला अमिताभ बच्चन की आवाज बोलने वाले शख्स को बेस्ट एक्टर दिलवाने का आइडिया अनोखा और खूबसूरत बन पड़ा है। स्वानंद किरकिरे ने अपनी प्रतिष्ठा के मुताबिक सीन को आगे बढ़ाने में मदद करने वाले गाने लिखे हैं। इलैयाराजा का संगीत कर्णप्रिय है। पीसी श्रीराम की सिनेमैटोग्राफी उम्दा है।अवधि: 156 मिनट40 साल बाद पाकिस्तान में रिलीज होगी शोले