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रिव्यू: इमोशनल और सोशल सस्पेंस है तलाश

लगभग तीन सालों के बाद बड़े पर्दे पर लौटे आमिर खान 'तलाश' से अपने दर्शकों और प्रशंसकों को नए ढंग से रिझाते हैं। 'तलाश' है हिंदी सिनेमा ही, लेकिन रीमा कागती और आमिर खान ने उसे अपडेट कर दिया है। सस्पेंस के घिसे-पिटे फार्मेट को छोड़ दिया है और बड़े ही चुस्त तरीके से नए तत्व जोड़ दिए हैं। छल, प्रपंच, ह

By Edited By: Updated: Fri, 30 Nov 2012 05:19 PM (IST)
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लगभग तीन सालों के बाद बड़े पर्दे पर लौटे आमिर खान 'तलाश' से अपने दर्शकों और प्रशंसकों को नए ढंग से रिझाते हैं। 'तलाश' है हिंदी सिनेमा ही, लेकिन रीमा कागती और आमिर खान ने उसे अपडेट कर दिया है। सस्पेंस के घिसे-पिटे फार्मेट को छोड़ दिया है और बड़े ही चुस्त तरीके से नए तत्व जोड़ दिए हैं। छल, प्रपंच, हत्या, दुर्घटना और बदले की यह कहानी अपने अंतस में इमोशनल और सोशल है। रीमा कागती और जोया अख्तर ने संबंधों के चार गुच्छों को जोड़कर फिल्म का सस्पेंस रचा है।

'तलाश' मुंबई की कहानी है। शाम होने के साथ मुंबई की जिंदगी करवट लेती है। रीमा कागती ने अपने कैमरामैन मोहनन की मदद से बगैर शब्दों में रात की बांहों में अंगड़ाई लेती मुंबई को दिखाया है। आरंभ का विजुअल कोलाज परिवेश तैयार कर देता है। फिल्म एक दुर्घटना से शुरू होती है। मशहूर फिल्म स्टार ओंकार कपूर की गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाता है। उनकी कार सीफेस रोड से सीधे समुद्र में चली गई है। मुंबई पुलिस के अन्वेषण अधिकारी सुर्जन सिंह शेखावत (आमिर खान) की तहकीकात आरंभ होती है। फिल्मसिटी से दुर्घटना स्थल के बीच में एक घंटे तक ओंकार कपूर कहां रहे? इसी तलाश में दुर्घटना का राज और आगे का रहस्य छुपा है।

हर नया सुराग सुर्जन की फिर से अंधेरे में डाल देता है। निजी व्यथा और मानसिक ग्रंथि से जूझ रहा पुलिस अधिकारी हाथ में लिए मामले की गुत्थी नहीं सुलझ पा रहा है। रेड लाइट एरिया की रोजी उनकी तकहकीकात में मदद करती है। लगता है कि हम जल्दी ही वजह जान जाएंगे, लेकिन फिर से रहस्य फिसल जाता है। कहानी नई गली में मुड़ जाती है। रीमा कागती और जोया अख्तर ने 'तलाश' की मुख्य थीम के साथ चार कहानियों को जोड़ा है। इन चारों कहानियों के किरदारों और उनके परस्पर संबंधों का कहानी से जुड़ाव है। सुर्जन-रोशनी, सुर्जन-रोजी, तेहमूर की ख्वाहिशें, शशि की ब्लेकमेलिंग, पुलिस अधिकारी की जिंदगी और जिम्मेदारी, वेश्या की हशिए की दशा ़ ़ ़ इन सभी के मिश्रण से कहानी गाढ़ी और रोचक होती है। ऊपर से सस्पेंस तो है ही। लेखक-निर्देशक की खूबी है कि वे अंत तक सस्पेंस बनाए रखने में कामयाब होते हैं।

सिनेमा सस्पेंडेड रियलिटी का माध्यम है। काल्पनिक किरदारों पर यकीन करें तो कुछ कहानियों में अधिक आनंद आता है। स्पाइडरमैन, सुपरमैन, साइंस फिक्शन, हॉरर, भूत-प्रेत आदि से रची फिल्मों में घटनाओं और प्रसंगों का तार्किक आधार नहीं होता। एक फंतासी होती है, जो सिनेमाघरों के अंधेरे में दर्शकों को फिल्म की अवधि तक दर्शकों को यथार्थ में निर्लबित कर देती है। 'तलाश' का सस्पेंस इसी निलंबन पर टिका है। हिंदी फिल्मों में सस्पेंस और मर्डर मिस्ट्री के पारंपरिक निर्वाह के आदी दर्शकों को 'तलाश' की नवीनता चौंकाएगी। गौर करें कि यहां ऐसी दुर्घटना का रहस्य सुलझाना है, जो हत्या या हादसा हो सकती है।

आमिर खान ने सुर्जन की भूमिका पूरी संजीदगी के साथ निभाई है। मनोव्यथा और मनोदशा को व्यक्त करने में वे कुशल हैं। भावनाओं के आवेश में वे फफक पड़ते हैं। कठोर पुलिस अधिकारी की भावात्मक संवेदना छूती है। रानी मुखर्जी ने पत्‍‌नी रोशनी की भूमिका में सादगी बरती है। पॉजीटिव सोच की रोशनी अतीत को भींचकर भी वर्तमान में रहना चाहती है। करीना कपूर ने रोजी से मिलता-जुलता किरदार 'चमेली' में निभाया था। यहां वह उसे नया विस्तार देती हैं। 'तलाश' नवाजुद्दीन सिद्दिकी और राज कुमार यादव के दमदार किरदारों और अभिनय से संपन्न हुई है। दोनों उम्दा अभिनेता हैं। उन्हें पूरा अवसर मिला है। शशि की भूमिका निभा रहे कलाकार का अभिनय भी भावपूर्ण है। फिल्म के सहयोगी कलाकारों का चुनाव परिवेश और कहानी के अनुकूल है।

'तलाश' मोहनन के छायांकन और राम संपत के संगीत से सजी है। कुछ समय के बाद जावेद अख्तर के गीतों में नए भाव और पद सुनाई पड़े हैं। उन्हें राम संपत ने जावेद अख्तर के शब्दों को मधुर धुनों में पिरोया है। 'तलाश' के गीत आयटम सौंग या म्यूजिक की तरह नहीं हैं। इस फिल्म के कुछ संवादों का कटाक्ष समाज और सिस्टम की पोल खोल देता है। रोजी से सुर्जन सिंह कहता है, 'कानून सभी के लिए बराबर होता है।' रोजी हंस देती है और कहती है, 'आप बहुत हंसाते हो साहब।' या फिर अपने धंधे को गैरकानूनी बताते हुए जब रोजी कहती है कि हम तो किसी गिनती में नहीं आते, फिर कोई हमारी चिंता क्यों करे?

-अजय ब्रह्मात्मज

रेटिंग- साढ़े तीन स्टार

अवधि - 140 मिनट

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