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सावधान! रीयल्टी में बुलबुले की आहट

रीयल्टी क्षेत्र के लिए बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कर्ज से संबंधित जोखिमों के मद्देनजर रिजर्व बैंक ने एक बार फिर सख्त रुख दिखाया है। आरबीआइ ने हाल ही में जारी अपनी अधिसूचना में बैंकों को निर्देश दिया है कि वे होम लोन के वितरण को उस हाउसिंग परियोजना या अपार्टमेंट के निर्माण के चर

By Edited By: Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

रीयल्टी क्षेत्र के लिए बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कर्ज से संबंधित जोखिमों के मद्देनजर रिजर्व बैंक ने एक बार फिर सख्त रुख दिखाया है। आरबीआइ ने हाल ही में जारी अपनी अधिसूचना में बैंकों को निर्देश दिया है कि वे होम लोन के वितरण को उस हाउसिंग परियोजना या अपार्टमेंट के निर्माण के चरणों से संबद्ध कर दें। निर्माणाधीन हाउसिंग परियोजनाओं के ग्राहकों को आवंटित कर्ज के एकमुश्त वितरण से जुड़े जोखिम के चलते आरबीआइ ने ऐसा किया है।

रीयल्टी क्षेत्र के जानकारों के अनुसार, कुछ बैंक दरअसल बिल्डर्स व डेवलपर्स के साथ मिल कर नई तरह की हाउसिंग लोन स्कीमें चला रहे हैं, जिनमें ग्राहकों द्वारा लिए जाने वाले कर्ज की बिल्डरों को एकमुश्त अदायगी कर दी जा रही है। इन योजनाओं में कर्ज वितरण को परियोजना निर्माण के विभिन्न चरणों से संबद्ध नहीं किया जा रहा है। यही नहीं, ऐसी योजनाओं में किसी ग्राहक द्वारा लिए गए हाउसिंग लोन की ईएमआइ/ब्याज की अदायगी तब तक बिल्डर द्वारा की जा रही है, जब तक वह परियोजना निर्माणाधीन है। ऐसी योजनाएं 80 : 20 योजना के नाम से लोकप्रिय हैं।

इस तरह की स्कीमों में होने वाले खतरों को आरबीआइ ने समय रहते भांप लिया। केंद्रीय बैंक द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि काफी समय से वह इस तरह के स्कीम पर नजर बनाए हुए था। आखिरकार इस पर लगाम लगाने का फैसला कर लिया। आरबीआइ के अनुसार ऐसा कर्ज उसे लेने वाले व्यक्ति और बिल्डर के बीच झगड़े के कारण खतरे में पड़ सकता है। साथ ही, लोन लेने वाले व्यक्ति की क्रेडिट रेटिंग भी खराब हो सकती है।

रीयल एस्टेट की प्रतिक्रिया

आरबीआइ द्वारा जारी की गई अधिसूचना पर रीयल एस्टेट की शीर्ष संस्था क्रेडाई ने कहा है कि आरबीआइ को इस विषय पर कोई फैसला लेने से पहले एक बार क्रेडाई से जरूर बात करनी चाहिए थी। क्रेडाई के अध्यक्ष ललित कुमार जैन ने कहा कि आरबीआइ का यह फैसला डेवलपर्स को हताश करने वाला है। नेशनल रीयल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल के निदेशक ब्रिगेडियर आरआर सिंह कहते हैं कि आरबीआइ की अधिसूचना से उन डेवलपर्स और बिल्डर्स को दिक्कतें आएंगी। एक स्कीम का रुपया दूसरे स्कीम में लगा देते हैं। एसबीआइ के एक होम लोन अधिकारी गिरिधर किनी आरबीआइ की अधिसूचना के रीयल्टी सेक्टर पर किसी संभावित प्रभाव की आशंका को सिरे से खारिज करते हैं। उनके अनुसार डेवलपर्स के साथ मिल कर ऐसी स्कीम चलाने वाले बैंकों की संख्या काफी कम है। ऐसे में इस अधिसूचना का रीयल्टी सेक्टर पर कोई खास असर नहीं देखने को मिलेगा। वहीं कैपिटल मार्केट एक्सपर्ट के के मित्ताल बताते हैं कि आरबीआइ की इस अधिसूचना से रीयल्टी सेक्टर में एक संदेश जाएगा। बिल्डर पर काम को समय सीमा के भीतर पूरा करने का दबाव बढ़ेगा। ऐसा देखा जा रहा था कि कुछ सालों से रीयल्टी सेक्टर में कई प्रोजेक्ट लॉन्च तो कर दिए गए थे, लेकिन वे समय रहते पूरे नहीं हो सके। कई प्रोजेक्ट आज भी लंबित हैं। ऐसे में बैंक और खरीदार दोनों के संभावित जोखिम को भांपते हुए आरबीआइ ने यह कदम उठाया है।

शेयर मार्केट पर दिखा असर

रीयल्टी सेक्टर की ज्यादातर कंपनियां 2005-07 के उस दौर में सूचीबद्ध हुई थीं, जब बाजार तरलता से लबालब था। यह सेक्टर तब उभरते हुए शानदार क्षेत्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा था। लेकिन ठीक इसके बाद ही अमेरिका में सब प्राइम क्राइसिस आ गया और इसके बाद से ही इस सेक्टर की रफ्तार पर ब्रेक लग गया। लेकिन सरकार द्वारा ब्याज दरों में की गई कमी ने उस वक्त इसे खासा सहारा दिया। इस बीच जमीन से जुड़े कई विवादों ने सिर उठाया। फिर उसके बाद भूमि अधिग्रहण की समस्या, नकदी की कमी, अपर्याप्त नियोजन, परियोजनाओं पर प्रतिबंध और निष्पादन क्षमता में कमी, सही प्रक्रिया तथा प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी आदि से भी इस सेक्टर को जूझना पड़ा। कुछ जानकारों का मानना है कि काले धन और असंगठित बाजार ने रीयल एस्टेट को बीते दस सालों में जो बुलबुलेनुमा उछाल दी उसे देर-सबेर फूटना ही था। शायद अब उसकी शुरुआत हो चुकी है।

सरकार और आरबीआइ के रुख का असर सीधे शेयर बाजार पर देखा गया, जब आरबीआइ की नई अधिसूचना जारी होते ही शीर्ष रीयल एस्टेट कंपनियों के शेयर बुरी तरह पिट गए। अब उन बैंकों के शेयर भी दबाव में आ सकते हैं, जिन्होंने रीयल एस्टेट सेक्टर को लोन मुहैया कराया है क्योंकि इन परियोजनाओं पर मंदी की मार स्पष्ट नजर आ रही है।

तो क्या करें आप

विशेषज्ञ मानते हैं कि इन सभी कदमों से कीमतें बढ़नी तय हैं। अगर हो सके तो अपने रिहायश के आसपास जमीन की तलाश करें, जिसकी देखरेख करना आपके लिए आसान हो। प्लॉट में निवेश आपको ज्यादा फायदा देगा। फ्लैट खरीदने से पहले आसपास के बुनियादी ढांचे पर नजर डाल लें। अगर आपने पहले से निवेश किया हुआ है तो अपनी ईएमआइ का प्रबंध करके रखें। आर्थिक मंदी के बीच क्रेडिट रेटिंग बरकरार रखने की चुनौती सबके सामने है। बचत की आदत डालें और कोशिश करें कि बैंक को अपनी तय ईएमआइ से कुछ ज्यादा भुगतान करें। उदाहरण के तौर पर 9,450 रुपये की जगह 10,000 रुपये की ईएमआइ अदा करें। इससे बैंक व आपके बीच विश्वास का रिश्ता और भी मजबूत होगा। मंदी की वजह से खरीदार कम हो रहे हैं। ऐसे में कम कीमत पर आपको निवेश के कुछ अच्छे विकल्प मिल सकते हैं।

लगातार कसता शिकंजा

-बजट में प्रॉपर्टी की खरीद पर टीडीएस लगाने का प्रस्ताव

-रीयल एस्टेट रेगुलेशन विधेयक संसद में पेश

-भूमि अधिग्रहण अधिनियम को संसद से मंजूरी

-प्रॉपर्टी डीटेल्स को आधार कार्ड से जोड़ने पर विचार

-अब बैंकों को 80 : 20 योजनाओं पर सख्ती का निर्देश

आएंगेनए इंफ्लेशन इंडेक्स बॉन्ड

नए आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन कामकाज संभालने के पहले ही दिन फीलगुड फैक्टर के रूप में उभरे। सबसे पहली बात तो यह कि उन्होंने रुपये की क्रय शक्ति को बचाए रखने को अपनी पहली प्राथमिकता बताई। संदेश साफ था। वह महंगाई पर काबू पाना चाहते हैं चाहे वह रुपये की कमजोरी की वजह से हो रही हो या फिर दूसरे कारण से। एक और राहत की बात यह है कि आरबीआइ जल्दी इन्फ्लेशन इंडेक्स बांड के नए सर्टिफिकेट लेकर आने वाला है। इस खबर में उत्साह का तत्व यह है नए सर्टिफिकेट खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) से जुड़े होंगे। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) और सीपीआइ का अंतर चार फीसद के करीब है। मतलब यह कि पुराने आइआइबी में निवेश अब उतना आकर्षक नहीं रहेगा। मोटे तौर पर समझें तो औसतन अगर सीपीआइ आठ तो इन सर्टिफिकेट पर आपको करीब 10 फीसद के करीब रिटर्न मिलना चाहिए। इस तरह की पहल से लोगों को महंगाई दर के असर से तयशुदा तरीके से बचाने वाला एक विकल्प मुहैया हो जाएगा और लोगों का ध्यान सोने से कुछ हद तक हट सकता है।