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जीरो परसेंट स्कीम सौ परसेंट धोखा!

रिजर्व बैंक नए कलेवर और तेवर के साथ आपके सामने है। उसे अब ग्राहकों की चिंता है। उसे चिंता है कि कंपनियां बैंकों से फायदा उठाती हैं, लेकिन ग्राहकों तक इसे नहीं पहुंचातीं। सवाल यह है कि क्या कंपनियां आरबीआइ की सुनेंगी। क्या आरबीआइ का नया सर्कुलर ग्राहकों के लिए सौगा

By Edited By: Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
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रिजर्व बैंक नए कलेवर और तेवर के साथ आपके सामने है। उसे अब ग्राहकों की चिंता है। उसे चिंता है कि कंपनियां बैंकों से फायदा उठाती हैं, लेकिन ग्राहकों तक इसे नहीं पहुंचातीं। सवाल यह है कि क्या कंपनियां आरबीआइ की सुनेंगी। क्या आरबीआइ का नया सर्कुलर ग्राहकों के लिए सौगात है? कम से कम कंपनियों की मार्केटिंग रणनीति पर एक तमाचा जरूर है। केंद्रीय बैंक के इस नए तेवर कई सबक हैं..

पिछले कई वर्षो से बैंक और रिटेलर मिलकर क्रेडिट कार्ड ग्राहकों के लिए शून्य ब्याज वाली यानी जीरो परसेंट इंट्रेस्ट ईएमआइ स्कीम चलाते रहे हैं। मगर अब आरबीआइ ने बैंकों को यह कहा है कि वे क्रेडिट कार्ड ग्राहकों को इस तरह की योजनाएं देना बंद कर दें। इसके पीछे केंद्रीय बैंक का तर्क यह है कि इनके साथ छिपे हुए शुल्कों के कारण ये योजनाएं भ्रामक हैं। हालांकि इस साल जून में आरबीआइ ने अनौपचारिक रूप से बैंकों से यह कहा था कि वे इस तरह की योजनाएं बंद कर दें, लेकिन इसके बावजूद बैंकों द्वारा ये स्कीमें जारी रखने की वजह से आरबीआइ ने अब इन योजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध की अधिसूचना जारी की है।

डीलरों द्वारा प्रायोजित जीरो इंट्रेस्ट ईएमआइ स्कीमों को प्रतिबंधित करने के अलावा रिजर्व बैंक ने उन योजनाओं पर भी रोक लगा दी है, जहां कुछ प्रोसेसिंग शुल्क ले कर विभिन्न बैंक बड़ी खरीद को कई ईएमआइ में बदलने का विकल्प अपने स्तर से कार्ड धारकों को देते थे। इसके अतिरिक्त आरबीआइ ने बैंकों से उन दुकानों से संबंध समाप्त करने के लिए कहा है जो किसी ग्राहक द्वारा डेबिट कार्ड के जरिये अदायगी किए जाने पर उनसे अधिक शुल्क वसूलते हैं। हालांकि विभिन्न बैंकर दबी जुबान से इसे आरबीआइ का सूक्ष्म प्रबंधन करार दे रहे हैं। लेकिन उन्होंने इस तरह की योजनाओं को वापस लेना शुरू जरूर कर दिया है।

दरअसल पिछले कुछ सालों में जीरो इंट्रेस्ट ईएमआइ योजनाएं काफी लोकप्रिय हो गई थीं। विभिन्न कंज्यूमर ड्यूरेबल स्टोर व इलेक्ट्रॉनिक गुड्स स्टोर धड़ल्ले से इन्हें चलाते थे। हालांकि इन योजनाओं में कोई ब्याज नहीं लिया जाता था, लेकिन अक्सर इनमें एक प्रोसेसिंग शुल्क शामिल होता था। इस तरह किसी सामान मसलन फ्रिज की नकदी देकर खरीद करने वालों के मुकाबले इस योजना के तहत उसकी खरीद करने वाले ग्राहक को कुल मिलाकर अधिक कीमत चुकानी पड़ती थी।

इस बारे में आरबीआइ का यह मानना है कि ये स्कीमें ब्याज को छिपा लेती हैं, लेकिन किसी अन्य शुल्क का नाम देकर उसका बोझ ग्राहक के ही ऊपर डाल देती हैं। केंद्रीय बैंक ने यह कहा है कि जीरो परसेंट इंट्रेस्ट लोन दरअसल उसके कर्ज देने के मानकों का सरासर उल्लंघन हैं, क्योंकि कोई भी बैंक अपने बेस रेट से कम दर पर लोन नहीं दे सकता। रिजर्व बैंक ने अपनी अधिसूचना में कहा है कि शून्य प्रतिशत ब्याज की संकल्पना का कोई अस्तित्व ही नहीं है। कारोबार के उचित तरीकों के तहत यह जरूरी है कि प्रॉसेसिंग शुल्क व ब्याज दरें एकसमान रखी जाएं। ऐसी योजनाओं का उद्देश्य वास्तव में ग्राहकों को लुभाना और उनका दोहन करना है।

दरअसल विभिन्न मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां और उनके डीलर बैंकों से कर्ज लेकर खरीद करने वाले ग्राहकों के लिए विभिन्न प्रकार के सबवेंशन, मॉरेटॉरियम, कीमत में छूट आदि की पेशकश करते हैं। केंद्रीय बैंक के अनुसार बैंकों को चाहिए कि वे ग्राहकों को इन सभी लाभों से पूरी तरह अवगत कराएं। साथ ही किसी खरीद के लिए कर्ज देते समय बैंकों का यह कर्तव्य बनता है कि वे ग्राहकों को पूरी तरह यह सभी सुविधाएं प्रदान करें। उत्पाद के लिए लागू होने वाले ब्याज की दर से छेड़छाड़ किए बिना यह काम सीधे तौर पर किया जाना चाहिए। मसलन यदि कोई निर्माता किसी उत्पाद की कीमत पर कोई छूट ऑफर कर रहा है तो उसे ध्यान में रखने के बाद ही उसके लिए कर्ज का आवंटन किया जाना चाहिए।

अपना पैसा डॉट कॉम के सीईओ हर्ष रूंगटा का कहना है कि इस तरह का सर्कुलर रिजर्व बैंक की ओर से आठ-नौ साल पहले ही लाया गया था। इसके जरिये ऐसी योजनाओं को प्रतिबंधित किया गया था। हां, इस बार आरबीआइ द्वारा इसे फिर से दुहराया गया है। इस बार इसमें कई सारे पहलुओं को शामिल किया गया है। रूंगटा का यह भी मानना है कि आरबीआइ के इस सर्कुलर में जो भाषा इस्तेमाल की गई है, जिस तरह के कड़े शब्दों का इस्तेमाल आरबीआइ द्वारा इस बार किया गया है, उसकी वजह से इस बार केंद्रीय बैंक गंभीर लग रहा है।

रूंगटा का कहना है कि ग्राहकों के ऊपर ऐसी योजनाएं मनोवैज्ञानिक असर डालती हैं। इनके जरिये ग्राहक किसी उत्पाद पर छूट पाने के बजाय ब्याज में राहत पाते हैं। ग्राहक ऐसी योजनाएं को इसलिए प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि मनोवैज्ञानिक तौर पर उन्हें छूट से ज्यादा ब्याज में राहत ही पसंद आती है। चूंकि इस प्रतिबंध के बाद ग्राहकों के लिए मनोवैज्ञानिक तौर पर आकर्षित करने वाली योजनाएं नहीं रहेंगी तो हो सकता है कि उनकी खरीद पर असर पड़े। हालांकि इसका दूसरा पहलू भी है। कुछ जानकारों का कहना है कि विभिन्न प्रकार के उत्पादों पर दी जाने वाली ये योजनाएं ग्राहकों और कंपनियों दोनों के लिए व्यावहारिक तौर पर बेहतर होती हैं। दरअसल ग्राहक इस बात से अनजान नहीं होते कि उनसे एक फाइनेंसिंग कॉस्ट वसूला जा रहा है। इसके बावजूद इन योजनाओं के व्यावहारिक लाभ के कारण ग्राहक इन्हें प्राथमिकता देते हैं। जानकारों का एक समूह यह मान रहा है कि ऐसे में आरबीआइ की ओर से लगाए गए इस प्रतिबंध की वजह से कंज्यूमर ड्यूरेबल और इलेक्ट्रॉनिक्स गुड्स कंपनियों, बैंकों और इस तरह की योजनाओं के जरिये खरीद करने वाले ग्राहकों हितों को चोट पहुंचनी तय है।

आरबीआइ का यह कदम बुरा नहीं है। लेकिन यह करने से पहले रिजर्व बैंक और भी कदम उठा सकता था। यह एक मार्केटिंग प्रैक्टिस थी, इसमें ग्राहकों को बेवकूफ नहीं बनाया जाता था। लेकिन बैंकों की कई प्रैक्टिसेज ऐसी हैं जिनमें ग्राहकों को बेवकूफ बनाया जाता है। आरबीआइ को पहले इन पर ध्यान चाहिए।

-हर्ष रूंगटा, सीईओ, अपना पैसा डॉट कॉम

क्यों खफा हुआ आरबीआइ

-इन योजनाओं में ब्याज छिपा हुआ होता है

-यह ब्याज किसी अन्य रूप में ग्राहक से वसूल लिया जाता है

-कंच्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों के ऊपर असर पड़ने की संभावना

-आरबीआइ चाहता है और अधिक डिस्क्लोजर

क्या असर होगा आपकी जेब पर

-कार्ड से पेमेंट कीजिए और निश्चिंत रहिए। अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहिए

-दुकानदार अब टैक्स बचाने के लिए आपसे अतिरिक्त फीस चार्ज करने का नाटक नहीं करेगा

-जीरो परसेंट स्कीम जारी रहीं तो सौदा और सस्ता हो सकता है आपके लिए

-बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनियां किसी नए मार्केटिंग हथियार का इस्तेमाल करेंगी, सावधान रहें

-बेस्ट डील के लिए ऑनलाइन ऑफर और कई आउटलेट्स पर निगाह मारें

-त्योहारी मौसम में डील्स के बहकावे में आने से बचें। ये बेचने की रणनीति का हिस्सा भर हैं

जीरो परसेंट इंट्रेस्ट योजनाओं में छिपे शुल्क होते हैं। इनमें ग्राहक को सबसे बड़ा नुकसान उस उत्पाद पर मिलने वाले नकद छूट का होता है। इसके अलावा ग्राहक को इन योजनाओं के तहत ट्रांजैक्शन शुल्क या प्रोसेसिंग शुल्क भी देना पड़ता है। केंद्रीय बैंक का यह कदम स्वागतयोग्य है।

-आदिल, सीईओ, बैंक बाजार डॉट कॉम