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अपने उत्पादों में निवेश से फंडों की बढ़ेगी जिम्मेदारी

सॉफ्टवेयर उद्योग में एक कॉन्सेप्ट है डॉगफूडिंग, इसे 'ईटिंग योर ओन डॉग फूड' भी कहा जाता है। इस टर्म की शुरुआत 1

By Edited By: Updated: Mon, 24 Feb 2014 10:44 AM (IST)
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सॉफ्टवेयर उद्योग में एक कॉन्सेप्ट है डॉगफूडिंग, इसे 'ईटिंग योर ओन डॉग फूड' भी कहा जाता है। इस टर्म की शुरुआत 1980 के दशक में माइक्रोसॉफ्ट में हुई, जिसका मतलब था कि कंपनी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए अपने उत्पादों व सेवाओं का खुद भी इस्तेमाल करे। यदि कंपनी के कर्मचारी अपने उत्पादों का उपयोग करते हैं तो यह स्वाभाविक है कि वे गुणवत्तापूर्ण होंगे। सेबी अब इस कॉन्सेप्ट को देश के म्यूचुअल फंडों में लागू कराना चाहता है।

पिछले सप्ताह हुई बोर्ड बैठक में बाजार नियामक ने फैसला लिया कि असेट मैनेजमेंट कंपनियों (एएमसी) को अपने म्यूचुअल फंडों में एक न्यूनतम रकम निवेश करनी होगी। एक बार यह फैसला लागू होने पर हर म्यूचुअल फंड में कम से कम एक फीसद रकम उसकी अपनी एएमसी की होगी। अधिकतम रकम 50 लाख रुपये रहेगी। सेबी के मुताबिक, एएमसी को अपने सभी ओपन एंडेड स्कीमों में हमेशा एक फीसद रकम रखनी होगी। इसके कई परिणाम देखने को मिलेंगे। स्वाभाविक रूप से एएमसी सीधे तौर पर अपने फंड के प्रति ज्यादा संवेदनशील होंगी। फंड के कमजोर प्रदर्शन से केवल निवेशकों को ही नुकसान नहीं होगा, बल्कि इससे एएमसी को भी सीधा नुकसान होगा।

इससे दूसरे निवेशकों की तरह एएमसी भी एक प्रतिबद्ध निवेशक होगी। जब इक्विटी बाजार में खराब प्रदर्शन की आशंका होगी, तब भी वह निवेश से भाग नहीं सकेगी। यदि यह नियम वर्ष 2008-09 में बाजार की गिरावट के समय लागू होता तो कुछ एएमसी की अच्छी खासी पूंजी स्वाहा हो गई होती। बाजार के उतार-चढ़ाव के प्रति ज्यादा सतर्क रहने के लिए अब एएमसी के पास एक और अहम कारण रहेगा।

सेबी के एक और फैसले से स्थिति ज्यादा जटिल हो गई है। इसके तहत असेट मैनेजमेंट कंपनियों को अपनी न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता 50 करोड़ रुपये रखनी होगी। इस नियम की जरूरत पर विचार एक अलग बहस का मामला है, लेकिन इससे एएमसी को ऐसे समय में अतिरिक्त फंड की जरूरत होगी जब बाजार खराब प्रदर्शन कर रहा है। इन फैसलों को अभी सेबी बोर्ड ने मंजूर ही किया है, इनसे संबंधित विस्तृत नियम अभी तैयार किए जाने है और इनका क्रियान्वयन किया जाना है। एएमसी नई स्थितियों का सामना कैसे करेंगी, यह देखना होगा लेकिन सैद्धांतिक रूप से यह अच्छी चीज है कि इन्वेस्टमेंट मैनेजर निवेश के फैसलों को लेकर ज्यादा संवेदनशील होंगे। एएमसी के प्रमोटर और बोर्ड यह सुनिश्चित करने के लिए ज्यादा प्रतिबद्ध होंगे कि निवेश प्रबंधन ज्यादा कुशल हो। अभी भी ऐसे फंड मैनेजर हैं जो अपने फंडों में निवेश करते हैं।

अपने फंड में निवेश की जानकारी देने की कोई अनिवार्यता नहीं है। इसलिए इसकी सूची उपलब्ध नहीं है। हालांकि कुछ सप्ताह पहले रिटायर हुए फ्रैंकलिन टेम्प्लटन के सीआइओ केएन शिवासुब्रमण्यन ने वैल्यू रिसर्च को बताया था कि उनकी पूरी निजी बचत अपने म्यूचुअल फंड में निवेश है। छोटी एएमसी पीपीएफएएस की आठ फीसद संपत्ति उसके प्रबंधन और कर्मचारियों की है। मुझे विश्वास है कि ऐसी कुछ अन्य एएमसी भी हैं। हालांकि भारतीय कारोबारी अपना बहुत ही कम धन इक्विटी फंडों में लगाते हैं और यह काफी अच्छा अनुभव होगा कि एएमसी अपनी एक बड़ी रकम इक्विटी बाजार में लगाएंगी। इससे एएमसी को यह जानने का मौका मिलेगा कि उसके निवेशक कैसा महसूस करते हैं।

फंड का फंडा, धीरेंद्र कुमार