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बैंक सुरंग कांड : चोर ने लगाए पोस्टर, पुलिस को दी चुनौती

जागरण संवाददाता, भिवानी : यहां बैंक ऑफ बड़ौदा में सुरंग खोदने के मामले में शुक्रवार को नया मोड़ आ गया। सुरंग खोदने वाले ने पत्र चस्पां कर पुलिस को न केवल गिरफ्तार करने की चुनौती दी, बल्कि इरादा व पूरा घटनाक्रम भी उजागर किया। पुलिस को इसके बावजूद अब तक

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Sat, 16 May 2015 04:33 PM (IST)
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जागरण संवाददाता, भिवानी : यहां बैंक ऑफ बड़ौदा में सुरंग खोदने के मामले में शुक्रवार को नया मोड़ आ गया। सुरंग खोदने वाले ने पत्र चस्पां कर पुलिस को न केवल गिरफ्तार करने की चुनौती दी, बल्कि इरादा व पूरा घटनाक्रम भी उजागर किया। पुलिस को इसके बावजूद अब तक इस मामले में कोई सुराग नहीं लगा है।

बैंक के बाहर जनरेटर पर लगाए पोस्टर के माध्यम से सुरंग खोदने वाले ने पुलिस को न केवल दो दिन में गिरफ्तार करने की चुनौती दी और 18 मई को खुद को पुलिस के हवाले करने के लिए शर्त भी रखी है। यदि चोर की बात सही है तो उसका इरादा एक करोड़ रुपये की चोरी करना था।

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पुलिस इस पोस्टर को सही मानते हुए जांच में जुट गई है। डीएसपी मौजीराम के नेतृत्व में गठित टीम ने बैंक के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज लेकर छानबीन शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि बैंक के बाहर लगे सीसीटीवी की फुटेज से जांच की जा रही है।

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ये है पत्र का मजनून
दो दिन में पकड़ा गया तो मैं .... दो दिन में नहीं पकड़ा गया तो पुलिस .... लगे रहो ।
डीएसपी व एसपी आप लोगों को फोटो खिंचवाना आता है। कहते हैं हमने नाकाबंदी कर दी है। आरोपियों को जल्द पकड़ लिया जाएगा। मैं तो उस वक्त भी आपके पास ही खड़ा था। मेरी वजह से तो बैंक को नुकसान हुआ है। मैं उसके लिए माफी मांगता हूं। मगर मेरा भी तो 50 हजार रुपये लग गया।

सोचो जहां से पैसा आता था, वहां लग गया। मेरे दिल और दिमाग पर क्या गुजर रही होगी। ये कोई 6 या 7 का काम नहीं। ये सिर्फ एक बंदे का काम है। मैं कोई खानदानी चोर नहीं। ये मेरी पहली और आखिरी चोरी थी। मैं बहुत मेहनती बंदा हूं। मैं तो ये देख रहा था कि एक बंदा क्या कर सकता है। मैंने कर दिखाया। मेरे सामने लाखों रुपये पड़े थे। मैं नहीं लेकर गया क्योंकि मैंने कसम खाई थी कि एक करोड़ से कम नहीं लेकर जाऊंगा।

बाकी माल तिजोरी में था। तिजोरी तोडऩे पर शोर होने वाला था। मैंने हूटर को बंद करना चाहा। मगर लाइन से एक तार प्लास से कट गया और हूटर बजने लगा। मैं अंदर ही था। कोई अंदर नहीं आया। अच्छा हुआ वरना उसकी तो। अंदर बंदूक रखी थी। मैं उसे लिए बैठा था। पता नहीं क्या होता। 35 मिनट बाद आप सभी चले गए। फिर मैं भी चला गया। समय कम था और दिन निकलने वाला था। उस वक्त मेरे पास तिजोरी तोडऩे के औजार नहीं थे। मैं रात को फिर आने वाला था। मगर हर संडे को बैंक ऑफ बड़ौदा बंद रहता था मगर उस दिन महता जी ने खोल दिया। चलो वक्त की शायद यही मरजी थी। इसी में मेरी भलाई हो। 1

1-05-2015 को भी मैंने एक चिट्ठी में मेरी दिल की बात लिखकर बैंक में लिखकर पहुंचाया था और उस चिट्ठी को पेपर में भी छपवाने को कहा था मगर पुलिस व बैंक वालों ने मिलकर उस चिट्ठी को छुपा दिया। 18-05-2015 को मैं बैंक के बाहर दिन में 12 बजे आने के लिए तैयार हूं। शर्त है कि मुझे माफ कर दिया जाए यानी छोड़ दिया जाए। इसके लिए मुझे कोई जिम्मेवार अधिकारी की मौजूदगी चाहिए। वरना ढूंढते रहना कोना कोना।

शर्त मंजूर हो तो मुझे पेपर के जरिये बता देना। अगर बाद में कुछ गड़बड़ हुई तो लाकर में घुसने वाला क्या कर सकता है, ये अच्छी तरह से सोच लेना। सबका भगवान भला करे। जिंदगी तो हमने फिल्मी अंदाज में जी है मगर अफसोस हमारे आगे पीछे कोई कैमरा नहीं है। पत्र की दायीं तरफ छोटे छोटे अंगुलियों के निशान बनाकर भी पुलिस का मजाक बनाने का प्रयास किया गया और लिखा गया है फिंगर प्रिंट।

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