झज्जर के रणबांकुरों ने छुड़ाए थे दुश्मनों के छक्के
कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वालों में और कोई नहीं हरियाणा के झज्जर के रणबांकुरे थे। जानिए कौन-कौन थे वो रणबांकुरे ?
By Test1 Test1Edited By: Updated: Tue, 26 Jul 2016 01:25 PM (IST)
जेएनएन, झज्जर। कारगिल में 'ऑप्रेशन विजय' के दौरान दुश्मनों के छक्के छुड़ाने में झज्जर के वीरों ने अहम भूमिका निभाई थी। प्रदेश में सबसे ज्यादा झज्जर के रणबांकुरों ने भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया, जबकि अनेक जवान घायल भी हुए थे। देश का चाहे कोई घोषित युद्ध रहा हो या फिर आतंकवादियों के साथ मुठभेड़। हमेशा जिले के वीरों ने दुश्मन को नाकों चने चबवाए।
वर्ष 1999 में जब कारगिल युद्ध हुआ तो इसमें जिले के 11 वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। शहीद हुए सभी वीरों के पार्थिव शरीर सरकार की तरफ से पूरे सम्मान के साथ उनके परिजनों तक पहुंचाए गए थे। पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने के बाद सभी शहीदों के पैतृक गांवों में उनकी प्रतिमा लगाकर स्मारक भी बनाए गए।पढ़ें : शहीद को अंतिम विदाई, प्रशासन नहीं आया, डीएसपी भी संस्कार के दौरान चले गए आज से ठीक 17 साल पहले कारगिल युद्ध के शहीदों ने देश में देशभक्ति का जज्बा भर दिया था, लेकिन आज उन्हें याद करने वालों की खासी कमी है। आज उन शहीदों की यादें परिजनों तक सिमटकर रह गई हैं। प्रशासन की अनदेखी उन परिवारों के जख्मों पर नमक छिड़कती हैं, जिनके अपनों ने युद्ध में प्राण न्यौछावर किए।
ये वीर हुए शहीद - देशलपुर गांव निवासी हवलदार जयप्रकाश पुत्र रण सिंह 8 मई 1999 को दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे।
- जैतपुर गांव निवासी सिग्नलमैन विनोद कुमार पुत्र जगदीश चंद ने 14 जून 1999 को देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए थे।- जाखौदा गांव निवासी सहायक कैमांडेंट आजाद सिंह पुत्र लायक राम दलाल ने 13 जून 1999 को देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।- सुबाना गांव निवासी ग्रनेडियर सुरेंद्र सिंह पुत्र रण सिंह ने 16 जून 1999 को अपने देश के लिए प्राणों का बलिदान दिया था।- निलौठी गांव निवासी लांस नायक श्याम सिंह पुत्र हुकमचंद 13 जून 1999 को दुश्मन से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।- जटवाड़ा गांव निवासी नायक लीला राम पुत्र रिजक राम ने 25 जून 1999 को अपने प्राणों की आहुति दी।- बराही गांव निवासी कैप्टन अमित वर्मा पुत्र सुरेंद्र सिंह ने 4 जुलाई 1999 को अपने प्राणों का बलिदान दिया था।- सौलधा गांव निवासी नायक रामफल पुत्र राज सिंह ने 6 जुलाई 1999 को अपने प्राणों की आहुति दी थी।- झांसवा गांव निवासी लांस नायक राजेश पुत्र रामेश्वर ने 7 जुलाई 1999 को देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए।- खुंगाई गांव निवासी हवलदार हरिओम धारीवाल पुत्र चांद राम 7 जुलाई 1999 को भारत माता की रक्षा करते हुए उनके चरणों में लीन हो गए।- ढाकला गांव निवासी सिपाही धर्मबीर पुत्र सूबे सिंह 8 जुलाई 1999 को भारत माता की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। पढ़ें : गुटबाजी : हुड्डा, किरण, कैप्टन और तंवर समेत दस नेता दिल्ली तलब जिले के 17 हजार जवान सीमा पर दे रहे पहरा देश की सेना में हर दसवां जवान हरियाणा का है, वहीं इनमें बड़ी संख्या में झज्जर जिले के जवान शामिल हैं। आज भी भारतीय सेना में झज्जर जिले के करीब 17 हजार जवान कार्यरत हैं, जो देश की सीमाओं पर पहरा दे रहे हैं। वहीं करीब 63 हजार जिले के पूर्व सैनिक हैं। इनमें करीब 35 हजार पूर्व सैनिक झज्जर जिला सैनिक बोर्ड के माध्यम से पेंशन प्राप्त कर रहे हैं। बाकी पूर्व सैनिक दूसरे जिलों या अन्य क्षेत्रों में रहकर पेंशन प्राप्त कर रहे हैं।बाल भवन में बनाया स्मारक जिला प्रशासन की तरफ से शहर के बाल भवन में कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीरों की याद में स्मारक का भी निर्माण करवाया था। इस स्मारक की एक दीवार पर अशोक चक्र व दूसरी दीवार पर कारगिल 'विजय ऑप्रेशनÓ के दौरान शहीद हुए वीरों के नाम अंकित किए गए हैं।
नहीं मिली नौकरीझांसवा गांव निवासी शहीद लांस नायक राजेश के पुत्र जितेंद्र का कहना है कि उसके पिता ने देश की रक्षा करते हुए 'ऑप्रेशन विजय' के दौरान कारगिल में शहादत दी थी। उनके परिवार में उसकी माता मुन्नी देवी, बहन मंजू हैं। जितेंद्र का कहना है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने शहीदों के आश्रितों को नौकरी देने की घोषणा की थी, बाकी सुविधाएं तो उन्हें मिल गईं, लेकिन नौकरी नहीं मिली।
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आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।नहीं मिली नौकरीझांसवा गांव निवासी शहीद लांस नायक राजेश के पुत्र जितेंद्र का कहना है कि उसके पिता ने देश की रक्षा करते हुए 'ऑप्रेशन विजय' के दौरान कारगिल में शहादत दी थी। उनके परिवार में उसकी माता मुन्नी देवी, बहन मंजू हैं। जितेंद्र का कहना है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने शहीदों के आश्रितों को नौकरी देने की घोषणा की थी, बाकी सुविधाएं तो उन्हें मिल गईं, लेकिन नौकरी नहीं मिली।
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