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घोड़ा गाड़ी चलाने वाले की बेटी जाएगी रियाे आेलंपिक

हरियाणा के शाहाबाद की रानी रामपाल रियो आेलंपिक में भारत हॉकी टीम की ओर से खेलेगी। रानी ने बेहद गरीब परिवार से ताल्‍लुक रखतीं हैं। उनके पिता रामपाल सिंह घोड़ा गाड़ी चलातेे ह‍ैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Wed, 13 Jul 2016 06:01 PM (IST)
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कुरुक्षेत्र, [जतिंद्र सिंह चुघ]। बेटी भले अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हो लेकिन पिता आज भी घोड़ा गाड़ी चला रहे हैं। बेटी इस बार रियो आेलंपिक में देशका परचम लहराएगी, लेकिन पिता आज भी यहां सड़कों पर घोड़ा गाड़ी चलाते हैं और उन्हें इसका कोई मलाल भी नही है। वह तो बस यह चाहते हैं कि बेटी इसी तरह कामयाबी का झंडा बुलंद करती रही और देश व उनका मान बढ़ाती रहे। हम बात कर रहे हैं ओलंंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम में शामिल रानी रामपाल के पिता रामपाल की।

गरीबी के बीच पलकर रानी रामपाल ने बनाई ओलंपिक की राह

रानी ने अपने नाम में जो रामपाल लगा रखा है वह दरअसल उनके पिता का ही नाम है। रामपाल आज भी शाहाबाद की सड़कों पर घोड़ा गाड़ी चला रहे हैं। परिवार की गरीबी कभी रानी रामपाल के खेल के आड़े नहीं आई है। पिता ने हमेशा उसके खेल का ध्यान रखा अौर इसके लिए हर संभव सुविधा मुहैया कराना ही अपना लक्ष्य समझा लिया।

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रानी के पिता रामपाल का कहना है कि उनकी अमीरी इसी में है कि आज उनकी बेटी का नाम हर कोई जानता है और वह अपने खेल से देश का मान बढ़ा रही है। कोच बलदेव सिंह से प्रशिक्षित रानी रामपाल अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में कई बार सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुनी जा चुकी हैं।

रानी ने मात्र 13 वर्ष की आयु में भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व करना शुरू कर दिया था। रामपाल का सपना अपनी बेटी को ओलंपिक में देखना था जो इस बार पूरा होने जा रहा है। उनका कहना है कि मेरे लिए मेरी बेटी की उपलब्धियों से बढ़कर कुछ नहीं है।

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उनका कहना है कि उनको जब भी समय मिलता है तो वह रानी को ज्यादा अभ्यास करने के लिए प्रेरित करते हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने टीवी पर रानी को खेलते हुए बहुत बार देखा है लेकिन उनकी तमन्ना है कि कभी वह भी विदेश में जाकर रानी को खेलते हुए देखें। उन्हें पूरी उम्मीद है कि ओलंपिक में भी रानी शानदार प्रदर्शन करेगी।

एक सवाल में रामपाल ने कहा कि उन्हें घोड़ा गाड़ी चलाने वाले अपने काम से कोई हिचक महसूस नहीं होती और न ही रानी को इसमें कोई हिचकिचाहट है। मैं ईमानदारी से रोजी-रोटी कमा रहा हूं और इस पर मुझे गर्व है। इसमें शर्म और हिचक कैसी। किसी से न तो सहायता की आशा है अौर न जरूरत। मेरी बेटी की कामयाबी ही मेरी सबसे बड़ी दौलत है।

जूनियर जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप को लहराया था परचम

जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप में भारतीय टीम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। जर्मनी में खेले गए वर्ल्ड कप में भारतीय टीम ने कांस्य पदक जीता और रानी रामपाल 'प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट' रहीं। लेकिन, रानी की कहानी परी कथा जैसी नहीं है। इसमें अभाव, गरीबी समाज का विरोध शामिल हैं। बचपन में रानी के पास न तो खेलने के लिए जूते थे और न ही हॉकी किट। रानी के पास था तो खेल के प्रति जुनून और कुछ करने की जिद। रानी की इस जिद ने ही आज उसे सफलता के शिखर पर पहुंचा दिया।

परिवार में रानी सबसे छोटी हैं। रानी के दो बड़े भाईं हैं। एक दुकान पर छोटा-मोटा काम करता है। उनसे बड़ा एक भाई बढ़ई है। ऐसे में परिवारजनों को मनाने के लिए रानी रामपाल को बहुत पापड़ बेलने पड़े। रानी का खुद पर भरोसा इतना बेमिसाल है कि वह परिवार वालों को मनाने में कामयाब रही।

हॉकी स्टिक थामी तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा

रानी को हॉकी खेलने के लिए किट मिली कोच बलदेव से। एक बार हॉकी स्टिक थामने के बाद धुन की पक्की रानी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वह खुद को भारत की नंबर एक हॉकी फॉरवर्ड के रूप में स्थापित कर चुकी हैं। अपने प्रदर्शन के बाद रानी ने रेलवे में क्लर्क की नौकरी हासिल की और टीम के साथ-साथ परिवार की भी जिम्मेदारी संभाली।

गजब का हॉकी सेंस है रानी में

रानी की सबसे खास बात ये है कि उनका हॉकी सेंस गजब का है। इस बात को भारतीय टीम में उनके कोच रह चुके कौशिक और शाहबाद अकेडमी के कोच बलदेव, दोनों ही मानते हैं। रानी के खासतौर पर 'डी' के भीतर निशाने अचूक रहते हैं। रानी रामपाल बॉल लेकर बहुत तेज फर्राटा लगाती हैं। वह जिस धार और रफ्तार के साथ हमले बोलती हैं, उससे प्रतिद्वंदी टीम की रक्षापंक्ति को संभलने तक का मौका भी नहीं मिल पाता है।

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