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किसानों के नाम पर आए यूरिया का हो रहा व्यापार

औद्योगिक इकाइयों में नीम लेपित यूरिया का इस्तेमाल और उसकी कालाबाजारी रोकने में सरकार विफल साबित हो रही है। किसानों के नाम पर यूरिया का व्यापार किया जा रहा है।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Thu, 25 Aug 2016 10:59 AM (IST)
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राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। प्रदेश में मोदी सरकार की अहम योजना को पलीता लगाया जा रहा है। मामला औद्योगिक इकाइयों में नीम लेपित यूरिया का इस्तेमाल और उसकी कालाबाजारी का है, जिसे रोकने के लिए केंद्र सरकार की पहल नाकाफी साबित हो रही है। राज्य में बड़े पैमाने पर नीम लेपित यूरिया का दुरुपयोग हो रहा है। यह बात खुद अतिरिक्त मुख्य सचिव (कृषि) वीएस कुंडू ने स्वीकार की है। अब तक इस सिलसिले में 18 औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ एफआइआर कराई गई है। इनमें पेंट और प्लाइवुड बनाने वाली इकाइयां शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि पिछले साल मोदी सरकार ने 100 प्रतिशत नीम लेपित यूरिया लांच किया था। सरकार ने इसे किसानों के लिए मुहैया करवाया था। मगर हरियाणा में ओद्योगिक इकाइयों ने इसके दुरुपयोग का रास्ता निकाल लिया। इस यूरिया को पेंट और प्लाइवुड इंडस्ट्री वाले इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि समस्या इसके इस्तेमाल में नहीं है लेकिन इसके लिए इस यूरिया को किसान के नाम पर या किसान के जरिए सब्सिडी पर खरीदा जाता है और बाद में इसका व्यापारिक इस्तेमाल होता है। इसीलिए यह गंभीर मामला है।

जब थानों में बंटा यूरिया और खाद

कुछ समय पहले हरियाणा में खाद को लेकर काफी हो हल्ला मचा था क्योंकि किसानों को पर्याप्त खाद उपलब्ध नहीं होने की सूचनाएं आई थीं। इसके बाद सरकार ने पुलिस थानों के जरिए खाद और यूरिया बांटा था। इसके बाद सरकार हरकत में आई और जांच में पता चला कि किसानों के नाम पर औद्योगिक इकाइयों में यूरिया सप्लाई किया गया। इसके बाद सरकार ने शिकंजा कसना शुरू किया।

इसलिए हो रहा दुरुपयोग

दरअसल, हरियाणा में सब्सिडी पर मिलने वाले यूरिया की सप्लाई देश के बाकी राज्यों से कहीं ज्यादा है। इसीलिए औद्योगिक इकाइयां कम खर्च कर आसानी से सब्सिडी वाले यूरिया के रूप में केमिकल प्राप्त कर सकती हैं। राज्य की कुल यूरिया की आवश्यकता 7.5 लाख टन है।

नीम लेपित यूरिया का उपयोग

सीधे तौर पर नीम लेपित यूरिया का प्लाइवुड या पेंट इंड्स्ट्री में कोई प्रयोग नहीं होता। औद्योगिक इकाइयां इससे नीम का लेपन हटाकर इसमें मौजूद केमिकल का इस्तेमाल करती हैं। जो कि कंपनियों को सस्ता पड़ता है जबकि सीधे तौर पर केमिकल खरीदना महंगा पड़ता है।

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