Move to Jagran APP

ये ट्रांसप्लांट कैंसर में हो रहा है कारगर

कैंसर के कुछ प्रकारों समेत कुछ रोगों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के नतीजे उत्साहवर्धक रहे हैं।

By Pratibha Kumari Edited By: Updated: Thu, 01 Dec 2016 04:08 PM (IST)
Hero Image

अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बोन मैरो ट्रांसप्लांट, संक्षेप में बीएमटी) एक मेडिकल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में
रोगग्रस्त या क्षतिग्रस्त बोन मैरो (अस्थि मज्जा) कोशिकाओं के स्थान पर स्वस्थ लोगों से अस्थि मज्जा कोशिकाओं को लेकर पीड़ित व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में हाई डोज में कीमोथेरेपी रेडिएशन के साथ या रेडिएशन के बगैर दी जाती है, जिससे विकारग्रस्त अस्थि मज्जा को नष्ट कर दिया जाता है। इसके बाद मरीज के शरीर में स्वस्थ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) को प्रत्यारोपित किया जाता है।

बोन मैरो क्या है
बोन मैरो हड्डियों के अंदर का स्पंजनुमा टिश्यू है, जो श्वेत रक्त कोशिकाओं, लाल रक्त कोशिकाओं और
प्लेटलेट्स सहित रक्त कोशिकाओं को उत्पन्न करता है।

कई रोगों में लाभप्रद
ल्यूकीमिया (ब्लड कैंसर), लिम्फोमा, मल्टीपल मायलोमा जैसे कैंसर, कुछ ठोस कैंसरस ट्यूमर, एप्लास्टिक एनीमिया और थैलेसीमिया जैसे रोगों का अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण या बोन मैरो ट्रांसप्लांट से सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट के दो प्रकार हैं ...
ऑटोलोगस बोन मैरो ट्रांसप्लांट- पीड़ित व्यक्ति को उच्च खुराक या हाई डोज की कीमोथेरेपी देने से पहले स्टेम सेल्स को निकाल दिया जाता है। स्टेम सेल्स को एक विशेष फ्रीजर में जमा किया जाता है। हाई डोज की कीमोथेरेपी के बाद आपकी खुद की स्टेम सेल्स सामान्य रक्त कोशिकाओं को बनाने के लिए आपके शरीर
में वापस डाल दी जाती हैं। इसे रेस्क्यू ट्रांसप्लांट भी कहा जाता है।

एलोजेनिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट- जिस व्यक्ति से स्टेम सेल्स को निकाला जाता है, उसे दाता (डोनर) कहा जाता है। ऐसे मामले में दाता के ह्यूमैन ल्यूकोसाइट एंटीजेन(एचएलए) को आपके एचएलए से कम से कम आंशिक रूप
से मेल खाना चाहिए। दाता के एचएलए का आपके एचएलए के साथ बेहतर तरीके से मिलान या मैच होगा या
नहीं, इसे देखने के लिए विशेष परीक्षण किये जाते हैं। भाई या बहन से सबसे अच्छा मैच होने की संभावना होती है। कभी- कभी माता- पिता, बच्चों, अन्य रिश्तेदारों और यहां तक कि गैर रिश्तेदार दाताओं से भी अच्छा मैच हो सकता है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया के अंतर्गत तीन सप्ताह तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है। इस तरह की प्रक्रिया उन चुनिंदा अस्पतालों में ही होती है, जहां पर स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट की आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हों।


डॉ. प्रशांत मेहता
प्रमुख: बोन मैरो ट्रांसप्लांट
एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस,
फरीदाबाद