लालच में निजी अस्पताल कर है सिजेरियन डिलीवरी
दिल्ली सरकार के जन्म पंजीकरण के आंकड़ों के मुताबिक, निजी अस्पतालों में सरकारी अस्पतालों के मुकाबले ऑपरेशन (सिजेरियन) करके प्रसव अधिक कराया जाता है।
रणविजय सिंह, नई दिल्ली। चिकित्सा सुविधाओं में सुधार के साथ ही मातृत्व मृत्युदर में भी सुधार हुआ लेकिन सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में प्रसव के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। दिल्ली सरकार के जन्म पंजीकरण के आंकड़ों के मुताबिक, निजी अस्पतालों में सरकारी अस्पतालों के मुकाबले ऑपरेशन (सिजेरियन) करके प्रसव अधिक कराया जाता है। शहरी क्षेत्र के निजी अस्पतालों में तो 48.50 फीसद बच्चे सिजेरियन डिलीवरी से पैदा हुए। जबकि सरकारी अस्पतालों में 82 से 85 फीसद सामान्य प्रसव कराया जाता है।
सरकारी व निजी आस्पतालों के आंकड़ों में भारी अंतर से निजी अस्पतालों पर सवाल खड़े कर रहा है। वर्ष 2015 के जन्म पंजीकरण के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में पिछले साल 3,74,012 बच्चों ने जन्म लिया। इसमें से 52.69 फीसद लड़के व 43.31 फीसद लड़कियां शामिल हैं। 84.41 फीसद बच्चों का जन्म अस्पतालों में हुआ। इसमें से 67.16 फीसद बच्चों (2,12,028) का जन्म सरकारी व 32.84 फीसद बच्चों (1,03,666) का जन्म निजी अस्पतालों में हुआ। शहरी क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में 18.01 फीसद बच्चों का जन्म ही ऑपरेशन से हुआ। वहीं निजी अस्पतालों में 48.50 फीसद बच्चों का जन्म ऑपरेशन करके किया गया। दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्र के निजी अस्पतालों में भी 36.59 फीसद बच्चे ऑपरेशन से हुए।
वहीं ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में यह आंकड़ा 14.86 फीसद रहा। यह आंकड़े बताते हैं कि निजी अस्पतालों में कहीं न कहीं कोई गड़बड़ी जरूर है। डॉक्टर कहते हैं कि प्राइवेट अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवर अधिक होने के कई कारण हैं। बड़ा कारण यह है कि निजी अस्पतालों के डॉक्टर व्यावसायिक हित को ध्यान में रखकर पैसे के लिए सिजेरियन डिलीवरी कराना अधिक पसंद करते हैं। इसके अलावा लोगों की सोच में भी बदलाव आया है। बड़े निजी अस्पतालों में संपन्न परिवारों की गर्भवती महिलाएं प्रसव के लिए पहुंचती हैं।
पढ़ी-लिखी व पेशेवर महिलाएं भी प्रसव पीड़ा से बचने के लिए सिजेरियन डिलीवरी का चयन करने लगी हैं। लेकिन कड़वी सच्चाई यही है कि ज्यादातर मामलों में निजी अस्पतालों का व्यावसायिक हित अधिक हावी रहता है। 1यही वजह है कि सरकारी व निजी अस्पतालों के सिजेरियन डिलीवरी के आंकड़ों में भारी अंतर है।दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अजय लेखी ने कहा कि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि कुछ मामलों में व्यावसायिक हित होता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने कहा कि जिसे सिजेरियन कराना होता है वह प्राइवेट अस्पतालों में ही जाता है। लेकिन सरकारी अस्पतालों में बेवजह सिजेरियन नहीं किया जाता। सरकारी अस्पतालों में सिजेरियन तभी किया जाता है जब बहुत जरूरी हो।
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