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क्या आप जानती हैं कि हर तीन माह में बदल देना चाहिये कुकिंग ऑयल?

अगर आपको लंबे समय तक सेहतमंद रहना है तो हर तीन महीने में आपको कुकिंग ऑयल बदल देना चाहिये।

By Babita kashyapEdited By: Updated: Fri, 15 Jul 2016 12:14 PM (IST)
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खाना बनाते समय तेल घी का प्रयोग तो सभी लोग करते हैं। क्या आप जानते हैं कि अगर आपको लंबे समय तक सेहतमंद रहना है तो हर तीन महीने में आपको कुकिंग ऑयल बदल देना चाहिये। फल और सब्जियों के सेवन से फैटी एसिड की कमी पूरी नही हो पाती, इसलिये खाने में तेल का चुनाव करने में भी समझदारी की जरूरत होती है। हर तेल में फैटी एसिड पाया जाता है। यदि लंबे समय तक एक ही तेल का प्रयोग किया जाये तो शरीर में अन्य तेल से मिलने वाले फैटी एसिड का अभाव होने लगता है। सेहतमंद रहने के लिये हर तीन माह में तेल बदलना जरूरी है।

बोल्ड स्काई.कॉम के अनुसार हाल ही में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद में हुए एक शोध में यह बात सामने आयी है, कि हर तीन माह में तेल की वैरायटी बदलना स्वास्थ्य के लिये अच्छा होता है। लेकिन अगर प्रतिदिन आप तीन तरह के तेल खाने में प्रयोग करते हैं तो आपको तीन माह में तेल बदलने की आवश्यकता नही है।

सामान्यत: कुकिंग ऑयल में तीन तरह के फैटी एसिड पाये जाते हैं। जिन्हें सैचुरेटेड, अनसैचुरेटेड और ट्रांस फैटी एसिड कहा जात है। सैचुरेटड और ट्रांस फैटी एसिड स्वास्थ्य के लिये नुकसानदेह होते हैं ये कोलेस्ट्रॉल लेवल को बढ़ाते हैं। अनसैचुरेटेड को पेड़ पौधों व सब्जियों से तैयार किया जाता है। इसमें मोनोअनसैचुरेटेड और पॉलिअनसैचुरेटेड फैटी एसिड होते हैं।

मूंगफली का तेल

मूंगफली के तेल में भरपूर मात्रा में मोनोअनसैचुरेटेड फैट होते हैं। जिससे कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है। कुकिंग ऑयल के रूप में ये एक बेहतर विकल्प है। इसके सेवन से वजन भी नियंत्रित रहता है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट तत्व भी पाये जाते हैं। मूंगफली का तेल हृदय धमनियों में रक्त के प्रवाह को बेहतर करता है। इसके सेवन से हृदय रोगों की आशंका कम होती है। अगर आप हर तीन माह में इसे नही बदलेंगे तो ये धीरे-धीरे आपकी धमनियों में जमना शुरु हो जाएगा।

सोयाबीन ऑयल

सोयाबीन से तैयार किया गया ऑयल ओमेगा-3,6 का बेहतर स्त्रोत है जो हमारे हृदय के लिये बहुत फायदेमंद होता है क्योंकि ये कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करता है। अगर आप इस तेल से डीप फ्राई करेंगे तो इससे कोलेस्ट्रॉल का स्तर प्रभावित हो सकता है।

सरसों का तेल

सेहत की दृष्टिï से सरसों का तेल मोनोअनसैचुरेटेड होता है। इसमें कोलेस्ट्रॉल व एलडीएल की मात्रा कम और विटामिन-ई ज्यादा होता है। यह तेल अस्थमा को कंट्रोल करता है। सरसों में फाइटोन्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं जो गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर को रोकने में मदद करता है। यह शुगर लेवल को भी नियंत्रित रखता है। इसे तीन माह ज्यादा प्रयोग करने से इसमें मौजूद यूरोसिक एसिड का स्तर बढ़ जाता है। जिससे ट्राइग्लिसरॉइड के लेवल बढ़ जाता है। यह तत्व हृदय की कोशिकाओं में जमकर नुकसान पहुंचाता है। इसलिये हर तीन माह में इसे बदल दें।

वनस्पति घी

आज कल वनस्पति घी का प्रयोग बहुत कम घरों में ही किया जाता है। ये सेहत के लिये सबसे ज्यादा नुकसानदेह होता है क्योंकि इसमें ट्रांस फैटी एसिड अधिक होता है। रिफाइंड ऑयल एक अच्छा विकल्प है।

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देसी घी

देसी घी में फैट की मात्रा बहुत अधिक होती है। इसलिये जरूरत से ज्यादा खाने से मोटापा बढ़ सकता है और मोटापा ही सब रोगों का कारण है। प्रतिदिन एक चम्मच देसी घी को आप अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं।

नारियल का तेल

इसमें सैचुरेटेड फैट होता है, लेकिन कोलेस्ट्रॉल न के बराबर होता है। यह सेहत के लिहाज से ठीक है, लेकिन इसके साथ अन्य तेलों का प्रयोग करना चाहिए। इस तेल में एंटीबैक्टीरियल व एंटीफंगल गुण होते हैं जो वायरस, फंगस व बैक्टीरिया से बचाव करते हैं। यह तेल वजन घटाने के लिए मददगार है। दक्षिण भारत में यही तेल अधिक खाया जाता है। खाना बनाने में आप इसका प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन इसमें डीप फ्राई न करें।

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