अत्यधिक थकान...कहीं ये मायस्थीनिया तो नहीं?
मायस्थीनिया पैदाइशी कारणों से भी संभव है। कभी-कभी ज्यादा ठंड या अत्यधिक गर्मी भी इस रोग को उत्पन्न करने का कारण बन सकती है।
कहीं आप थोड़ा चलने या थोड़ा-सा व्यायाम करने के बाद पूरी तरह थक तो नहीं जाते या कभी बालों में कंघी करते वक्त कठिनाई महसूस होती हो या घर गृहस्थी का थोड़ा सा काम करने के बाद इतनी थकान लगती हो कि जैसे शरीर में जान ही नहीं रह गई हो। अगर ऐसा है, तो यह समझ लें कि आप शायद मायस्थीनिया रोग से पीड़ित हो सकते हैं। इस रोग का सुरक्षित और कारगर इलाज क्या है?
मायस्थीनिया पैदाइशी कारणों से भी संभव है। अत्यधिक शारीरिक परिश्रम करने या फिर शरीर में तीव्र इंफेक्शन के कारण भी यह मर्ज संभव है। कभी-कभी ज्यादा ठंड या अत्यधिक गर्मी भी इस रोग को उत्पन्न करने का कारण बन सकती है। नवयुवतियां भी प्रथम मासिक चक्र के पहले या बाद में मायस्थीनिया की शिकार हो सकती हैं। कभी-कभी जबरर्दस्त उत्तेजना या तनाव के कारण भी मायस्थीनिया पनप सकता है। मायस्थीनिया किसी भी आयु की महिला या पुरुष को हो सकता है, लेकिन पुरुषों की तुलना में यह रोग महिलाओं में ज्यादा और कम आयु में होता है।
मर्ज क्यों होता है
मायस्थीनिया के मरीजों के खून में एसीटाइल कोलीन रिसेप्टर नामक रासायनिक तत्व की कमी होती है। इस रासायनिक तत्व का काम शरीर की मांसपेशियों को क्रियाशील और ऊर्जा से भरपूर बनाये रखना है। इस तत्व की कमी के कारण मांसपेशियां ढीली व सुस्त हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप मायस्थीनिया के रोगी को भी थोड़ा सा चलने या काम करने से ऐसा लगता है कि जैसे शरीर से प्राण ही निकल गये हों।
थाइमस ग्रंथि की भूमिका
मायस्थीनिया रोग का मुख्य कारण छाती के अंदर एक विशेष ग्रंथि का आकार में बड़ा होना है। छाती की इस विशेष ग्रंथि को मेडिकल भाषा में थाइमस ग्लैंड कहते हैं। यह थाइमस ग्रंथि छाती के अंदर स्थित होती है। अक्सर इस ग्रंथि में ट्यूमर होता है, जिसकी वजह से ये आकार में बड़ी हो जाती है। मायस्थीनिया रोग के नब्बे प्रतिशत मरीजों में थाइमस ग्रंथि ही इस रोग के होने का प्रमुख कारण है। बाकी दस प्रतिशत मायस्थीनिया के रोग से ग्रस्त होने में आटो इम्यून रोगों को जिम्मेदार माना जाता है।
भावरहित चेहरा
जब मायस्थीनिया का रोग बढ़ जाता है, तब आंखों की पलकें उपर की तरफ उठना बंद कर देती हैं और दोनों आंखों को काफी देर तक खुला रखना मुश्किल होता हैं। आगे चलकर पलकों का गिरना स्थायी हो जाता है। आंखें चढ़ी-चढ़ी रहती हैं। मायस्थीनिया के रोगी का चेहरा भावरहित हो जाता है।
पानी पीने में कठिनाई
पानी पीते वक्त, पानी रोगी की नाक से निकलना शुरू हो जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पानी को गले से नीचे उतारते वक्त खाना खाते समय मरीज को घुटन का आभास होने लगता है। मुंह के कोने से लार या पानी गिरना शुरू हो जाता है। मरीज बोलते समय हकलाना शुरू कर देता है और उसे जोर से बोलने पर कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
सर्जरी की महत्वपूर्ण भूमिका
मायस्थीनिया रोग का सबसे कारगर व सबसे अच्छा इलाज ऑपरेशन ही है। इस ऑपरेशन में विकारग्रस्त थाइमस ग्रंथि को मरीज की छाती से पूर्णतया निकाल दिया जाता हैं। सर्जरी के चार फायदे होते हैं। पहला यह कि मायस्थीनिया के अधिकतर मरीजों में थाइमस ग्रंथि निकाल देने से मायस्थीनिया का रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है। दूसरा लाभ यह है कि ऑपरेशन से मायस्थीनिया से होने वाली मरीज की समस्याओं और कठिनाई को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता हैं, जिससे मरीज की जान जाने की आशंका कम हो जाती है। तीसरा लाभ यह है कि सर्जरी के बाद मायस्थीनिया के लिए दी जाने वाली दवाओं की संख्या और मात्रा में कमी आ जाती है। चौथा सबसे महत्वपूर्ण सर्जरी का लाभ यह होता है कि शुरुआती दिनों में थाइमस ग्रंथि में पनप रहा संभावित ट्यूमर या कैंसर से छुटकारा मिल जाता है,क्योंकि ऑपरेशन से संपूर्ण थाइमस ग्रंथि ही निकाल दी जाती है। इसलिए यूरोपीय देशों या अमेरिका में मायस्थीनिया के रोग में सर्जरी को प्राथमिकता दी जाती है।
दवाओं के नुकसान भी
जैसे प्रेडनीसोलोन दवा शरीर में नमक और पानी को एकत्र कर देती है। इस कारण शरीर और चेहरा सूजा हुआ दिखता है। देश में कुछ डॉक्टर मायस्थीनिया रोग में दवा से इलाज को ही प्राथमिकता देते है, उन्हें यह समझना चाहिए कि दवा द्वारा इलाज को प्राथमिकता देने से एक तरफ समय और पैसे की बर्बादी तो होती ही है, साथ ही साथ थाइमस ग्रंथि में छिपे हुए कैंसर वाले ट्यूमर की शुरुआती दिनों में अनदेखी हो जाती है, जिसकी वजह से मरीज को अपनी जान देकर कीमत चुकानी पड़ सकती है, जबकि ऑपरेशन एक सुरक्षित और प्रभावी इलाज है।
इलाज के लिए कहां जाएं
अगर आप या आपके परिवार का कोई सदस्य मायस्थीनिया या थाइमस ग्रंथि के ट्यूमर से पीड़ित है, तो आप किसी अनुभवी थोरेसिक यानी चेस्ट सर्जन से परामर्श लें। उनसे ही अपनी थाइमस ग्रंथि निकलवाएं और आधुनिक सुविधायुक्त बड़े अस्पतालों में ही जाएं।
नवजात शिशु भी अछूते नहीं
मायस्थीनिया रोग से पीड़ित मां का नवजात शिशु जन्म से ही मायस्थीनिया के लक्षण प्रकट कर सकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि नुकसानदेह तत्व ए.सी.आर. एंटीबॉडी मां के खून से नवजात शिशु के खून में ट्रांसफर हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि नवजात शिशु को स्तनपान के दौरान दूध को गले से नीचे उतारने में कठिनाई
होती है। इसकी वजह से नवजात शिशु की सांस फूल जाती है। स्त्री रोग विशेषज्ञ और नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ को मायस्थीनिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के इलाज में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसी गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी (प्रसव) बड़े अस्पतालों में करवानी चाहिए, जहां नवजात शिशुओं के लिए विशेष अत्याधुनिक आई.सी.यू की सुविधा हो।
डॉ.के.के.पांडेय, कार्डियोवैस्कुलर एन्ड थोरेसिक सर्जन,
अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली