हमें आज भी याद है कि 18 साल की एक लड़की के साथ उसके माता-पिता मेरे पास आये थे। उन्होंने मुझसे कहा था, ''इसे पिछले सात साल से मधुमेह (डाइबिटीज) है-इसका शुगर नियंत्रण तो बहुत अच्छा है, पर हम इसकी शादी को लेकर बहुत चिंतित हैं।
By Edited By: Updated: Mon, 03 Feb 2014 11:02 AM (IST)
हमें आज भी याद है कि 18 साल की एक लड़की के साथ उसके माता-पिता मेरे पास आये थे। उन्होंने मुझसे कहा था, ''इसे पिछले सात साल से मधुमेह (डाइबिटीज) है-इसका शुगर नियंत्रण तो बहुत अच्छा है, पर हम इसकी शादी को लेकर बहुत चिंतित हैं।'' उनसे बात करने पर पता चला कि लड़की 10 वीं कक्षा में पढ़ती थी-और वह पढ़ने में बहुत अच्छी थी। मैंने पूछा तो वह बोली, ''मैं एम.बी.ए. करना चाहती हूं।'' आज वह लड़की एम.बी.ए. करके एक मल्टीनेशनल कम्पनी में कार्यरत है। अपने व्यवहार व योग्यता के कारण उसके दो जगह से रिश्ते आये। शीघ्र ही उसकी बी.टेक. और एम.बी.ए. की डिग्री ले चुके और कॅरियर में अच्छी तरह से स्थापित एक लड़के के साथ शादी होने वाली है।
समस्या है तो समाधान भी अनेक लोगों को यह मालूम है कि टाइप 1 डाइबिटीज आम तौर पर बचपन से होती है और सारे बच्चों को शुरुआत से ही इंसुलिन की आवश्यकता होती है। शादी करने का मुद्दा इन बच्चों की एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है। समाज में धारणा है कि ये युवा लोग रोज इंजेक्शन लगाते हैं, तो इनका जीवन अधिक नहीं होता। ये शादी की जिम्मेदारियां नहीं निभा सकते हैं। ये रोगी हैं, तो कोई न कोई समस्याएं आती रहेंगी। जबकि सच ठीक इसके विपरीत है। जरा दिमाग पर जोर लगाकर सोचा जाए, तो यह समझ में आता है कि टाइप 1 डाइबिटीज से ग्रस्त व्यक्ति अपनी शुगर को समुचित रूप से संभाल सकता है। वह भी एक दो दिनों तक नहींबल्कि सालों तक। देश में प्रधानमंत्री भी देश की जिम्मेदारी केवल 5 वर्र्षो तक संभालते हैं, पर ये लड़के-लड़कियां तो अपनी बीमारी को जीवन भर संभालते हैं। क्या ये लोग आम लोगों से ज्यादा जिम्मेदार नहीं हैं? गलत धारणाओं से छुटकारा
यह सही है कि इन लोगों को अपना ख्याल थोड़ा अधिक रखना पड़ता है। जैसे खान-पान में संयम बरतना और नियमित रूप से शुगर की जांच करना आदि। ये सारी बातें, तो इनकी आदतों में शामिल हो जाती हैं और ये किसी पर बोझ नहीं बनते हैं बल्कि परिवार व समाज के सब लोगों को कहींज्यादा अनुशासनात्मक बनाने की प्रेरणा भी देते हैं।
कुछ लोगों की धारणा है कि ऐसी लड़कियां मां नहीं बन सकतीं हैं। इन्हें गर्भ धारण करने में दिक्कत होती है। इसका सही जवाब है-यदि शुगर नियंत्रित है, तो ये लड़कियां आराम से गर्भधारण (कन्सीव) कर सकती हैं। संभाल सकती हैं घर व ऑफिस को ''ये लड़कियां अपनी शुगर को एडजस्ट करेंगी या घर परिवार को।'' कुछ लोगों को ऐसा कहते भी सुना जाता है। ऐसा देखा गया है कि यदि किसी व्यक्ति को काफी समय से डाइबिटीज है, विशेष रूप से बचपन से तो उसका मैनेजमैंट करना उस व्यक्ति के स्वभाव में शामिल हो जाता है। उसे जीवन के कार्य करने में दिक्कत नहीं होती। चाहे घर संभालना हो या फिर बच्चों को या दफ्तर दोनों को।
पढ़ें:सर्दी से बढ़ जाता है हार्ट अटैक का खतरा इसके ठीक विपरीत जिन लोगों को शुगर की समस्या 35 से 40 साल की उम्र के बाद ही होती है उन्हें डाइबिटीज के साथ एडजस्ट करने में काफी अधिक समस्याएं महसूस हो सकती हैं और इस रोग का समुचित प्रबंधन करना इनके स्वभाव में शामिल नहीं हो पाता। सच तो यह है कि टाइप 1 डाइबिटीज से ग्रस्त लड़कियां जब मां बनती हैं, तो ऐसा देखा गया है कि प्रसव के बाद अन्य लड़कियों की तुलना में उनका वजन नियंत्रित रहता है। इस वजह से कई बार ये ज्यादा सुन्दर और स्मार्ट दिखती हैं। अभी कुछ दिनों पहले हम अपने दो युवा दोस्तों प्रवीन व रुचि से बात कर रहे थे। इन दोनों का विवाह कुछ वर्र्षो पहले हुआ था और दोनों एक बच्चे के पिता व मां हैं। इस वैवाहिक युगल ने जोर से हंसकर यह कहा, ''हमें ठीक से देखिए। हममें डाइबिटीज कहां दिखती है? हम वैसा ही अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे हैं जैसा हमारे अन्य भाई-बहन और दोस्त। अंत में बस जरूरत है-हम सबको और पूरे समाज को अपने नजरिये के बारे में नये सिरे से विचार करने की। यह सच है कि कुछ धारणाएं जब टूटती हैं, तब समाज थोड़ा आगे बढ़ता है। दोस्तों हम सब आगे बढ़ें, भले ही कुछ कदम।
डाइट पर दें ध्यान मधुमेह (डाइबिटीज) एक ऐसा रोग है, जिसे आप नियंत्रित करते हुए ताउम्र एक सामान्य जिंदगी बसर कर सकते हैं, लेकिन इस रोग को समूल रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता। इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति अगर दवाओं के साथ खानपान से संबंधित कुछ टिप्स पर अमल करें, तो वे काफी हद तक डाइबिटीज को नियंत्रित कर सकते हैं.. -आपके खानपान का नियम 'न तो खाली पेट रहेंगे और न ही जमकर दावतें उड़ाएंगे' पर आधारित होना चाहिए। -ब्रेकफास्ट से परहेज न करें। प्रतिदिन नियमित तौर पर ब्रेकफास्ट करने से आप स्वयं को ऊर्जावान महसूस करेंगे और इससे आपका ब्लड शुगर लेवेल भी नियंत्रित रहेगा। -एक निश्चित अंतराल पर पूरे दिन में ब्रेकफास्ट के बाद 3 घंटे पर और लंच के बाद तीन घंटे के अंतराल पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में स्नैक्स जैसे मौसमी फल या ड्राई फूट्स आदि लेना चाहिए। याद रखें, बहुत ज्यादा भूख की स्थिति में लोग जमकर भोजन करते हैं। -कैलोरी इनटेक समान मात्रा में रखें। कहने का मतलब यह है कि हर दिन समान मात्रा में और लगभग समान कैलोरी युक्त आहार ही ग्रहण करें। ऐसा न हो कि एक दिन लंच में जमकर पौष्टिक खाद्य पदार्र्थो का सेवन करें और दूसरे दूसरे दिन बहुत कम मात्रा में खाएं। कैलोरी इनटेक की मात्रा को समान रखने से ब्लडशुगर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। -मधुमेह से ग्रस्त लोगों को अपनी प्लेट का आधा भाग सब्जियों व सलाद से भरा रखना चाहिए। प्लेट का एक चौथाई भाग अनाज से निर्मित रोटियों का और शेष भाग प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्र्थो का होना चाहिए। -पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं ताकि पेशाब के जरिये शरीर के अंदर के नुकसानदेह पदार्थ बाहर निकल सकें। -कुछ कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्र्थो से परहेज करें। जैसे शुगर, रिफाइंड आटा, व्हाइट ब्रेड और कॉर्नफ्लैक्स आदि से परहेज करना चाहिए। इन खाद्य पदार्र्थो के स्थान पर गेहूं का आटा, ओट और ब्राउन राइस लें। (रितिका समादार चीफ डाइटीशियन, मैक्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली )
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