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महफूज रहे आपकी सेहत

रमजान का मुकद्दस महीना कुछ दिनों बाद शुरू होने वाला है। आप पर सेहत की सौगात बरकरार रहती है, तो ही आप खुदा की अच्छी तरह इबादत कर सकते हैं।

By Babita kashyapEdited By: Updated: Tue, 31 May 2016 12:07 PM (IST)
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टाइप-2 डाइबिटीज वाले अधिकतर लोग रोजे सुरक्षित तरीके से रख सकते हैं। वहीं कुछ लोग जो टाइप 1 मधुमेह के कारण इंसुलिन और दवाएं ले रहे हैं, उन्हें डॉक्टर की सलाह के बाद ही रोजे रखने चाहिए।

आहार व जीवन-शैली में बदलाव

रोजे के दौरान आपके आहार और जीवनशैली

में काफी परिवर्तन आता है। अगर इन परिवर्तनों पर ध्यान न दिया जाए तो वह कभी-कभी हानिकारक हो सकता है। उदाहरण के तौर पर जब एक व्यक्ति जिसे डाइबिटीज नहीं है, वह जब आठ घंटे तक कुछ नहीं खाता, तो उसके शरीर में ऊर्जा का

स्तर शरीर में मौजूद ऊर्जा के स्टोर्स के जरिये नियंत्रित होता है, परंतु डाइबिटीज से ग्रस्त व्यक्ति के साथ यह संभव नही हो पाता और उसका ब्लड ग्लूकोज सामान्य से कम हो जाता है। आप तभी रख सकते हैं रोजा

संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और जीवन शैली में परिवर्तन के जरिये अगर आप मधुमेह पर नियंत्रण कर रहे हैं, तो रोजे रख सकते हैं।

अगर आप ग्लिप्टिन, ग्लिटाजोन या मेटफॉर्मिन ग्रुप की दवाओं पर निर्भर हैं, तो भी आप रोजे सुरक्षित तौर पर रख सकते हैं। यदि आप 'एस जी एल टी 2Ó ग्रुप की दवाओं (कानाग्लिफ्लोजिन, डापाग्लिफ्लोजिन और इम्पाग्लिफ्लोजिन) पर निर्भर हैं, तो डीहाइड्रेशन का खतरा रोजे के दौरान बढ़ सकता है। वहीं इंसुलिन या सल्फोनलयूरिया दवाएं लेने वाले व्यक्ति डॉक्टर की सलाह लेकर ही रोजे रखें।

डाइबिटीज वाले ध्यान दें

टाइप-1 डाइबिटीज वाले लोगों के शरीर में इंसुलिन का उत्पादन नहीं होता और शुगर लेवल के नियंत्रण के लिए ऐसे लोगों को पूरी तरह से इंसुलिन इंजेक्शन पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे लोग रोजे न रखें।

लंबे अंतराल में क्या करें

इस साल रमजान में सहरी और इफ्तार के बीच काफी लंबा अंतर (लगभग 15 और 16 घंटे का) है। इसके अलावा रमजान भी काफी अधिक गर्मी में पड़ रहा है।

इस वजह से डाइबिटीज से ग्रस्त लोगों में लो शुगर (हाइपोग्लाइसीमिया) और डीहाइड्रेशन होने का खतरा थोड़ा ज्यादा बढ़ गया है। हाइपोग्लाइसीमिया से बचाव सामान्य से कम शुगर (70एमजी/ डीएल) को हाइपोग्लाइसीमिया कहते हैं। इसके लक्षण हैं- हाथ पैर कांपना, पसीना आना और अचानक भूख लगना। इसके अलावा चक्कर आना और सिरदर्द, आदि हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण हंै।

उपर्युक्त लक्षणों के महसूस होने पर शुगर की जांच अवश्य करें। शुगर को सामान्य करने के लिए चीनी, शहद या ग्लूकोज की तीन चम्मच लेना जरूरी होता है। हाइपोग्लाइसीमिया का खतरा ज्यादातर उन लोगों को होता है, जो इंसुलिन या मधुमेह की दवाओं पर निर्भर हों।

डीहाइड्रेशन की रोकथाम

शुगर बढऩे से और कई घंटों तक पानी के बगैर रहने से डीहाइड्रेशन (शरीर में पानी की कमी होना) का खतरा बढ़ सकता है। ध्यान रहे कि सहरी और इफ्तार के वक्त पानी अधिक पीएं। फल खाएं, चाय, कॉफी और कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन कम करें। इनसे डीहाइड्रेशन का खतरा बढ़ता हैं।

सहरी के समय खान-पान

इस वक्त तरल पदार्थ ज्यादा लें। जैसे लस्सी, नारियल पानी। फाइबर युक्त भोजन लें। जैसे चोकरयुक्त रोटी। कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट्स खाएं जैसे ब्राउन राइस, साबुत दाल और फल। इस भोजन से सारा दिन शुगर

का स्तर सामान्य बना रहने में मदद मिलेगी।

हाई ब्लड प्रेशर वालों को सुझाव

डाइबिटीज के अलावा उच्च रक्त चाप(हाई ब्लड प्रेशर) की दवा ले रहे लोगों को भी रोजे के दौरान सावधानी

बरतने की आवश्यकता है। डीहाइड्रेशन, रोजों का लंबा वक्त होना और अधिक पसीना आने से ब्लडप्रेशर के कम होने की संभावना बढ़ सकती है। इसलिए रोजे शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह के अनुसार हाई ब्लड प्रेशर की दवाओं और उनकी डोज में भी बदलाव किया जा सकता है।

बदल सकती है दवा की खुराक

रोजे के दौरान दवा की खुराक और समय बदलना पड़ सकता है। परंतु दवा लेना बहुत आवश्यक है। दवाएं न लेने से शुगर के अधिक बढऩे का खतरा रहता है। रोजे के दौरान शुगर की जांच नियमित तौर पर करें। सहरी और इफ्तार के समय शुगर की जांच अवश्य करें।

जब रोजा खोलें

रोजा खोलने के लिए 1 से 2 खजूर से शुरुआत करें। इफ्तार के वक्त चिकनाई वाली चीजें न खाएं। सलाद और सब्जियां ज्यादा खाएं। तली हुई चीजें जैसे तले हुए कबाब, पकौड़े और पूडिय़ां आदि कम खाएं। नमक का सेवन कम करें। मिठाइयां और जूस न लें।

इन बातों पर दें ध्यान

रमजान के पूर्व डाइबिटिक पेशेन्ट को डाइबिटीज प्रबंधन के बारे में अपने डॉक्टर से जानकारी लेनी चाहिए। ' रोजा रखने वाले व्यक्ति को बताना जरूरी है कि यदि शुगर लो होने (हाइपोग्लाइसीमिया) के लक्षण महसूस

हो रहे हों, तो तुरंत रोजा तोडऩा चाहिए। ऐसे व्यक्ति के अभिभावकों को उसे तुरंत चिकित्सकीय सेवा उपलब्ध करानी चाहिए।

- अपने रक्त में शुगर के स्तर को देखने के लिए एचबीए1सी कराना चाहिए। यदि एचबीए1सी 10 प्रतिशत से अधिक है तो रोजा नहीं रखना चाहिए।

- अपना परीक्षण कराके अन्य बीमारियों का पता लगाना चाहिए, जो रोजा रखने से बिगड़ सकती हैं। खासतौर पर क्रोनिक किडनी डिजीज, लिवर फेल्योर, हॉर्ट की गंभीर समस्याएं जैसे- अनस्टेबल एंजाइना या हार्ट फेल्योर।

- जो लोग इंसुलिन लेते हैं, उनमें भी इंसुलिन का टाइप व मात्रा में बदलाव करना उपयोगी होता है। अब बहुत से नये इंसुलिन उपलब्ध हैं, जिनका असर 5 मिनट में शुरू हो जाता है। एक घंटे अधिकतम असर होता है और 3 से 4 घंटे में असर खत्म हो जाता है। ऐसे इंसुलिन सहरी या इफ्तार के तुरंत पहले लिए जा सकते हैं और उनके तेज असर के कारण, खाने के बाद होने वाली उच्च शुगर पर बेहतर नियंत्रण हो सकता है। चूंकि इनका असर कम समय (3 से 5 घंटे) के लिए ही होता है, तो खाने के कुछ घंटों के बाद, होने वाले लो शुगर से भी बचाव

होता है।

डॉ. नन्दिनी रस्तोगी

सीनियर फिजीशियन

डॉ.अंबरीश मित्तल

सीनियर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट,

मेदांता दि मेडिसिटी, गुडग़ांव

प्रस्तुति: विवेक शुक्ल