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कभी सोचा है, क्यों आता है आपको इतना गुस्सा ?

वजह चाहे जो भी हो, गुस्सा आने पर लोग खुद को काबू में नहीं रख पाते और भड़क उठते हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि लोग अब मरने-मारने पर उतरने लगे हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Updated: Mon, 06 Jun 2016 04:17 PM (IST)
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आपकों चाहे जितना भी गुस्सा आता हो लेकिन आप भी हमेशा यही कहते होंगे की लोगों को गुस्सा आखिर क्यों आता है?इसकी कई वजह हैं जिनके बारे में आज तक कोई ठीक से पता नहीं लगा पाया है। वैज्ञानिक भी इस बात को कबूल करते हैं। लेकिन एक बात है जिससे सभी मानसिक-स्वास्थ्य विशेषज्ञ सहमत हैं और वह है कि वजह चाहे जो भी हो, गुस्सा आने पर लोग खुद को काबू में नहीं रख पाते और भड़क उठते हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि लोग अब मरने-मारने पर उतरने लगे हैं। आए दिन अखबारों और न्यूज चैनल्स पर खबरें आती रहती है कि सड़क पर हुई छोटी से कहा सुनी में एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति की जान ले ली।

इंसान को कई बातें गुस्सा दिला सकती हैं, जैसे जब उसके साथ नाइंसाफी होती है या उसकी बेइज़्ज़ती की जाती है। इसके अलावा कोई उसका अधिकार छीनने की कोशिश कर रहा हो आदि। ऐसी कई सारी वजह है जो गुस्सा दिला सकती हैं। लेकिन कभी-कभी जिन बातों को हमें नजरअंदाज कर देना चाहिए हम उन बातों पर इतना भयंकर गुस्सा करते हैं जिससे हालत बेकाबू होने लगते हैं।
अलग-अलग लोगों को अलग-अलग वजह से गुस्सा आता है। एक इंसान को किस बात पर गुस्सा आता है यह उसकी उम्र और संस्कृति पर निर्भर करता है, साथ ही कि वह आदमी है या औरत। इसके अलावा, गुस्सा दिलाए जाने पर लोग अलग-अलग तरीके से पेश आते हैं। कुछ लोगों को कभी-कभार ही गुस्सा आता है और जब वे गुस्सा होते हैं तो जल्द शांत भी हो जाते हैं। जबकि कुछ ऐसे हैं जो ज़रा-ज़रा-सी बात पर झल्ला उठते हैं और कई दिनों, महीनों या सालों तक अपने अंदर गुस्से की आग को सुलगाए रखते हैं।ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही हैं। ये सवाल हम सबके लिए जरूरी है कि हमारे आस-पास की ऐसी कौन सी चीजे घटित हो रही हैं जो हमें अप्रत्यक्ष रूप से गुस्सैल स्वभाव का बना रही है।

हमारी हद से ज्यादा बढ़ती डिमांड
आज की भागती दौडती जिंदगी में टैक्नोलॉजी हमारी साथी बनती जा रही है। हम रात को अपने फोन कि बिना नहीं हो सकते है। अगर हम हमारा फोन किसी फाइल को खोलने में कुछ सेकैंड ज्यादा वक्त ले लेता है तो हम झल्ला उठते हैं। हमारा इंटरनेट अगर स्लो हो जाए तो हमारा बीपी हाई हो जाता है। ऐसी तमाम छोटी-मोटी डिमांड जो हम तकनीक से करते जा रहे हैं और जो समय में पूरा ना हो तो हमें गुस्सा आ जाता है।

मनोरंजन का असर
टीवी और मीडिया में जो खून-खराबा दिखाया जाता है उसका बच्चों पर क्या असर होता है, यह पता करने के लिए हज़ार से भी ज़्यादा खोज की गयीं। जानकारों के मुताबिक जब बच्चे बार-बार मार-काट वाले ऐसे कार्यक्रम देखते हैं तो बड़े होने पर इसका उन पर बहुत बुरा असर होता है। उनके दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि तैश में आकर किसी पर भी हाथ उठाना जायज़ है। जब वे देखते हैं कि किसी पर वहशियाने तरीके से ज़ुल्म ढाया जा रहा है, तो इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। और-तो-और उनमें दया की भावना खत्म होती जाती है। हालाँकि यह सच है कि जो बच्चे लगातार टीवी पर मार-धाड़ देखते हैं, उनमें से ज़्यादातर बड़े होकर खतरनाक मुजरिम नहीं बनते। लेकिन मीडिया लोगों तक यही संदेश पहुँचा रहा है कि ज़िंदगी की मुश्किलों का सामना करने का सही तरीका है, गुस्सा करना। इसलिए आज एक नयी पीढ़ी उभर आयी है जो मार-धाड़ को बहुत मामूली बात समझती है।

माँ-बाप के आपसी रिश्ते का असर
बच्चे बड़े होकर कैसे इंसान बनेंगे, यह काफी हद तक उनके माता-पिता पर निर्भर करता है। बचपन से लेकर जवानी तक वे अपने माँ-बाप को देखकर सीखते हैं कि अलग-अलग हालात में उन्हें कैसे पेश आना चाहिए। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक इंसान बचपन से ही गुस्सा करना सीखता है। वह बड़े-बुज़ुर्गों को गुस्सा करते देख उनकी नकल उतारने की कोशिश करता है। अगर एक बच्चे की परवरिश ऐसे माहौल में होती है, जहाँ माँ-बाप हमेशा एक-दूसरे से भिड़े रहते हैं और बात-बात पर चिल्लाते हैं, तो बच्चे को यही सीख मिल रही होती है कि मुश्किलों का सामना करने के लिए गुस्सा करना ज़रूरी है। ऐसे बच्चे की तुलना हम उस पौधे से कर सकते हैं जिसे गंदे पानी से सींचा जाता है। हालाँकि वह पौधा बढ़ेगा मगर ठीक से नहीं और उसे ऐसा नुकसान पहुँचेगा जिससे वह किसी काम का नहीं रहेगा। उसी तरह, जो बच्चा ऐसे माहौल में पला-बढ़ा हो जहाँ क्रोध, गुस्सा और चीखना-चिल्लाना आम है, तो लाज़िमी है कि बड़े होने पर वह गुस्सैल स्वभाव का बनेगा।

भीड़-भाड़वाले शहरों का प्रभाव
सन्‌ 1800 में दुनिया की करीब 3 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती थी। लेकिन सन्‌ 2008 में यह संख्या बढ़कर 50 प्रतिशत हो गयी और अनुमान लगाया गया है कि सन्‌ 2050 तक यह 70 प्रतिशत हो जाएगी। जैसे-जैसे शहर में लोग खचाखच भरते जा रहे हैं, वैसे-वैसे उनमें गुस्सा और चिड़चिड़ाहट बढ़ती जा रही है। अगर हम मेक्सिको सिटी की बात लें, तो यह दुनिया के सबसे बड़े और घनी आबादीवाले शहरों में से एक है। यहाँ पर इतना ट्रैफिक जाम होता है कि लोगों का जीना दूभर हो गया है। मेक्सिको सिटी में करीब 1 करोड़ 80 लाख लोग हैं और 60 लाख गाड़ियाँ हैं। भीड़-भाड़वाले शहरों में और भी कई वजह हैं जिनसे लोगों का तनाव बढ़ता जा रहा है। जैसे वायु प्रदूषण, शोर-शराबा, रहने के लिए जगह की कमी, अलग-अलग संस्कृति के लोगों के बीच तकरार और जुर्म की बढ़ती वारदातें। आए दिन तनाव की नई-नई वजह उभर रही हैं और लोगों के सब्र का बाँध टूटता जा रहा है। वे आसानी से चिढ़ जाते हैं या गुस्सा हो जाते हैं।

योग से दूरी
हम दैनिक जीवन में अपने लिए शांति के कुछ पल नहीं निकाल ही नहीं पा रहे हैं। रोजाना भागती-दौड़ती जिंदगी में से कुछ पल व्यायाम और योगा को नहीं दे पा रहे हैं। एक घंटे जाम में फंसे रहकर हम गुस्सा कर सकते हैं लेकिन 15 मिनट योग को देकर अपने आप को बेहतर रखने के लिए हमारे पास समय ही नहीं है। हमें रोजाना कुछ समय के लि योग करना चाहिए । मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा करने से दिमागी तनाव कम होता है और व्यक्ति का गुस्सैल स्वभाव ठीक होने लगता है।

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