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हार सकता है कैंसर

कैंसर के संदर्भ में लोगों में कई तरह की भ्रांतियां व्याप्त हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि तमाम लोग बुनियादी बातों को भी नहीं जानते, जैसे वे हर गांठ को कैंसर मान लेने की भूल करते हैं। सच तो यह है कि मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के कारण

By Babita kashyapEdited By: Updated: Tue, 03 Feb 2015 11:07 AM (IST)

कैंसर के संदर्भ में लोगों में कई तरह की भ्रांतियां व्याप्त हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि तमाम लोग बुनियादी बातों को भी नहीं जानते, जैसे वे हर गांठ को कैंसर मान लेने की भूल करते हैं। सच तो यह है कि मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के कारण अनेक प्रकार के कैंसरों की रोकथाम की जा सकती है और उनका सफलतापूर्वक इलाज भी किया जा सकता है। विश्व कैंसर दिवस के मद्देनजर विवेक शुक्ला ने की कई विशेषज्ञों से बात ...

वल्र्ड कैंसर डे (4 फरवरी)

शरीर के किसी भी भाग में कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि को कैंसर कहा जाता है। कैंसर के अनेक प्रकार हैं। यह रोग शरीर के विभिन्न अंगों को अपनी चपेट में ले सकता है, जो किसी अंग विशेष से अन्य भागों में भी फैल सकता है। अगर शरीर में तेजी से बढऩे वाली कोई गांठ हैं, तो वह कैंसर हो सकती है। वहीं जो गांठ तेजी से नहीं बढ़ती, उसमें कैंसर होने की आशंका कम होती है।

मस्तिष्क में तेजी से बढऩे वाली गांठें ट्यूमर कहलाती हैं। ध्यान दें कि हर गांठ कैंसर नहीं होती। यह कहना है मेदांता दि मेडिसिटी के वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ डॉ.अशोक वैद का। कैंसर होने के तमाम कारण हैं। विभिन्न प्रकार के कैंसरों के कारण भी विभिन्न होते हैं। जेनेटिक कारणों से भी कैंसर होता है। इसके अलावा अस्वास्थ्यकर जीवन-शैली और पर्यावरण संबंधी कारण भी कैंसर के लिए उत्तरदायी है। यह कहना है मुंबई के नानावती हॉस्पिटल के 'एच सी जी' कैंसर सेंटर में कार्यरत मेडिकल ऑनकोलॉजिस्ट डॉ. आशीष जोशी का। उनके अनुसार जो लोग धूम्रपान करते हैं, उनमें अन्य स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में फेफड़ों का कैंसर होने की आशंकाएं कहीं ज्यादा बढ़ जाती हैं। तंबाकू उत्पादों को चबाने वाले लोगों में मुंह का कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसी तरह जो लोग शराब का अत्यधिक सेवन करते हैं, उनमें लिवर या पाचन संस्थान (डाइजेस्टिव सिस्टम) से संबंधित या अन्य प्रकार के कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है।

वहीं एक्शन कैंसर हॉस्पिटल, नई दिल्ली के कैंसर विशेषज्ञ डॉ. दिनेश सिंह कहते हैं कि शरीर में दो तरह के जीन्स होते हैं। पहला, कैंसर प्रमोटर जीन्स और दूसरा, कैंसर सप्रेशन जीन्स। एक स्वस्थ व्यक्ति में इन दोनों जीन्स के मध्य संतुलन और तालमेल कायम रहता है, लेकिन अगर इन दोनों के मध्य संतुलन बिगड़ जाता है,

तो कैंसर होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। ''विभिन्न प्रकार के कैंसरों के लक्षण भी

विभिन्न होते हैं। जैसे जो लोग भोजन नली के कैंसर से ग्रस्त होते हैं, उन्हें किसी भी वस्तु या

तरल पदार्थ को निगलने में तकलीफ होती है। कहने का आशय यह है कि कैंसर ने जिस अंग

या भाग को प्रभावित कर रखा है, उससे संबंधित कार्यप्रणाली बाधित होने लगती है। अगर कैंसर

फेफड़े का है, तो इससे फेफड़ों की कार्यप्रणाली

बुरी तरह प्रभावित होती है।'' यह कहना है मेदांता दि मेडिसिटी, गुडग़ांव के वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ

डॉ. अशोक वैद का। डॉ. अशोक वैद के अनुसार कैंसर की जांच और इसके इलाज में पिछले कुछ सालों में

चमत्कारिक प्रगति हुई है। जैसे पैट सी.टी.स्कैन के जरिये कैंसर की पहचान के अलावा इसकी अवस्था (स्टेज) का भी पता लगाया जा सकता है। यह सही है कि बॉयोप्सी जांच से भी कैंसर का पता चलता है, लेकिन पैट. सी. टी. जांच से शरीर के किसी भी अंग में (मस्तिष्क को छोड़कर) कैंसर का सटीक पता लगाया जा सकता है। वहीं मस्तिष्क के कैंसरग्रस्त भाग के परीक्षण में एमआरआई परीक्षण अधिक कारगर साबित हुआ है। उपर्युक्त जांचों के बाद ही कैंसर पीडि़त व्यक्ति का सटीक व कारगर ढंग से इलाज किया जा सकता है।

साइबर नाइफ एक आधुनिकतम तकनीक है, जिसके प्रयोग से बेहोश किये बगैर विभिन्न

प्रकार के कैंसर की डायग्नोसिस व इलाज संभव है। दूसरे शब्दों में कहें तो साइबर नाइफ रेडियो सर्जरी का एक अत्यंत कारगर 'टारगेट सिस्टम'है, जिसमें रोगी के शरीर के प्रभावित अंग पर सर्जरी किए बगैर कैंसर का इलाज संभव है। फिलवक्त साइबर नाइफ रेडियो सर्जरी मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी, फेफड़ों, पैनक्रियास और किडनी के कैंसर के इलाज में सफल साबित हो रही है। डॉ. अशोक वैद के अनुसार निकट भविष्य में प्रोटॉन थेरेपी देश में उपलब्ध हो जाएगी। फिलहाल यह थेरेपी पाश्चात्य विकसित देशों में ही उपलब्ध है। इस थेरेपी के जरिये विकिरण ऊर्जा (रेडिएशन

एनर्जी) कैंसरग्रस्त भाग में ही डिपॉजिट की जाती है। इसके परिणामस्वरूप कैंसरग्रस्त भाग के आसपास स्थित अन्य स्वस्थ सामान्य टिश्यू पूरी तरह से बचा लिये जाते हैं। बच्चों में होने वाले कैंसर और खोपड़ी (स्कल) में होने वाले कैंसर (जो सर्जरी से ठीक नहीं हो सकते हैं) के मामलों में भी प्रोटॉन थेरेपी काफी कारगर सिद्ध हुई है। इस थेरेपी के जरिये विभिन्न प्रकार के कई कैंसर खत्म किये जा सकते हैं। प्रोटॉन थेरेपी एक ऐसा सटीक इलाज है, जिसमें विकिरण चिकित्सा से होने वाले दुष्प्रभाव नहीं होते। डॉ. वैद के अनुसार कैंसर की तीन प्रमुख चिकित्सा विधियां (सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियो थेरेपी)हैं। इन तीनों ही विधियों में नवीनतम तकनीकों का प्रयोग हो रहा है। जैसे विकिरण चिकित्सा (रेडियो थेरेपी) के अंतर्गत साइबर नाइफ का इस्तेमाल हो रहा है, जो नवीनतम 'टार्गेटेड रेडियो कैंसर थेरेप' की एक प्रमुख तकनीक है। टार्गेटेड कैंसर थेरेपी में कैंसर ग्रस्त भाग पर ही रेडिएशन दिया जाता है। इस कारण कैंसरग्रस्त भाग के अलावा अन्य भाग के टिश्यूज पर इस रेडिएशन के दुष्प्रभाव या साइड इफेक्ट नहींपड़ते।

कैंसर होना और दुर्भाग्य के मध्य क्या कोई संबंध है? ऐसा इसलिए, क्योंकि चंद दिनों पहले अमेरिका स्थित जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने कैंसर होने के कारणों पर एक अध्ययन(स्टडी) किया था। प्रोफेसर वोजेल्सटाइन के नेतृत्व में हुई इस स्टडी के निष्कर्र्षों के अनुसार दो तिहाई कैंसरों का कारण कोशिका में विभाजन(सेल डिवीजन) के दौरान जीन्स में होने वाले बदलाव (म्यूटेशंस) हैं। इस तरह के म्यूटेशंस ही कैंसर के कारण बनते हैं, पर्यावरण और जीवन-शैली से संबंधित कारण दो तिहाई कैंसरों का कारण नहीं हैं। जीन्स म्यूटेशंस को ही वैज्ञानिकों ने बैड लक या दुर्भाग्य की संज्ञा दी है।

इस संदर्भ में वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषज्ञ आशीष जोशी का कहना है कि उपर्युक्त अध्ययन की गलत व्याख्या नहीं निकाली जानी चाहिए। यह सही है कि जेनेटिक बदलाव कैंसर होने का एक प्रमुख और महत्वपूर्ण कारण है, लेकिन हम यह बात भी याद रखें कि विज्ञान में हर रिसर्च और स्टडी के बाद आगे भी यह सिलसिला जारी रहता है। जेनेटिक बदलावों पर पर्यावरण का क्या प्रभाव पड़ता है, इस संदर्भ में अभी और शोध -अध्ययनों की जरूरत है। स्वस्थ जीवन-शैली और शुद्ध पर्यावरण के सेहत पर पडऩे वाले अच्छे प्रभावों को खारिज नहीं किया जा सकता।

वहीं अमेरिका में हुए अध्ययन के संदर्भ में जे.के. कैंसर इंस्टीट्यूट, कानपुर के पूर्व निदेशक डॉ. अवधेश दीक्षित कहते हैं कि जीन संरचना प्रत्येक व्यक्ति की अपनी मौलिक पहचान होती है। यह पहचान व्यक्ति को मां- बाप से प्राप्त होती है, जिसे हम जीनोटाइप कहते हैं। मानव शरीर में जीन के स्तर पर परिवर्तन (म्यूटेशन)होते रहते हैं। अधिकांश म्यूटेशंस को हमारा शरीर रिपेयर कर लेता है, लेकिन कुछ म्यूटेशंस ऐसे होते हैं, जिन्हें हमारा शरीर रिपेयर नहीं कर पाता।

ऐसे म्यूटेशंस स्थायी रूप अख्तियार कर लेते हैं और यही कालांतर में कैंसर का कारण बनते हैं। ये म्यूटेशंस कब, क्यों और कैसे होंगे, यह समझ पाना मेडिकल साइंस के लिए आज तक टेढ़ी खीर है। इस संदर्भ में कारणों का स्पष्ट न हो पाना ही दुर्भाग्य या बैड लक है।

कैंसर और दुर्भाग्य मुद्दे के संदर्भ में दिल्लीएनसीआर की कैंसर विशेषज्ञ डॉ. तेजिंदर कटारिया कहती हैं कि मैं अमेरिका में हुए अध्ययन के संदर्भ में इतना ही कहूंगी कि इस स्टडी से पहले भी 70 फीसदी लोगों में कैंसर होने का कारण अज्ञात माना जाता रहा है, सिर्फ 30 फीसदी कैंसर ही अस्वास्थकर जीवन-शैली और प्रदूषित पर्यावरण की वजह से होते हैं।

उनके अनुसार मानव शरीर में 20 एमीनो एसिड होते हैं, जो 'जींसÓ का निर्माण करते हैं। एक भी एमिनो एसिड अपनी स्थिति से बदल जाए, तो इस स्थिति को म्यूटेशन कहा जाता है। चूंकि अभी तक वैज्ञानिकों को म्यूटेशंस का कारण समझ में नहीं आ सका है। कारणों को समझ न पाने की वजह से कैंसर होने को बैडलक या दुर्भाग्य कहा जा रहा है।

स्कुलर डिस्ट्राफी मूल रूप से मांसपेशियों के रोगों के एक समूह को कहते हैं, जिसमें लगभग 80 प्रकार की बीमारियों को शामिल किया जाता है। इन रोगों में सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारी ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी है। दुनिया भर में 3500 बच्चों में से एक बच्चा इस रोग से ग्रस्त होता है। दुनिया में भारत को स्टेम सेल थेरेपी के डेस्टिनेशन (उपयुक्त स्थान) के रूप में देखा जा रहा है। इसलिए जब मारीशस स्थित मस्कुलर डिस्ट्राफी एसोसिएशन को भारत में इस सुविधा की जानकारी मिली, तब उन्होंने ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी से पीडि़त बच्चों को इलाज के लिये भारत भेजना शुरू किया। बीते दिनों 10 वर्षीय टोशन रामखिलावन स्टेम सेल थेरेपी के लिए देश में लगभग दो माह तक रुका था और इस छोटे से समय में भी उसकी मांसपेशियों की ताकत लगभग तक 25 प्रतिशत वापस आ चुकी है, जबकि वह पिछले एक वर्ष से अपने बिस्तर पर ही सीमित रह गया था।

राहत की दरकार

चूंकि मारीशस के मरीज वहां की सरकार और मस्कुलर डिस्ट्राफी एसोसिएशन से मदद पाते हैं। इसलिए किसी प्रकार अपना इलाज करवा लेते हैं, लेकिन अपने देश के गरीब मरीजों का बुरा हाल है। स्टेम सेल थेरेपी ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी केअलावा अन्य प्रकार की मस्कुलर डिस्ट्राफी के

इलाज में अन्य चिकित्सकीय विधियों की तुलना में बेहतर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस रोग के इलाज में ज्यादातर चिकित्सक कॉर्टीसोन या स्टेरायड नामक दवाओं का प्रयोग करते हैं, लेकिन अंत में ये दवाएं अपने दुष्प्रभावों के चलते बच्चों में डाइबिटीज, शरीर में पानी भरना और हड्डियों का खोखलापन आदि विकार उत्पन्न कर देती हैं।

जबकि स्टेम सेल थेरेपी में शरीर में ऊर्जा और

स्फूर्ति के साथ नई मांसपेशियों का निर्माण होता है।

मुख्य लक्षण

- शुरू में बच्चा तेज चलने पर गिर जाता है।

- पीडि़त बच्चा जमीन से उठने में घुटने का सहारा लेकर या फिर घुटने पर हाथ रखकर उठता है।

- वह मुश्किल से सीढिय़ां चढ़ पाता है या फिर

धीमे-धीमे चढ़ता है।

- पैर की पिंडलियां मोटी हो जाती हैं।

- बच्चा थोड़ा सा भी दौडऩे पर थक जाता है।

कारण मस्कुलर डिस्ट्राफी जीन में आयी विकृति के कारण होता है, लेकिन इसके लक्षण सिर्फ

लड़कों (मेल चाइल्ड) में ही पाए जाते हैं। जबकिलड़कियों में जीन विकृति आने पर वे कालांतर में विवाह के बाद अपनी संतानों को ये बीमारियां दे सकती हैं।

रोकथाम

गर्भवती महिलाओं को 10 से 12 हफ्ते के गर्भकाल के दौरान एमनिओटिक फ्लूड्स की जेनेटिक जांच करानी चाहिए।

महिलाओं में कैंसर के अधिकतर मामले गर्भाशय ग्रीवा या सर्वाइकल कैंसर से संबंधित होते हैं। इसके बाद उनमें स्तन या ब्रेस्ट कैंसर के मामले

कहीं ज्यादा सामने आते हैं। सर्वाइकल कैंसर का सामान्य कारण ह्यूमैन

पैपिलोमा वाइरस (एच पी वी) को माना जाता है। सर्वाइकल कैंसर का एक प्रमुख लक्षण हैं-शारीरिक संपर्क के दौरान पीडि़त महिला को अत्यधिक दर्द महसूस होना और प्रजनन अंग से रक्तस्राव का होना। अगर युवा विवाहित

महिलाएं स्त्री रोग विशेषज्ञ के परामर्श पर एच पी वी वैक्सीन लगवा लेती हैं, तो सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम की जा सकती है। युवा विवाहित महिलाओं को स्त्री रोग विशेषज्ञ के परामर्श पर समय-समय पैप स्मियर जांच अवश्य करानी चाहिए। अगर पैप स्मियर जांच रिपोर्ट असामान्य आती है, तो फिर कॉल्पोस्कोपी जांच जरूर करानी चाहिए।'' यह कहना है मुंबई स्थित कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ, लैप्रोस्कोपिक व रोबोटिक सर्जन डॉ. अंशुमाला शुक्ला कुलकर्णी का। उनके अनुसार महिलाओं के स्तनों में होने वाली हर गांठ कैंसर नहीं होती। इसलिए अगर किसी महिला को गांठ सरीखा कुछ महसूस हो, तो उसे इस बारे में विशेषज्ञ डॉक्टर से संपर्क कर मैमोग्राफी नामक

जांच करानी चाहिए। डॉ. अंशुमाला की राय में समय रहते सर्वाइकल कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर का

अब पूरी तरह से इलाज संभव है।

डॉ. बी.एस.राजपूत स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सर्जन

क्रिटीकेयर हॉस्पिटल, जुहू, मुंबई