पौधों में बढ़ोतरी होगी तो अधिकारियों की पदोन्नति होगी, पौधा सूखा तो कटेगा वेतन
पौधों के सरंक्षण को सौ फीसद करने के लिए कर्मचारियों, अधिकारियों की पदोन्नति और वित्तीय लाभ के साथ पौध संरक्षण को जोड़ा गया है।
By Preeti jhaEdited By: Updated: Wed, 17 May 2017 09:02 AM (IST)
शिमला, [यादवेन्द्र शर्मा] । जैसे-जैसे पौधों में बढ़ोतरी होगी और वे फूलेंगे फलेंगे, वैसे ही कर्मचारियों व अधिकारियों की पदोन्नति होगी और उनके भत्ते भी बढ़ेंगे। पौधा सूखा तो वेतन में कटौती होगी। पर्यावरण संरक्षण के लिए हिमाचल सरकार ने वन विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए नया फार्मूला अपनाया है।
इसके तहत पेड़-पौधे बचेंगे तो ही पदोन्नति और वित्तीय लाभ मिलेंगे नहीं तो सभी पर कैंची चलेगी। इस संबंध में निर्देश जारी कर दिए गए हैं। देशभर में पर्यावरण संरक्षण के लिए इस तरह की पहल करने वाला हिमाचल पहला राज्य बन गया है। पौधों के जीवित रहने की दर सौ फीसद करने के लिए नई रूपरेखा निर्धारित की गई है। इसके लिए सारा रिकॉर्ड अब सेटेलाइट से तैयार कर अधिकारियों व कर्मचारियों की पूरी रिपोर्ट तैयार की जाएगी। पदोन्नति व अन्य लाभ देने से पहले इस रिपोर्ट को जांचा जाएगा।प्रदेश वन विभाग में करोड़ों की लागत से रोपे जाने वाले नए पौधों के जीवित रहने की दर को सौ फीसद करने का लक्ष्य है। इसके लिए संरक्षण के आधार पर वन परिक्षेत्र के लिए अलग से लाखों रुपये राशि प्रदान किए जाएंगे। इस राशि का दुरुपयोग न हो, खानापूर्ति के लिए पौधे न लगें व सौ फीसद के लक्ष्य को हासिल किए जाए, इसलिए इसे पदोन्नति व वेतन कटौती के साथ जोड़ा गया है।
क्या हैं नए नियम-पौधों को नर्सरी में पाला जाएगा। छोटे पौधों के स्थान पर तीन वर्ष व सात वर्ष के पौधों को लगाया जाएगा। तीन वर्ष से कम आयु का पौधा नहीं लगेगा। पौधे लगाने से पूर्व व बाद में उस क्षेत्र की वीडियो व फोटो वन विभाग की वेवसाइट पर अपलोड करनी होगी। बिना फोटो व वीडियो नहीं मिलेगी राशि। पौधरोपण के अलावा संरक्षण के लिए लाखों रुपये का प्रावधान।
चार वर्ष में लगाए एक करोड़ औषधीय पौधेप्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र 55,673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 27.50 फीसद भाग वनों से ढका हुआ है। प्रदेश में चार वर्ष में विभिन्न योजनाओं के तहत लगभग एक करोड़ औषधीय पौधे लगाए गए हैं। 2016-17 के दौरान 35 लाख औषधीय पौधे लगाए गए। प्रदेश में 35 किस्म के वनप्रदेश में 35 विभिन्न प्रकार के वन मौजूद हैं जिन्हें आठ वर्गो में बांटा जा सकता है। वनों की संख्या बढ़ाने के लिए 2013-14 में 165.60 करोड़, 2014-15 में 155.71 करोड़ तथा 2015-16 में 168.05 करोड़ रुपये व्यय किए गए।वर्ष 2016-17 के लिए 177.90 करोड़ रुपये खर्च किए गए। केंद्रीय परियोजनाओं के तहत खर्च-वन प्रबंधन की गहनता योजना के तहत प्रदेश में चार वर्ष में वनों के संरक्षण तथा वन अग्नि से बचाव के लिए 18 करोड़ रुपये।राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत नाहन, बिलासपुर, मंडी, हमीरपुर तथा कांगड़ा जिलों में बांस प्रजाति के विकास को चार वर्ष में तीन करोड़ रुपये व्यय। राष्ट्रीय मेडिसिनल प्लांट बोर्ड के सहयोग से कांगड़ा, ऊना, चंबा, कुल्लू, सिरमौर, लाहुल-स्पीति व किन्नौर जि़लों में वन औषधि संपदा के विकास के लिए लगभग 24 करोड़ खर्च। पौधों के सरंक्षण को सौ फीसद करने का लक्ष्य है। इसके लिए अब कर्मचारियों और अधिकारियों की पदोन्नति और वित्तीय लाभ के साथ पौध संरक्षण को जोड़ा गया है।सेटेलाइट से पूरा रिकॉर्ड जांचा जाएगा।तरुण कपूर, अतिरिक्त मुख्य सचिव, वन एवं पर्यावरण।
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