बालम खीरा, हरती पीड़ा
वीरेन्द्र,बोकारो: भारतीय आयुर्वेद का प्रचलन हमेशा से रहा है। इसमें गांव के वैसे लोग भी शामिल हैं जो अपने पूर्वजों से सीख कर लोगों का इलाज कर रहें हैं। इनमें से एक हैं सत्येन्द्र वैद्य। इनका कहना है कि शीघ्रातिशीघ्र अपनी बीमारी को दूर करने के लिए लोग उल्टी-सीधी दवाई खाते है। इससे एक बीमारी दूर होती नहीं तो दूसरी बीमारी उसे सताने लगती है। लोग अपने आंगन की तुलसी को भूलकर चकाचौंध की दुनियां में बड़े-बडे़ अस्पताल के चक्कर लगा रहे है। सत्येन्द्र मात्र 'बालम खीरा' के सहारे कई ला-इलाज बीमारी को सिर्फ 21 दिन में दूर करने का दावा करते हैं। सत्येन्द्र झारखंड के लोहरदागा जिला स्थित सेनहा प्रखंड के चंदवा गरघांव के रहने वाले है। उन्हें 'बालम खीरा' के महत्व की जानकारी माता-पिता से मिली। सत्येन्द्र ने बताया कि लोग अपने आस-पास के चीजों को नजरंदाज कर देते है। उसके महत्व को वे नहीं पहचानते है।
उन्होंने बताया कि बालम खीरा और जंगल की जड़ी-बूटी से चास के एक कैंसर पीड़ित रोगी को मात्र पंद्रह दिन में ठीक किया गया। उसका कैंसर जड़ से समाप्त हो गया है। वैद्य ने बताया कि पुराने मिर्गी को मात्र एक खुराक दवाई से ठीक किया जा सकता है। ऐसे कई मरीज इसका लाभ ले चुके है। पीलिया (जोंडिस) बीमारी को सत्येन्द्र तीन दिन की दवाई देकर ठीक करता है। इसके अलावा शुगर, बीपी को आठ दिन की खुराक देकर जड़ से समाप्त कर देता है। 'बालम खीरा' लोहरदागा के बास पहाड़ी में पाया जाता है। इसके काढ़ा को पीने से पेट से संबंधित सभी तरह की बीमारी दो दिन में दूर हो जाती है। अन्य बीमारी को दूर करने के लिए काढ़ा के साथ तीन किस्म की जड़ी-बूटी मिलाई जाती है। ऐसी जड़ी-बूटी झारखंड के कई जंगलों और पहाड़ी में पायी जाती है। उन्होंने दावा किया है कि कैंसर, हृदयाघात, गठिया, पथरी, बवासीर, धातु रोग, निमोनिया, बांझपन, मोतियाबिंद, नेत्र की रोशनी, मिरगी, उदर रोग, लकवा, तोतलापन, एनिमिया, पीलिया, मानसिक रोग, कान बहना, बहरापन सहित कई अन्य बीमारी को चंद दिनों में ठीक कर चुके है।