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बदहाल पुस्तकाल, तंगहाल कर्मचारी, छात्रो का टोटा

By Edited By: Updated: Fri, 18 May 2012 11:21 PM (IST)

हजारीबाग : राज्य में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए प्रसिद्घ हजारीबाग का एक मात्र प्रमंडलीय पुस्तकालय बदहाल है। इसके कर्मचारी तंगहाल हैं। वहीं पुस्तकालय में छात्रों का टोटा पड़ा हुआ है। यह मजाक नहीं हकीकत है। उत्तरी छोटानागपुर की हृदयस्थली हजारीबाग की पहचान शांत एवं स्वच्छ वातावरण में बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने वालों में अग्रणी है। इसके बावजूद भी यहां शिक्षा ग्रहण करने वालों छात्रों का पुस्तकालय में टोटा पड़ा हुआ है। वहीं कर्मचारियों की बदहाली रोंगटे खड़े कर देती है। मानव संसाधन के अदूरदर्शी एवं उपेक्षा पूर्ण रवैये के कारण प्रमंडलीय पुस्तकालय अपनी पहचान खोते जा रही है। पुस्तकालय के कर्मचारी जहां दाने दाने को मुहताज हैं। वहीं पुस्तकालय में विभाग में उपलब्ध कराई गई पुस्तकें कोई काम की नहीं है। पीने के लिए पर्याप्त जल की भी व्यवस्था। नहीं है। बिजली की तो क्या कहने न जनरेटर न बिजली। ऐसे में कई कंप्यूटर बेकार पड़े हैं।

पुस्तकालय कर्मी का वेतन 25 साल में मात्र 350 रुपये

इस महंगाई के दौर में छठे वेतन के आधार पर सरकार वेतन देती है। समय दर समय वेतन वृद्घि सहित टीए-डीए एवं अन्य भत्ते देकर अपने कर्मियों के जीवन को सुखमय बनाने के लिए प्रयत्नशील रहती है। ऐसे में शिक्षा का मंदिर पुस्तकालय का सिपाही पिछले 25 सालों से मात्र 350 रुपये के मासिक के वेतन पर अपनी ड्यूटी बजा रहे हैं। वह अपनी व्यथा की कथा बताते हुए सरकारी व्यवस्था के रूखे व्यवहार से त्रस्त हो रो पड़ता है। जहां देश में न्यूनतम मजदूरी दर 1.73 रुपये प्रति दिवस है और मनरेगा मजदूर को प्रति सौ दिन के कार्य के अलावा बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है। ऐसे में जिले का एकलौता प्रमंडलीय पुस्तकालय जो कांग्रेस कार्यालय स्थित रूकमणि भवन में स्थित है। पुस्तकालय अध्यक्ष एनपी कर्ण और उनके सह कर्मियों का वेतन दर मजाक से कम नहीं है।

पुस्तकालय सहायक का वेतन 350

पुस्तकालय सहायक पारसनाथ सिंह का मासिक वेतन 350 रुपये है। वहीं पुस्तकालय के स्वीपर हुकूम महतो का वेतन 50 रुपये मासिक है। प्रहरी हुलास कुमार रजक 350 रुपये तथा अध्यक्ष एनपी कर्ण का वेतन 350 रुपये हैं। एक ओर पिछले 25 सालों में कर्मचारियों के वेतन में चार बार बढ़ोत्तरी की गई है। वहीं राज्य में कुल चौदह पुस्तकालयों के कर्मचारियों को दाने-दाने के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। 25 वर्षो में कोई सिपाही जहां दारोगा बन जाता है वहीं इनकी स्थिति यथावत है। अपनी विवशता का रोना रोते हुए कर्मियों ने बताया कि अब इस उम्र में नई नौकरी भी संभव नहीं है।

सचिवालय से लेकर कोर्ट में है मामला

अपनी आर्थिक गुलामी का दंश झेल रहे पुस्तकालय कर्मियों ने बताया कि दर्जनों बार मामलों को लेकर सचिवालय एवं कमीशनर के पास पत्र लिखा गया है, लेकिन मामला यथावत हैं। यहां तक कि उक्त मामला पिछले दस वर्षो से हाई कोर्ट में लंबित है।

भुखमरी की स्थिति, शादी की चिंता

पुस्तकालय के अध्यक्ष एनपी कर्ण ने बताया कि भूखमरी की स्थिति में मजबूरीवश जिंदगी गुजार रहे हैं। सरकार कान में रूई डाल कर सो गई है। ऐसी गरीबी में तीन बेटियों की शादी कैसे होगी? वहीं सहायक पारसनाथ का कहना था कि मेरे भी दो बेटे-बेटियां हैं। इनकी पढ़ाई से लेकर शादी तक का खर्च कहां से उठा पाएंगे। बस एक ही आस है कि कोर्ट का फैसला जल्द से जल्द आ जाए। जिसकी आस में हम सब जिंदा हैं।

वेतन की आस में पूर्व लाइब्रेरियन का देहांत

वर्तमान लाइब्रेरियन श्री कर्ण बताते हैं कि पूर्व पुस्तकालय अध्यक्ष स्व. प्रेम कुमार सिन्हा की मृत्यु वेतन की आस में चिंता करने से हो गई थी। वहीं गोड्डा व गढ़वा के पुस्तकालय कर्मियों की मृत्यु भी असमय सरकार उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण हो गई। बावजूद इनकी हालात सुधारने के लिए सरकारी की कुंभकर्णी नींद अब तक नहीं खुली है।

अधिकांश छात्र सदस्यताहीन

पुस्तकालय के अधिकांश छात्र-छात्राएं सदस्यता के बिना पुस्तकालय का प्रयोग करते हैं। अध्यक्ष ने बताया कि शुल्क न देना के कारण इसकी व्यवस्था दयनीय होती जा रही है। इसके साथ सरकार को भी चूना लग रहा है।

पुस्तकालय के चार कंप्यूटर बेकार

पुस्तकालय में मानव संसाधन विभाग द्वारा चार वर्ष पूर्व उक्त पुस्तकालय में लगाए गए थे। इन कंप्यूटरों का प्रयोग सदस्य छात्र अपने हितार्थ पुस्तकालय में मौजूद पुस्तकों की जानकारी आदि के कर सकते हैं, लेकिन ये चार कंप्यूटर ऑपरेटर के अभाव में बेकार पड़े हुए हैं।

बेकार पुस्तकों का लगा हैं अंबार

मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा पुस्तकालय अध्यक्ष की रिपोर्ट के बिना ही पुस्तकों की खरीद की जाती है, जिसके कारण छात्रों की आवश्यकता को ध्यान में नहीं रखने के कारण अन उपयोगी पुस्तकों की खरीद हो जाती है और यह केवल पुस्तकालय की शोभा बढ़ाती है।

सड़ रही हैं पुस्तकें

पुस्तकालय में करीब 40 हजार पुस्तकें हैं, लेकिन पर्याप्त मात्रा में अलमीरा न होने के कारण किताबें खुले में पड़ी है। जिसके कारण किताबों को दीमक चाट रही है।

इंजीनियरिंग मेडिकल व मैनेजमेंट के पुस्तकें हैं बेकार

पुस्तकालय में इंजीनियरिंग, मेडिकल व मैनेजमेंट के कई बहुमूल्य पुस्तकें हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में और छात्रों में इसके प्रति घटती रूचि के कारण हजारों रुपये की किताबें बेकार पड़ी है।

राज्य के सभी प्रमंडलीय पुस्तकालयों में हजारीबाग की स्थिति ठीक है। पेयजल के लिए वाटर फिल्टर की मांग की जा चुकी है। इस समस्या का समाधान जल्द हो जाएगा। अन्य समस्या से भी जल्द ही निजात मिल जाएगा। जहां तक पुस्तकालय कर्मियों का वेतन की बात है तो पूरे राज्य के सभी प्रमंडलीय पुस्तकालय में यही हाल। इसलिए इस संबंध में कुछ नहीं कह सकते हैं। - डीईओ तुलसीदास

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