आदर्श बनें संघ के स्वयंसेवक : प्रमुख
By Edited By: Updated: Mon, 08 Oct 2012 12:43 AM (IST)
निज प्रतिनिधि, जमशेदपुर :
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक (राष्ट्रीय प्रमुख) मोहन राव भागवत शहर प्रवास के तीसरे दिन रविवार को एग्रिको मैदान पहुंचे, जहां उन्होंने शहर के लगभग दो हजार गणवेशधारी स्वयंसेवकों को संबोधित किया। शाम चार बजे से हुई सभा में संघ प्रमुख ने देश-दुनिया की स्थिति पर चर्चा करते हुए कहा कि यह बौद्धिक सभा है, जिसमें लगभग वही बातें होती हैं जो स्वयंसेवक पहले भी सुन चुके होते हैं। इसके बावजूद वे यहां सुनने को नहीं, चिंतन करने आते हैं। आज से 20 साल पहले की स्थिति के बारे में सोचें, तब से आपका जीवन कितना बदला है। बहुत बदल गया है, समस्याएं बढ़ गई हैं, जीवन कठिन हो गया है। चाहे स्कूल में एडमिशन का मामला हो, घर चलाना हो या सुरक्षा का माहौल। आप महसूस करेंगे कि पहले इतनी समस्या नहीं थी। ऐसे में हम अपना जीवन ठीक से नहीं चला पा रहे, तो देश हित दूर की बात है। इसके बावजूद मेरा मानना है कि यदि हर आदमी अपने चरित्र व आचरण को सुधार ले तो देश अपने आप ठीक हो जाएगा। स्वयंसेवकों को समय और अनुशासन का पालन करने के साथ समाज में आदर्श चरित्र प्रस्तुत करना चाहिए, जिससे सामने वाला व्यक्ति आपके जैसा बनने की सोचे। भारत आज भी हिंदू बहुल
भारत हमेशा से बाहरी देशों-दुश्मनों के आक्रमण-हमले से जूझता रहा है, लेकिन कोई इसका बाल भी बांका नहीं कर पाया। भारत आज भी हिंदू बहुल देश है। आज भी यहां के हिंदू अपनी परंपरा-संस्कृति का पालन करते हुए जीवन जी रहे हैं। अखंड भारत से बर्मा, भूटान, तिब्बत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान आदि जो भी देश अलग हुए, वे दुख में हैं। हमारे देश को दुनिया ने हिंदुस्तान नाम इसलिए दिया, क्योंकि हम विशेष लोग हैं। हमारे अंदर बंधुत्व की भावना है। हम सभी का स्वागत करते हैं। किसी के धर्म-संस्कृति या परंपरा में हस्तक्षेप नहीं करते। हमलोग विविधता को समाप्त नहीं करते, बल्कि उनके साथ तालमेल बनाकर रहना जानते हैं। हमारे यहां पहले से यह परंपरा है। ग्लोबल विलेज बहुत छोटी चीज है। हिंदू जिस किसी देश में गए, वहां की धर्म-संस्कृति व परंपरा से छेड़छाड़ किए बिना अपने ज्ञान-कौशल से उस देश को समृद्ध ही किया। भागवत ने स्वयंसेवकों से कहा कि एकता का साक्षात्कार करना जीवन का लक्ष्य रखो। इस मातृभूमि के सुपुत्रों को यही सिखाया गया है कि सभी तुम्हारे बंधु हैं। कुछ लोग कहते हैं 'गर्व से कहो हम हिंदू हैं', यह गलत है। जब यहां रहने वाले सभी हिंदू हैं तो इसमें डींग मारने की बात कहां से आ गई। 79 में आए थे देवरस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत से पहले बाला साहब देवरस यहां आए थे। देवरस ने 1979 में रीगल मैदान में सभा को संबोधित किया था, जबकि को-आपरेटिव कालेज में बैठक की थी। इनसे पहले केसी सुदर्शन 1994 में यहां आए थे, लेकिन तब वे संघ के बौद्धिक प्रमुख थे। ये भी थे विराजमान एग्रिको मैदान में हुई सभा में संघ के राष्ट्रीय प्रमुख मोहन भागवत के अलावा मंच पर सिद्धिनाथ सिंह (पतरातू), जगन्नाथ शाही (बोकारो) व वी. नटराजन (जमशेदपुर) विराजमान थे। इनके अलावा सभा में विधायक रघुवर दास, पूर्व विधायक सरयू राय, पूर्व न्यायाधीश ब्रजेश बहादुर सिंह, मुरलीधर केडिया, सुरेश सोंथालिया, इंदर अग्रवाल, एसएन ठाकुर, भाजपा के महानगर अध्यक्ष राजकुमार श्रीवास्तव, अनिल मोदी, प्रसेनजीत तिवारी, प्रकाश मेहता, शंकर जोशी समेत कई जाने-माने लोग थे। गणवेश माने खाकी पैंट! एग्रिको मैदान में सिर्फ गणवेशधारी को ही प्रवेश करने की अनुमति मिली थी, लेकिन वहां कई ऐसे लोग थे जिनके शरीर पर गणवेश के नाम पर सिर्फ खाकी पैंट थी। अधिकांश के सिर पर न काली टोपी थी, ना सफेद कमीज। पैर में कई लोग जूते की जगह चप्पल पहने हुए थे। इस पर लोगों ने टिप्पणी भी की कि क्या गणवेश का मतलब सिर्फ खाकी पैंट होता है। मैदान के बाहर लगी भीड़ एग्रिको मैदान में जब मोहन भागवत की सभा हो रही थी, तो अंदर गणवेशधारी स्वयंसेवक थे। मैदान के चारों तरफ संघ प्रमुख को सुनने के लिए सैकड़ों लोग जमा थे। कुछ स्वयंसेवक की पत्िनयां भी मैदान के बाहर खड़ी थीं। इस पर मोहन भागवत ने चुटकी लेते हुए कहा कि मैदान के बाहर जो लोग हैं, उन्हें लग रहा होगा कि कोई तमाशा हो रहा है। यहां जो नए लोग आए हैं, वे सोच रहे होंगे कि कोई जोरदार बात सुनने को मिलेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है, संघ का हर आदमी एक ही बात बोलेगा। राष्ट्र हित में चिंतन करना और उपाय ढूंढना हमारा एकमात्र लक्ष्य है। डॉ. हेडगेवार को किया याद सर संघ चालक मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कई बार संघ प्रमुख रहे डॉ. हेडगेवार को याद करते हुए उनसे जुड़े कई संस्मरण सुनाए। कार्य दायित्व का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि एक बार दावत में हेडगेवार ने पान खाने के लिए चूना मांगा, तो वहां बैठा हर आदमी दूसरे को आदेश देने लगा। लेकिन चूना नहीं मिला। इसी तरह एक बार हेडगेवार की सभा में सांप निकलने की अफवाह से भगदड़ मच गई, जबकि सांप को किसी ने नहीं देखा था। 10-12 हजार लोगों की सभा एक सांप निकलने की बात सुनकर भाग गई। ऐसा नहीं होना चाहिए।
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