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डीआरडीओ और इसरो जैसी संस्थाओं ने देश का गौरव बढ़ाया

आज डीआरडीओ, इसरो और डीएई में साइंटिस्ट और इंजीनियर्स के लिए भरपूर मौके हैं। अगर बात डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानी डीआरडीओ की करें, तो इसने 20 जनवरी, 2014 परमाणु क्षमता से लैस अग्नि मिसाइल-4 का सफलतापूर्ण परीक्षण किया। इसकी मारक क्षमता 4000 किमी. है और अब यह

By Edited By: Updated: Wed, 22 Jan 2014 01:16 PM (IST)
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आज डीआरडीओ, इसरो और डीएई में साइंटिस्ट और इंजीनियर्स के लिए भरपूर मौके हैं। अगर बात डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानी डीआरडीओ की करें, तो इसने 20 जनवरी, 2014 परमाणु क्षमता से लैस अग्नि मिसाइल-4 का सफलतापूर्ण परीक्षण किया। इसकी मारक क्षमता 4000 किमी है और अब यह सेना में शामिल होने के लिए पूरी तरह से तैयार है। वहींइंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने हाल ही में जीएसएलवी डी5 का सफल परीक्षण किया। भारत सरकार जिस तरह से इन क्षेत्रों के विकास पर ध्यान दे रही है, उसे देखते हुए इन क्षेत्रों में ब्राइट करियर की अच्छी संभावनाएं हैं।

डीआरडीओ

डीआरडीओ की स्थापना 1958 में हुई थी। उस वक्त यह छोटा-सा ऑर्गेनाइजेशन था, जिसके अंतर्गत 10 लेबोरेटरीज कार्य करती थी, लेकिन आज इसका आकार काफी बड़ा हो चुका है। आज करीब 50 से अधिक लेबोरेटरीज हैं और 7,500 से अधिक वैज्ञानिक कार्यरत हैं। इसके अलावा, 22,000 से अधिक दूसरे साइंटिफिक, टेक्निकल और सपोर्टिग स्टाफ भी कार्यरत हैं। इस ऑर्गेनाइजेशन का मुख्य कार्य भारत के डिफेंस सिस्टम को आत्मनिर्भर बनाना है। डीआरडीओ आर्मी, नेवी और एयरफोर्स की जरूरत के मुताबिक, हथियारों और उपकरणों की डिजाइनिंग, डेवलपमेंट और प्रोडक्शन का कार्य करती है। इसके तहत एयरोनॉटिकल, कॉम्बैट वेहिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग सिस्टम, मिसाइल, मैटेरियल्स, नेवल सिस्टम, एडवांस्ड कम्प्यूटिंग, लाइफ साइंस आदि शामिल हैं।

एंट्री प्रॉसेस : डीआरडीओ में साइंटिस्ट की रिक्रूटमेंट 'रिक्रूटमेंट असेसमेंट सेंटर' यानी आरएसी द्वारा की जाती है। डीआरडीओ में डायरेक्ट एंट्री 'साइंटिस्ट एंट्री टेस्ट', एजुकेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईआईटी, एनआईटी, आईआईएससी, आइटीबीएचयू, सेंट्रल यूनिवर्सिटी और दूसरे प्रमुख संस्थान) में कैंपस प्लेसमेंट द्वारा होती है। इसके तहत साइंटिस्ट सी, डी, ई, जी ग्रेड में भी स्टूडेंट्स के लिए बेहतरीन अवसर होते हैं। इसके अलावा, आरओएसएसए द्वारा फ्रेश पीएचडी स्कॉलर की एंट्री होती है।

क्वॉयलिफिकेशन :

अगर डीआरडीओ में एंट्री साइंटिस्ट एंट्री टेस्ट (ग्रुप ए सर्विस )के जरिए करना चाहते हैं, तो इसके लिए बीई/ बीटेक इन केमिकल/ कम्प्यूटर साइंस/ इलेक्ट्रिकल/ इलेक्ट्रॉनिक ऐंड कम्युनिकेशन/ मैकेनिकल इंजीनियरिंग में फ‌र्स्ट क्लास होना जरूरी है। एग्जाम हर साल सिंतबर के महीने में आयोजित की जाती है। अगर कैंपस प्लेसमेंट (साइंटिस्ट बी) के जरिए एंट्री चाहते हैं, तो इसके लिए फाइनल इयर/ प्री-फाइनल इयर स्टूडेंट्स ऑफ बीई/बीटेक/बीएससी (इंजीनियरिंग) आवेदन कर सकते हैं। वहींरोसा स्कॉलरशिप के तहत एंट्री (साइंटिस्ट सी) करने के लिए पीएचडी होना जरूरी है। इसके लिए इंजीनियरिंग/ मेडिकल एग्जामिनेशन ग्रेजुएट लेवल या साइंस/ साइकोलॉजी/ मैथ में पोस्ट ग्रेजुएट फ‌र्स्ट डिवीजन जरूरी है। इसके अलावा, टैलेंट सर्च स्कीम, लेटरल एंट्री स्कीम, एयरोनॉटिकल रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट बोर्ड फेलोशिप द्वारा भी होती है।

जॉब ऑप्शंस :

डीआरडीओ में इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स के लिए कार्य करने का बेहतरीन मौका होता है। यहां अक्सर साइंटिस्ट अपना क्षेत्र और संस्था बदलते रहते हैं, इसलिए साइंटिस्ट की डिमांड बनी रहती है। इसके अलावा, यहां नॉन-इंजीनियरिंग या अन्य संस्थाएं भी हैं, जहां जॉब के ऑप्शंस होते हैं। दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज ऐंड एनालिसिस (1965) टॉप ऑर्गेनाइजेशन हैं, जहां रिसर्च स्टूडेंट्स के अलावा, फेलो, सीनियर फेलो, विजिटिंग फेलो आदि स्तर पर मौके होते हैं।

इसरो

भारत सरकार द्वारा 'स्पेस कमीशन' और 'डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस' की शुरुआत जून 1972 में हुई। इसरो 1975 में आर्यभट्ट की शुरुआत के बाद अब तक कई कम्युनिकेशन और रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट लॉन्च कर चुका हैं। चंद्रयान-1 की सफल लॉन्चिंग के बाद अब 2016-17 में चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग के अलावा, एस्ट्रोसैट, जीसैट-6 ऐंड 6ए, जीसैट-9, जीसैट-11, जीसैट-15, जीसैट-16, आदित्या-1 की तैयारी भी चल रही है। इसरो का कार्य वेहिकल्स लॉन्चिंग, एडवांस्ड टेक्नोलॉजी, चूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम, कम्युनिकेशन सैटेलाइट, सैटेलाइट बेस्ड नेविगेशन सिस्टम आदि डेवलप करना है। भारतीय स्पेस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए डिपार्टमेंट

ऑफ स्पेस के प्रमुख अंग के रूप में नेशनल रिमोर्ट सेंसिंग एजेंसी (एनआरएसए) का गठन किया गया एनआरएसए के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों, जैसे- जियोलॉजी, वाटर रिसोर्स इंजीनियरिंग, हाइड्रोलॉजी, रिमोट सेंसिंग, जियोग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम और एनवायरनमेंट से जुडे़ स्टूटेंड्स के लिए रिसर्च एसोसिएट, सीनियर और जूनियर फेलोशिप पोस्ट ऑफर की जाती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (आईआईएसटी) से कोर्स करने के बाद इसरो में एंट्री आसान हो जाती है।

जॉब आप्शंस : डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के अंतर्गत साइंटिस्ट और इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स की विक्रम सराभाई स्पेस सेंटर, सतीश धवन स्पेस सेंटर, नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी में हमेशा डिमांड रहती है।

डीएई में अवसर

डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी यानी डीएई की स्थापना 3 अगस्त, 1954 को हुई। इसका मुख्य कार्य न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी डेवलप करना है। इसके अंतर्गत पावर सेक्टर में न्यूक्लियर पावर की साझेदारी बढ़ाने के साथ नई टेक्नोलॉजी के विकास एवं प्रयोग, बिल्डिंग ऐंड ऑपरेटिंग रिसर्च रिएक्टर्स, एडवांस्ड टेक्नोलॉजी का विकास, जैसे- रोबोटिक्स, स्ट्रैटेजिक मैटीरियल्स, लेजर, सुपर कम्प्यूटर, इंस्ट्रूमेंटेशन आदि शामिल हैं। इसके अलावा, न्यूक्लियर एनर्जी के लिए बेसिक रिसर्च जैसे कार्य भी शामिल हैं।

एंट्री और जॉब ऑप्शंस : डीएई में साइंटिस्ट्स, इंजीनियर्स और टेक्निकल ऑफिसर्स की डिमांड होती है। डॉ. होमी जहांगीर भाभा के नाम पर 1957 में ट्रेनिंग स्कूल की शुरुआत की गई, जिसे भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) के नाम से जाना जाता है। सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी (सीएटी), इंदौर, इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च

(आइजीसीएआर), कलपक्कम, न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्प्लेक्स (एनएफसी), हैदराबाद और सेंटर्स ऑफ न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन इंडिया लि.(कोटा, कलपक्कम और कैगा) बार्क ट्रेनिंग स्कूल से संबंद्ध प्रशिक्षण संस्थान हैं। यहां से प्रशिक्षण के बाद डीएई के विभिन्न पदों पर उनकी नियुक्ति आसान हो जाती है। इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च में जूनियर और सीनियर रिसर्च फेलोशिप की भी सुविधा है। एटॉमिक एनर्जी से जुडे़ औद्योगिक क्षेत्र की संस्थाओं में भी ऐसे साइंटिस्ट्स की डिमांड होती है। बार्क के सहयोग से न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्प्लेक्स, हैदराबाद और हैवी वाटर बोर्ड, मुंबई द्वारा सम्मिलित रूप से हैदराबाद में एनएचटीएस की स्थापना की गई है। यह संस्था डीएई के आइऐंडएम (इंडस्ट्रियल ऐंड मिनरल) विभाग की जरूरतों को पूरा करता है। नेशनल लेवल पर चयनित केमिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इंस्ट्रूमेंटेशन और मैकेनिकल इंजीनियरिंग स्ट्रीम के ग्रेजुएट स्टूडेंट्स को एक वर्ष का न्यूक्लियर साइंस एवं इंजीनियरिंग और आई ऐंड एम में ओरिएंटेशन कोर्स कराया जाता है। इस कोर्स को पूरा करने के बाद डीएई में नियुक्ति आसान हो जाती है।

(अमित निधि)

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