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बच्चों को मोटापे से रखना है दूर तो इन बातों का रखें ख्याल

एक नए अध्ययन से पता चला है कि जो बच्चे रात में देर तक जगते हैं और दिन में झपकी नहीं लेते, वे जरूरत से अधिक कैलोरी ग्रहण करते हैं।

By Babita kashyapEdited By: Updated: Thu, 03 Nov 2016 12:22 PM (IST)
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अगर आपके बच्चे का वजन भी बढ़ता जा रहा है तो उन्हें अधिक वजन और मोटापे के खतरे से बचाने के लिए उन्हें रात में देर तक जगने नहीं रहने देना चाहिए। एक नए अध्ययन से पता चला है कि जो बच्चे रात में देर तक जगते हैं और दिन में झपकी नहीं लेते, वे जरूरत से अधिक कैलोरी ग्रहण करते हैं। इससे उनके मोटापे की चपेट में आने का जोखिम बढ़ जाता है।

शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन छोटे बच्चों पर किया है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोउल्डर में शोधकर्ता एल्सा मुलिंस ने कहा, यह पहला अध्ययन है, जिसमें प्रायोगिक रूप से नींद में कमी का बच्चों के आहार लेने की आदत पर पडऩे वाले प्रभावों का परीक्षण किया गया। हमारे नतीजों ने दिखाया कि जो बच्चे जरूरत से कम नींद लेते हैं वे सामान्य से अधिक खाना खाते हैं। मुलिंस के अनुसार, उनके अध्ययन के नतीजे पूर्व में वयस्कों की नींद को लेकर किए गए अध्ययनों के नतीजों से मेल खाते हैं।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन छोटे बच्चों पर गौर किया जो दोपहर के बाद थोड़ी देर की झपकी से वंचित थे। उनके रात में सोने का समय भी सामान्य से दो घंटे बाद था। कुल मिलाकर वे प्रति दिन अपनी जरूरत से तीन घंटे कम की नींद लेते थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि कम नींद लेने के दौरान तीन और चार साल के बच्चों ने सामान्य के मुकाबले 20 फीसदी अधिक कैलोरी ग्रहण की। उन्होंने 25 फीसदी अधिक शुगर और 26 फीसदी अधिक कार्बोहाइड्रेट ग्रहण किया।

इस परीक्षण के बाद शोधकर्ताओं ने प्रतिभागी बच्चों को पूरी नींद लेने की छूट दी। इसके बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि बच्चे जैसे-जैसे अपनी जरूरत भर नींद के स्तर पर पहुंचे वैसे वैसे उनके अधिक शुगर और कार्बोहाइड्रेट ग्रहण करने की आदत खत्म होती गई। हालांकि वे अब भी सामान्य से 14 फीसदी अधिक कैलारी और 23 फीसदी अधिक वसा ग्रहण कर रहे थे।

शोधकर्ताओं ने कहा, हमने पाया कि नींद में कमी से छोटे बच्चों में अधिक खाना खाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है। खास बात यह है कि इसका असर नींद में कटौती बंद हो जाने के बाद भी बना रहता है। इससे उनमें वजन बढऩे और मोटापे से ग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है। यह अध्ययन 'जर्नल ऑफ स्लीप रिसर्च'प्रकाशित हुआ है।

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