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'ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी..'

दोस्तो, यह गीत किसी फिल्म का नहीं है, लेकिन इतना लोकप्रिय है कि आज भी हर एक की जुबान पर चढ़ा हुआ है। इस गीत को पचास साल पहले जब 27 जनवरी, 1963 को लता मंगेशकर ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए ंवीर सपूतों की याद में मुंबई के रामलीला मैदान में गाया था, तो वहां मौजूद भारत्

By Edited By: Updated: Fri, 24 Jan 2014 11:19 AM (IST)
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दोस्तो, यह गीत किसी फिल्म का नहीं है, लेकिन इतना लोकप्रिय है कि आज भी हर एक की जुबान पर चढ़ा हुआ है। इस गीत को पचास साल पहले जब 27 जनवरी, 1963 को लता मंगेशकर ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए ंवीर सपूतों की याद में मुंबई के रामलीला मैदान में गाया था, तो वहां मौजूद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत तमाम लोगों की आंखें नम हो गई थीं। इस गीत की स्वर लहरियां आज भी जब हमारे कानों में गूंजती हैं, तो हम रोमांचित हो उठते हैं। शहीदों की कुर्बानी के प्रति नतमस्तक हो जाते हैं। इस गीत के पचास वर्ष पूरे होने पर इसे एक बार फिर लता मुंबई में गाएंगी। उम्मीद की जा रही है कि इस अवसर पर उनके साथ इस गीत को एक लाख से अधिक लोग गाएंगे।

जब प्रदीप ने खुद इसे गाया

जिस गीत ने नेहरू जी समेत तमाम लोगों को भाव-विज्जल कर दिया था, उसे लिखने वाले कवि प्रदीप पचास साल पहले उस कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे। नेहरू जी और प्रदीप की मुलाकात 1963 में मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में हुई, जहां नेहरू जी के आग्रह पर कवि प्रदीप ने अपनी आवाज में यह गीत सुनाया था। कहा जाता है कि गीत सुनने के बाद अपने भाषण में नेहरू जी ने कहा, 'इस भावपूर्ण गीत को सुनकर जो प्रभावित न हुआ हो, वह हिंदुस्तानी नहीं है।' कवि प्रदीप ने इस गीत से मिलने वाला धन शहीदों के परिजनों की मदद के लिए बने कोष में जमा करने की अपील की थी।

कैसे बना यह गीत

1962 में चीन ने भारत पर अचानक आक्रमण कर दिया था। माहौल गमगीन था। वेदना को कम करने के लिए फिल्म उद्योग से गीत लिखने को कहा गया। कविवर प्रदीप ने एक इंटरव्यू में बताया था, 'एक कमेटी बनाई गई, जिसके अध्यक्ष महबूब खान थे और सचिव दिलीप कुमार। महबूब खान ने मुझसे गीत लिखने को कहा। एक दिन माहिम की सड़क पर घूमते हुए मेरे दिमाग में एक लाइन कौंधी- 'जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी..।' भूल न जाऊं यह सोचकर एक दुकान से सिगरेट की डिब्बी का कागज लेकर उसी पर नोट कर लिया। यह लाइन जब संगीतकार सी रामचंद्र को सुनाई, तो वे उछल पड़े। बोले- 'फटाफट पूरा कर दो।' मैंने ही लता मंगेशकर को यह गीत गाने के लिए राजी किया था।'

देशभक्ति का जज्बा जगाने वाले कुछ लोकप्रिय गीत

-अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं.. (लीडर)

-हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के.. (जागृति)

-यह देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का (नया दौर)

-मेरा रंग दे बसंती चोला (शहीद)

-मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती.. (उपकार)

-कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियो.. (हकीकत)

-है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं.. (पूरब और पश्चिम)

क्रांतिकारी कवि प्रदीप

पं. रामचंद्र द्विवेदी यानी कवि प्रदीप ने देशभक्ति का जज्बा जगाने वाले कई गीत फिल्मों में लिखे। फिल्म बंधन (1940) में 'चल चल रे नौजवान' जैसा जोशीला गाना लिखकर उन्होंने पहचान बनाई। फिर फिल्म किस्मत (1943) के देशभक्ति गीत 'दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है' से वे जन-जन में लोकप्रिय हो गए। इस गाने के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करने के आदेश जारी कर दिए थे और उन्हें भूमिगत होना पड़ा। इसके अलावा उन्होंने 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की..' और 'दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल..' जैसे देशभक्ति वाले कई गाने लिखे। उनकी भावपूर्ण लेखनी के कारण उन्हें कई पुरस्कार मिले। 1997 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने लिखे कई गाने उन्होंने स्वयं गाए भी।

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