Move to Jagran APP

बच्चों पर अधिक पढ़ाई का दबाव है खतरनाक, हो सकता है मेंटल डिसॉर्डर

पढ़ाई के बढ़ते बोझ के कारण बच्चों को खेलकूद और आराम करने का समय नहीं मिल पाता। इससे कुछ बच्चों में ध्यान केंद्रित न कर पाने का मनोविकार पैदा हो गया है।

By Babita kashyapEdited By: Updated: Mon, 20 Jun 2016 01:14 PM (IST)
Hero Image
न्यूयॉर्क। क्या आप भी दूसरे पैरेंट्स की तरह अपने बच्चे को सफल बनाना चाहते हैं? तो हो जाएं सावधान! क्योंकि एक नए शोध के मुताबिक, छोटे बच्चों पर बहुत अधिक पढ़ाई का बोझ डालने से उनका मन विचलित हो उठता है और उनमें ध्यान केंद्रित न करने का मनोविकार पैदा होने की आशंका बढ़ जाती है। अमेरिका के मियामी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि 1970 के बाद पढ़ाई के मानदंड में बढ़ोतरी होने के साथ ही ध्यान केंद्रित नहीं करने के मनोविकार में काफी वृद्धि हुई है।

पढ़ें: गुस्सैल है आपका बच्चा तो ऐसे करें कंट्रोल

इस शोध से पता चला है कि प्री-प्राइमरी में बच्चों का नामांकन तेजी से बढ़ा है और आश्चर्य की बात नहीं है कि पिछले 40 सालों में ध्यान केंद्रित न करने के मनोविकार में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है।

वहीं, फुल-टाइम कार्यक्रमों में कम उम्र के बच्चों का नॉमिनेशन 1970 के मुकाबले 2000 के मध्य तक 17 फीसदी बढ़ा है। इसके अलावा 1997 में 6 से 7 साल के बच्चों में होमवर्क को हर हफ्ते दो घंटों से ज्यादा का समय दिया गया, जबकि एक दशक पहले यह दर एक घंटे से कम थी।

पढ़ें: शिशु संग कभी न करें ये काम नही तो गंभीर होगा अंजाम

मियामी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जेफरी पी. ब्रोस्को ने कहा, हमने इस अध्ययन के दौरान पाया कि 70 के दशक की तुलना में अब बच्चे अकादमिक गतिविधियों में ज्यादा समय बिताने लगे हैं। हमें लगता है कि पढ़ाई के बोझ से कम उम्र के बच्चों के एक वर्ग पर नेगिटिव असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि पढ़ाई के बढ़ते बोझ के कारण बच्चों को खेलकूद और आराम करने का समय नहीं मिल पाता। इससे कुछ बच्चों में ध्यान केंद्रित न कर पाने का मनोविकार पैदा हो गया है।

उन्होंने कहा, प्री-नर्सरी स्कूलों में उम्र से एक साल पहले दाखिला दिलाने से बच्चों में व्यवहार संबंधी परेशानियों की संभावना दोगुनी बढ़ जाती है।वह कहते हैं कि कम उम्र के बच्चों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी स्वतंत्र रूप से खेलना, सामाजिक संबंधों और कल्पना के प्रयोग पर ध्यान देना जरूरी है। यह अध्ययन 'जामा पेडिएट्रिक्स' पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

पढ़ें: बच्चे सबसे पहले क्यों बोलते हैं मामा और पापा

(आईएएनएस)