देश के इस किले तक पहुंचने के लिए गुजरना पड़ता है दुनिया के सबसे खतरनाक ट्रैक से
यहां तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं है क्योंकि इसकी कई जगह चढ़ाई 90 डिग्री तक है।
देश के कई ऐतिहासिक किले से आपका परिचय हुआ होगा और उनकी कलात्मकता देख आप आश्चर्यचकित रह गए होंगे। मगर आपके लिए इस किले का सफर जितना खतरनाक होगा उतना ही रोमांचक भी। हर एक कदम पर आपकी सांसे थम सी जाएंगी, मगर इसके साथ ही मंजिल तक पहुंचने की आपकी ख्वाहिश भी बढ़ती चली जाएगी। चलिए ज्यादा घुमावदार बातें करने की बजाय इस घुमावदार सफर के बारे में आपको खुलकर बताते हैं।
दरअसल, यहां हम आपको एक ऐसे किले के बारे में बता रहे हैं, जो जमीन पर नहीं बल्कि एक खूबसूरत पहाड़ की चोटी पर स्थित है और यहां तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं है क्योंकि इसकी कई जगह चढ़ाई 90 डिग्री तक है।
यह पहाड़ महाराष्ट्र के नासिक में कसारा से 60 किमी दूर है और इसकी चोटी पर स्थित किले को हर्षगढ़ किले या हरिहर किले के नाम से जाना जाता है। साथ ही इस किले की चढ़ाई को हिमालय के पर्वतारोहियों द्वारा दुनिया का सबसे खतरनाक ट्रैक माना जाता है।
यह पहाड़ नीचे से चौकोर दिखाई देता है, मगर इसका शेप प्रिज्म जैसा है। यह दो तरफ से 90 डिग्री सीधा और तीसरी तरफ 75 की डिग्री पर है। वहीं किला 170 मीटर की ऊंचाई पर बना है।
इस पर चढने के लिए एक मीटर चौड़ी 117 सीढियां बनी हैं। ट्रैक चिमनी स्टाइल में है, लगभग 50 सीढियां चढ़ने के बाद मुख्य द्वार, महादरवाजा आता है, जो आज भी बहुत अच्छी स्थिति में है।
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यहां तक चढ़ने के बाद आगे की सीढियां एक चट्टान के अंदर से होकर जाती हैं और ये आपको किले के शीर्ष पर पहुंचा देती हैं, जहां हनुमान और शिव के छोटे मंदिर हैंं। वहीं मंदिर के पास एक छोटा तालाब भी है, जहां का पानी इतना साफ है कि पीया भी जा सकता है। यहां से आगे जाने पर दो कमरों का एक छोटा महल दिखता है, जिसमें 10-12 लोग रुक सकते हैं।
यहां से बासगढ़ किला, उतावड़ पीक और ब्रह्मा हिल्स का खूबसूरत नजारा दिखता है। अगर मौसम साफ हो तो इसके दक्षिण में अवध-पट्टा, कालासुबई रेंज और उत्तर में सातमाला, शैलबारी रेंज भी दिखाई देती हैं। यह किला वैतर्ना रेंज पर बना है।
ट्रैक पहाड़ के बेस में बने निरगुड़पाड़ा गांव से शुरु होती है, जो त्रियंबकेश्वर से 22 किमी और नासिक से 45 किमी दूरी पर स्थित है। इस पर सबसे पहले 1986 में डग स्कॉट (पर्वतारोही) ने ट्रैकिंग की थी, इसलिए इसे स्कॉटिश कड़ा कहते हैं। इसे पूरा करने में उन्हें दो दिन लगे थे।
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