'चुनाव' अध्यक्ष का, भिड़े दो कांग्रेसी भाई
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस ने एकमत से प्रस्ताव पारित कर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में राहुल की उम्मीदवारी का समर्थन किया है।
By Babita KashyapEdited By: Updated: Fri, 01 Dec 2017 03:02 PM (IST)
मुंबई, राज्य ब्यूरो। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव दो कांग्रेसी भाइयों में फूट का कारण बन गया है। इनमें एक भाई शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को पाखंड करार दिया था। उनसे असहमत उनके बड़े भाई तहसीन पूनावाला ने उनसे राजनीतिक रिश्ते तोडऩे का एलान किया है।
शहजाद एवं तहसीन पूनावाला अक्सर टीवी चैनलों की बहस में कांग्रेस का पक्ष रखते दिखाई देते हैं। बड़े भाई तहसीन की प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा से रिश्तेदारी भी है। रॉबर्ट की चचेरी बहन मोनिका तहसीन की पत्नी हैं। शहजाद ने अगले सप्ताह होने जा रहे कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को पाखंड करार देते हुए कहा कि यह इलेक्शन नहीं बल्कि सिलेक्शन है। शहजाद के अनुसार उन्हें पता चला है कि कांग्रेस अध्यक्षके चुनाव में वोट डालने वाले प्रतिनिधियों को उनकी स्वामी भक्ति के कारण ही प्रतिनिधि बनाया जाता है। चुनाव में सब कुछ पहले से तय होता है। यह कहने के लिए साहस की जरूरत होती है। मैं जानता हूं कि यह खुलासा करने के बाद मुझ पर तमाम तरह के हमले होंगे, लेकिन मैं सच कह रहा हूं।
शहजाद का यह बयान आने के बाद महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चह्वाण ने उनके बयान को सस्ती लोकप्रियता के लिए दिया गया बयान करार दिया है। चह्वाण का कहना है कि शहजाद लंबे समय से पार्टी में निष्क्रिय हैं। यहां तक कि उनके पास पार्टी की प्राथमिक सदस्यता भी नहीं है। बता दें कि महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस ने एकमत से प्रस्ताव पारित कर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में राहुल की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। दूसरी ओर शहजाद के बड़े भाई तहसीन ने उनके बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए उनसे अपने राजनीतिक रिश्ते तोडऩे की घोषणा की है। तहसीन का कहना है कि शहजाद उनके बेटे की तरह है। आज जब कांग्रेस गुजरात चुनाव जीतने जा रही है, ऐसे समय में शहजाद का यह रुख हैरान करने वाला है।
याद करना प्रासंगिक होगा कि नौ नवंबर, 2000 को हुए कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में भी अध्यक्ष पद की उम्मीदवार सोनिया गांधी के विरुद्ध बगावती सुर बुलंद हुए थे। तब जितेंद्र प्रसाद ताल ठोंककर सामने आ गए थे। जितेंद्र प्रसाद राजीव गांधी के राजनीतिक सलाहकार रह चुके थे। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में वोट देने वाले प्रतिनिधियों से देशभर में घूम-घूम कर वोट मांगे थे। लेकिन, उन्हें करारी शिकस्त का मुंह देखना पड़ा था।
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