सैर ख्वाबों के शहर मुंबई की
कभी बॉम्बे और बंबई के नाम से मशहूर रहा मुंबई हर दिल अजीज शहर है। एक बार जो यहां आता है वह यहीं का हो जाता है।
By Babita KashyapEdited By: Updated: Sat, 26 Aug 2017 02:48 PM (IST)
भारत के पश्चिमी तट पर महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई को कोई मायानगरी कहता है तो कोई ख्वाबों का शहर। कहते हैं यहां की आबोहवा में है दोस्ती का भाव, इसलिए पांच लाख मराठाओं की रैली में भी एक एंबुलेंस को रास्ता मिलने में जरा भी दिक्कत नहीं होती। 26/11 जैसे आतंकी हमले हों या अन्य आतंकी घटनाएं या फिर मानसून के दौरान बारिश से बेहाली, इसके तुरंत बाद मुंबईवासी अपना काम निपटाकर शांति से घर जाते या पीडि़तों की मदद करते देखे जा सकते हैं।
मूलत: महाराष्ट्र का महाआयोजन समझा जाने वाला गणेशोत्सव हो या गुजरातियों का गरबा, उत्तर भारतीयों की रामलीला हो या फिर क्रिसमस या ईद, सभी धर्मों के लोग साथ मिलकर मनाते हैं। कहते हैं, जो यहां एक बार आ गया, मुंबई उसे जाने नहीं देती। शहर की व्यस्त दिनचर्या की बानगी लोकल ट्रेनों में ही नहीं, टैक्सियों और स्कॉई वॉक पर चलने वाले राहगीरों के चेहरों पर भी पढ़ सकते हैं। प्रकृति प्रेमी हों या खांटी घुमक्कड़, मुंबई सबको खूब लुभाती है।
यूं बसा यह महानगरमुंबई की प्रथम बसावट को आज की मुंबई बनने में दो हजार साल से ज्यादा लगे हैं। तीन तरफ समुद्र से घिरी मुंबई पहले मुख्यभूमि से कटी सात द्वीपों का एक समूह हुआ करती थी। इन सात द्वीपों को बॉम्बे द्वीप, परेल, मझगांव, माहिम, कोलाबा, वर्ली एवं बुढिय़ा का द्वीप (छोटा कोलाबा) के नाम से जाना जाता था। तब मछली पकडऩे और नारियल तोडऩे का काम करने वाले कोली समाज के लोग मुख्य भूमि से अपनी पाल वाली नावों से इन द्वीपों पर आते थे और अपना काम कर वापस लौट जाते थे। ये बातें हिंदी 'ब्लिट्जÓ के पूर्व संपादक नंदकिशोर नौटियाल की संपादित पुस्तक 'मुंबई के उत्तरभारतीयÓ में कही गई हैं। समुद्री रास्तों, समुद्री हलचल एवं समुद्री संसाधनों का सबसे पहले सर्वेक्षण करने वाला भी कोली समाज ही था। उनकी पहल से ही कालांतर में मुंबई को देश का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र और बंदरगाह होने का गौरव मिल सका। कोली समाज द्वारा बसाए गए ये सप्तद्वीप समूह बाद में अन्य समाजों के भी आकर्षण का केंद्र बनते गए।
यहां है सेल्फी प्वाइंटदक्षिण मुंबई में घूमते हुए ब्रिटिश वास्तुकला की छाप कदम-कदम पर नजर आ जाती है। इसकी बानगी है मुंबई की पहचान माना जाने वाला छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस रेलवे स्टेशन। इस इमारत को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा दिया जा चुका है। यह देश के व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में से एक है। मुंबई आने वाले इस इमारत के सामने खड़े होकर सेल्फी लेते देखे जा सकते हैं। अब सेल्फी के लिए इस इमारत एवं मुंबई महानगर पालिका मुख्यालय की भव्य इमारत के बीच एक 'सेल्फी प्वाइंटÓ ही बना दिया गया है। यहां खड़े होकर लोग दोनों इमारतों के साथ यादगार तस्वीरें ले सकते हैं। इसी रेलवे स्टेशन में घुसकर पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब एवं उसके साथी इस्माइल ने दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। शहीद हो चुके लोगों का स्मारक भी अब इस रेलवे स्टेशन परिसर में देखा जा सकता है। हालांकि उस आतंकी हमले की यादें धूमिल पडऩे लगी हैं, लेकिन अब भी लोग हमले का शिकार बने होटल ताज, होटल ट्राइडेंट, नरीमन हाउस, लियो पोल्ड कैफे इत्यादि के सामने खड़े होकर तस्वीरें खिंचवाते देखे जा सकते हैं।
आसपास भी हैं आकर्षणपर्यटन की दृष्टि से मुंबई आने वाले सिर्फ यहां घूमने की योजना बनाकर आएं तो वे काफी कुछ मिस कर सकते हैं। मुंबई को केंद्र बनाकर और भी बहुत कुछ देखा और अनुभव किया जा सकता है। ब'चों के मनोरंजन के लिए मुंबई में ही एस्सेलवल्र्ड और वाटर किंगडम हैं तो पुणे मार्ग पर हाल ही में बना इमैजिका थीम पार्क भी है। मुंबई जैसे महानगर के बीच 103 वर्ग किलोमीटर में फैले एक नेशनल पार्क का होनाभी किसी आश्चर्य से कम नहीं है। बोरीवली स्थित संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान भांति-भांति के जीव-जंतुओं को खुद में समेटे पर्यटकों को आकर्षित करता है।
धर्म-कर्म में आस्था रखने वालों के लिए सिर्फ 250 किलोमीटर के दायरे में तीन ज्योतिर्र्लिंग हैं। नासिक में त्र्यंबकेश्वर, पुणे में भीमाशंकर एवं औरंगाबाद में घृष्णेश्वर के दर्शन करते हुए इसी मार्ग पर शिरडी के साईंबाबा एवं शिंगणापुर में शनि मंदिर के भी दर्शन किए जा सकते हैं। मुंबई से कुछ दूर जहां कोंकण एवंडहाणू की तरफ अनेक साफ-सुथरे चट्टानी एवं रेतीले समुद्री तटों का आनंद लिया जा सकता है, वहीं पुणे के निकट महाबलेश्वर, मुंबई-पुणे के बीच लोनावला-खंडाला एवं मुंबई से कुछ दूर माथेरान जैसे हिल स्टेशनों की सैर की जा सकती है।
छककर करें शॉपिंगखरीदारी के लिए दक्षिण मुंबई और बांद्रा में कई अच्छे और सस्ते स्थान उपलब्ध हैं। दक्षिण मुंबई में क्रॉस मैदान के पास फैशन स्ट्रीट सस्ते और फैशनेबल कपड़ों का बड़ा बाजार है। ऐसा ही बाजार बांद्रा के लिंकिंग रोड पर भी है। इन दोनों स्थानों पर मोलभाव कर पाने वाले लोगों को अक्सर बताए गए भाव से काफी कम कीमत पर भी माल मिल जाता है।
वे लोग जो ब्रांडेड वस्तुओं की शॉपिंग पसंद करते हैं, उन्हें बांद्रा की सड़कों पर शॉपिंग जरूर करना चाहिए। वे दिन गए, जब ऐसा माना जाता था कि मुंबई की सड़कों के किनारे से खरीदे गए उत्पाद 6 महीने से त्यादा नही चलेंगे। आज सड़कों के इन दुकानदारों ने रिटेल व्यापारियों सेटक्कर लेने के लिये गुणवत्ता प्रदान करना प्रारंभ कर दिया है।
बॉम्बे से मुंबई तक 17वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने पुर्तगालियों से कब्जा लेने के बाद इस शहर का अधिकृत नाम बॉम्बे कर दिया था। 20वीं सदी में इसे मराठी में मुंबई, गुजराती में मुम्बई और हिंदी व उर्दू में बंबई नाम से पुकारा जाता रहा। फिर 1995 में महाराष्ट्र में पहली बार शिवसेना-भाजपा की सरकार बनने केबाद इसका अधिकृत नाम मुंबई कर दिया गया।
मरीन ड्राइव यानी क्वींस नेकलेसगेटवे ऑफ इंडिया से करीब दो किलोमीटर दूर मरीन ड्राइव से साफ मौसम में सूर्यास्त देखना बहुत लुभावना लगता है और सूर्यास्त के बाद इसी मरीन ड्राइव पर लगी पीली स्ट्रीट लाइट्स ट्राइडेंट होटल से मलाबार हिल्स तक अद्र्ध-चंद्राकार स्वरूप में एक हार जैसा स्वरूप बनाती है। इसलिए मरीन ड्राइव को 'क्वीन्स नेकलेसÓ के नाम से भी जाना जाता है। मरीन ड्राइव पर समुद्र के किनारे बने फुटपाथ पर टहलते-टहलते आप गिरगांव चौपाटी तक जा सकते हैं।
सिद्घिविनायक और महालक्ष्मी मंदिरदादर के निकट प्रभादेवी क्षेत्र में स्थित सिद्धिविनायक मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है। महाराष्ट्र में मंगलवार गणेश भगवान का विशेष दिन माना जाता है। इसलिए इस दिन सिद्धिविनायक में भीड़ ज्यादा होती है। मन्नतें मांगने वाले तो कई-कई किलोमीटर दूर से नंगे पांव चलकर यहां मंगलवार को दर्शन करने पहुंचतेहैं। दादर से थोड़ा और दक्षिण की ओर बढऩे पर अरब सागर के किनारे महालक्ष्मी का मंदिर है।
हाजी अली दरगाहमहालक्ष्मी मंदिर से आधा किलोमीटर दूर हाजी अली की दरगाह है। इस दरगाह तक पहुंचने के लिए आधा किलोमीटर का पक्का रास्ता है। समुद्र में ज्वार आने पर यह रास्ता पानी में डूब जाता है और कुछ देर के लिए आवागमन रुक जाता है। यह दरगाह पंद्रहवीं सदी में बुखारा (उज्बेकिस्तान) से मुंबई आए सूफी संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की है। सफेद रंग से रंगी इमारत में स्थित दरगाह लाल और हरी चादर से सजी होती है। मुख्य कक्ष में संगमरमर से बने कई स्तंभ हैं।
लोकल ट्रेन: मुंबई का आईनायहां बस अड्डे या लोकल ट्रेन की टिकट खिड़की पर पांच आदमी भी खड़े हों तो कतार में खड़े होने के लिए किसी को कहना नहीं पड़ता। अंतिम स्टेशन सीएसटी या चर्चगेट आते ही यात्री ट्रेन में चल रहे पंखे बंद करके उतरते हैं। रात 12.45 की आखिरी ट्रेन से उतरकर कोई अकेली लड़की भी रात दो बजे ऑटो या टैक्सी से घर पहुंचती देखी जा सकती है। भीड़ का दबाव बढ़ गया है बहुत।
बुनियादी संरचनाएं चरमराई हैं लेकिन मुंबई की आत्मा नहीं बदली। यह महानगर जियो और जीने दो की तर्ज पर चलता है।-आबिद सुरती, लेखक-कार्टूनिस्ट
पुराने दिन याद करता हूं तो आज की मुंबई बहुत अलग लगती है। कभी नाइट लाइफ इसकी पहचान थी अब यहां गर्व करने की कई चीजें हैं।-मर्जी पेस्टनजी, कोरियोग्राफर
इन्हें भी जानें-मराठी में मां को 'आईÓ कहते हैं। मुंबादेवी को 'मुंबा आईÓ कहा जाता था। मुंबई नाम इसी पर पड़ा।-लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने वर्ष1894 में गणेशोत्सव मनाने की परंपरा शुरू की थी।-28 से 31 दिसंबर, 1885 के बीच मुंबई में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी।-28 फरवरी, 1948 को ब्रिटिश सेना का अंतिम दस्ता गेटवे ऑफ इंडिया से रवाना हुआ, जिसे 1911 में किंग जॉर्ज पंचम और महारानी मेरी की अगवानी के लिए बनाया गया था।
फिर शुरू होगी क्रूज सेवाअरब सागर तट पर बसा मुंबई बंदरगाह भारत का सर्वश्रेष्ठ सामुद्रिक बंदरगाह है। यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका आदि पश्चिमी देशों से जलमार्ग या वायुमार्ग से आने वाले यात्री सबसे पहले मुंबई ही आते हैं, इसलिए मुंबई को 'भारत का प्रवेशद्वारÓ कहा जाता है। बांद्रा-वर्ली सी लिंक शहर का प्रमुख और नवीनतम आकर्षण है। इससे वर्ली और बांद्रा के बीच की दूरी कुछ ही मिनटों में तय हो जाती है। कोरियोग्राफर मर्जी पेस्टनजी के अनुसार, यह उनका फेवरेट स्पॉट है। पर्यटकों को यहां से अरब सागर का अद्भुत दृश्य दिखता है। मुंबई आने वालों के लिए समुद्री पर्यटन एक खास पहलू है। कुछ समय पूर्व तक मुंबई से गोवा के बीच नियमित स्टीमर चलते थे। दो-तीन दशक से ये बंद हो गए हैं, पर हाल ही में भूतल परिवहन एवं नौवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मुंबई से गोवा एवं अन्य सागरतटीय नगरों के बीच क्रूज सेवा (पांच सितारा सुविधावाला नौकाविहार) शुरू करने की घोषणा की है। आशा की जा रही है कि नवंबर तक मुंबई-गोवा के बीच पहली क्रूज सेवा शुरू हो जाएगी।
बैठी व खड़ी चॉलशहर की पुरानी पहचान है चॉल, जो पहले की हिंदी फिल्मों में खूब दिखती थीं। दरअसल, आजादी के बाद वृहत्तर मुंबई में बसने वाले कतारबद्ध घर बनाकर रहने लगे। ये घर एस्बेस्टस या टीन की शीट डालकर बनाये जाते थे। अब तो ऐसे घर दो या तीन मंजिला भी हो जाते हैं, जिन्हें 'बैठी चॉलÓ कहा जाता है लेकिन सरकारी अनुमति से बनाए गए पक्की दीवारों और छतों वाले तीन-चार मंजिला कतारबद्ध घरों को 'खड़ी चॉलÓ कहा जाता है।
बॉलीवुड है हिंदी फिल्मों की राजधानी दादा साहब फाल्के ने करीब 104 साल पहले 'राजा हरिश्चंद्रÓ नामक फिल्म बनाई थी। यह एक मूक फिल्म थी, पर अब हिंदी सिनेमा उद्योग लंबा फासला तय कर चुका है। मुंबई एक तरह से हिंदी फिल्मों की राजधानी भी है, जहां अनेक फिल्म स्टूडियो हैं। फिल्मों में काम करने का सपना लेकर देशभर से युवा आते हैं, जिनमें से तमाम कामयाबी की इबारत लिखते हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का आकर्षण जन-जन के मन में बसा दिखता है। मुंबई आने वाले ज्यादातर लोगों के मन में किसी फिल्म की शूटिंग देखने या किसी फिल्म स्टार से रूबरू मुलाकात करके लौटने का सपना होता है, लेकिन यह आसानी से संभव नहीं होता। महाराष्ट्र टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन की तरफ से 599 रुपये की फीस लेकर गोरेगांव (पूर्व) स्थित दादासाहब फाल्के चित्रनगरी के नाम से मशहूर फिल्मसिटी के टूर की व्यवस्था की जाती है।
घूम आएं अतीत मेंमहानगर में ऐसे संग्रहालय हैं, जहां आप न केवल यहां के अतीत का दुर्लभ संग्रह देख सकते हैं, बल्कि देश की नायाब सांस्कृतिक विरासतों को भी निहार सकते हैं। यहां आर्कियोलॉजी, प्राचीन कला, प्राकृतिक इतिहास के साथ-साथ विज्ञान और तकनीक से जुड़ी नायाब वस्तुओं को देखा जा सकता है। इसमें सबसे बड़ा म्यूजियम छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय है।
ब्रिटिश शासन के दौरान प्रिंस ऑफ वेल्स ने वर्ष1905 में इसकी नींव रखी थी। इसके अलावा, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में भी भारत की दुर्लभ जैविक विविधताओं की झलक देखी जा सकती है। इसी तरह नेहरू सेंटर भी भारत एक खोज का शानदार अवसर उपलब्ध कराता है। जिन्हें इतिहास में रुचि में हो, वे पूरा-पूरा दिन गेटवे ऑफ इंडिया के पास स्थित प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम अथवा भायखला (पूर्व) में स्थित मुंबई के सबसे पुराने भाऊ दाजी लाड म्यूजियम में गुजार सकते है।
ये चटपटी फूड स्ट्रीट...हाल ही में आई एक रिपोर्ट में मुंबई को दुनिया का सबसे महंगा शहर बताया गया है। इसके बावजूद यह कहावत आज भी सच उतरती है कि मुंबई में कोई भूखा नहीं सोता। इसका एक कारण तो यह है कि मुंबई में काम करने की चाह रखने वाले हर हाथ को काम मिल जाता है। यहां हर बजट के रेस्टोरेंट और होटल बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। ज्यादातर शेट्टियों द्वारा चलाए जाने वाले उडुपी रेस्टोरेंट तो करीब-करीबहर चौराहे पर मिल जाते हैं, जहां साफ-सुथरा और सस्ता भोजन आसानी से उपलब्ध होता है।
मुंबई के अलग-अलग क्षेत्रों में फूड स्ट्रीट्स भी बहुतायत में हैं। मुंबादेवी हो या न्यू मरीन लाइन्स, नरीमन प्वाइंट हो या घाटकोपर, इन गलियों में मिलने वाले कई प्रकार के डोसे, पावभाजी, वड़ा-पाव, मिसलपाव, भेलपूरी और सैंडविच का स्वाद लाजवाब होता है।
मुंबई आने वाले किसी भी व्यक्ति को इन खाऊ गलियों में जरूर जाना चाहिए। इसके अलावा, आप चॉकलेट चाय के लिए दादर स्थित पश्चिम स्टेशन जा सकते हैं। जुहू चौपाटी बीच पर स्ट्रीट फूड स्टॉल्स हर किसी को लुभाते हैं।
सड़क के रास्ते गोवा या कोल्हापुर की तरफ जाने वाले पर्यटकों को मार्ग में जगह-जगह 'घरघुती भोजन' के बोर्ड लगे ढाबे दिखाई पड़ सकते हैं। इन ढाबों पर घरेलू पद्धति से बना विशेषकर सी-फूड खाना लोग पसंद करते हैं। खानपान के मामले में यह सी-फूड के शौकीनों का स्वर्ग कहा जा सकता है।
मुंबई से ओमप्रकाश तिवारी, संपादन-संयोजन: सीमा झा
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