अपनी अरबों की संपत्तियां भुलाए बैठा है रेल मंत्रालय
रेल मंत्रालय मुंबई महानगर एवं इसके आसपास स्थित अपनी अरबों की अचल संपत्तियां भुलाए बैठा है।
मुंबई [ ओमप्रकाश तिवारी]। एक ओर शहरी विकास मंत्रालय केंद्र सरकार की भूली-बिसरी अचल संपत्तियां खोजने की कवायद कर रहा है, तो दूसरी ओर रेल मंत्रालय मुंबई महानगर एवं इसके आसपास स्थित अपनी अरबों की अचल संपत्तियां भुलाए बैठा है।
दैनिक जागरण को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार रेल मंत्रालय की संपत्ति कही जानेवाली आधा दर्जन से अधिक बहुमंजिली इमारतें मुंबई के अत्यंत महंगे इलाकों में एवं पड़ोसी जिले ठाणे में 250 एकड़ से ज्यादा का भूखंड की ओर रेल मंत्रालय का ध्यान ही नहीं है। इन संपत्तियों की देखरेख कर रही मध्यप्रदेश सरकार की एक कंपनी प्रॉवीडेंट इन्वेस्टमेंट कंपनी लि. (पीआईसीएल) ये भूखंड भवन निर्माताओं को औने-पौने दामों पर लीज पर दे रही है। कई भूखंडों पर तो बहुमंजिली इमारतें भी बन गई हैं, जिनके एक-एक फ्लैट की कीमत करोड़ों में है। लेकिन इन संपत्तियों का एक भी पैसा रेल मंत्रालय या केंद्र सरकार के किसी भी कोष में जमा होने की जानकारी पीआईसीएल नहीं दे पाती। सन् 2000 के बाद से पीआईसीएल उक्त भूखंडों में से करीब 60 एकड़ लंबी अवधि के लिए लीज पर दे चुकी है। लेकिन इसके बदले में उसके द्वारा वसूली गई राशि इतनी कम है कि उसे न के बराबर ही माना जा सकता है। पीआईसीएल ने इन भूखंडों को लीज पर देने से पहले केंद्र सरकार या रेल मंत्रालय से कोई लिखित अनुमति भी नहीं ली है।
मुंबई और ठाणे की जिन अचल संपत्तियों को पीआईसीएल कौड़ियों को मोल लुटा रही है, वह सारी संपत्तियां आजादी के बाद सिंधिया राजघराने से केंद्र सरकार को प्राप्त हुई थीं। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले मध्य भारत का बड़ा राजघराना माने जानेवाले सिंधिया इस्टेट ने अपनी व्यावसायिक गतिविधियां चलाने के लिए 1926 में मुंबई में 49.66 लाख की अंशपूंजी से पीआईसीएल की स्थापना की थी। उसी दौरान आर्थिक संकट में चल रहे मुंबई के एक उद्योगपति मथुरादास गोकुलदास ने अपनी कई अचल संपत्तियां सिंधिया इस्टेट के पास महज 13 लाख रुपए में गिरवी रख दी थीं। इन संपत्तियों के बदले में मथुरादास गोकुलदास को दिया गया धन सिंधिया के रेल मंत्रालय से दिया गया और गिरवी रखी गई सभी अचल संपत्तियां सिंधिया के रेल मंत्रालय के अधीन आ गईं। आजादी से पहले मध्य भारत में सिंधिया घराने की अपनी रेल सेवा भी थी, जो उनकी आय का एक बड़ा स्रोत थी।
आजादी के बाद सिंधिया इस्टेट की यह रेल सेवा भारत सरकार के रेल मंत्रालय में विलीन हो गई। इसके साथ ही सिंधिया के रेल मंत्रालय के पास गिरवी रखी गई सेठ मथुरादास गोकुलदास की अचल संपत्तियां भी भारत सरकार के अधीन हो गईं। आजादी के बाद सिंधिया इस्टेट मध्य भारत में बने नए राज्य मध्य प्रदेश में विलीन हो गया। इसके साथ ही सिंधिया की पीआईसीएल भी मध्यप्रदेश सरकार के वित्तमंत्रालय के अंतर्गत काम करने लगी। यह कंपनी पहले की ही भांति सिंधिया के खाते से मध्यप्रदेश सरकार के हिस्से में आई संपत्तियों की देखरेख करती रही। इनमें वे अचल संपत्तियां भी शामिल थीं, जो सिंधिया के रेल मंत्रालय से केंद्रीय रेल मंत्रालय को हस्तांतरित की जा चुकी थीं। दूसरी ओर सिंधिया के रेल मंत्रालय से अपने हिस्से में आई संपत्तियों की ओर केंद्रीय रेल मंत्रालय ने कभी घूमकर भी नहीं देखा। लेकिन पीआईसीएल आज भी स्वीकार करती है कि ये संपत्तियां मध्यप्रदेश सरकार की नहीं, बल्कि केंद्र सरकार की हैं। और वह बिना किसी लिखित करारनामे के इनकी देखरेख करती आ रही है।