आधार पर निराधार नहीं हैं आशंकाएं
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड के संबंध में एक निर्णय देते हुए कहा कि किसी भी सरकारी सेवा या योजना का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से उन करोड़ों लोगों ने राहत की सांस ली है, जिनके पास आधार कार्ड नहीं है। बेशक आधार कार्ड के बहुत से फायदे हैं तो कुछनुकसान भी हैं।
(जोगिंदर सिंह) हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड के संबंध में एक निर्णय देते हुए कहा कि किसी भी सरकारी सेवा या योजना का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से उन करोड़ों लोगों ने राहत की सांस ली है, जिनके पास आधार कार्ड नहीं है। बेशक आधार कार्ड के बहुत से फायदे हैं तो कुछनुकसान भी हैं। आधार कार्ड यूआइडीएआइ (आधार) हर व्यक्ति को दिया जाने वाले कार्ड है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की महत्वूपर्ण जानकारियां दर्ज होती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत इस कार्ड में प्रत्येक व्यक्ति को दिया जाने वाला 12 अंकों का यूनिक नंबर है, जो हरके व्यक्ति की पहचान करने के लिए दिया जाता है। आधार किसी भी उम्र के व्यक्ति की पहचान के लिए बना है, चाहे वह कोई बच्चा हो या बुजुर्ग। चूंकि आधार कार्ड सिर्फ एक व्यक्ति के लिए होता है, इसलिए परिवार के हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग आधार कार्ड है। हर व्यक्ति की अलग पहचान के लिए आधार कार्ड पर जनसांख्यिकी और बायोमीटिक सूचनाओं का विवरण होता है, जिसमें घर का पता और पहचान के लिए फोटो, अंगुलियों के निशान और आंखों की पुतलियों की स्कैनिंग शामिल होती है।
व्यक्ति की इस सूचना को एकत्रित करके एक केंद्रीय डाटाबेस में स्टोर किया जाता है। हालांकि आधार कार्ड होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि आप देश के नागरिक हैं। वोट बैंक की राजनीति के चलते अगला कदम यह भी हो सकता है कि भविष्य में केवल आधार कार्ड रखने वाले लोगों को ही भारत का अधिकृत नागरिक माना जाए। विकास और रियायती दरों की सभी योजनाएं केवल भारतीय नागरिकों के लिए होती हैं, लेकिन आधार कार्ड से अवैध रूप से देश में रह रहे पाकिस्तानी और बांग्लादेशियों को भी मुफ्त खाद्यान्न का लाभ मिल जाएगा और सब्सिडी की रकम सीधे उनके खातों में जमा होने लगेगी। हालांकि शुरुआत में दावा किया गया था कि आधार कार्ड में दिया गया यूनिक नंबर राज्य प्रशासन के लिए सभी सरकारी सेवाओं और योजनाओं को महज जोड़ने का काम करेगा और यह लोगों की मजबूरी न होकर ऐच्छिक था। दिल्ली जैसे शहर में आधार कार्ड के बिना मैरिज रजिस्टेशन, प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन, आय प्रमाणपत्र और विकलांगता तथा जाति प्रमाणपत्र हासिल करना संभव नहीं है। अब लाखों करोड़ रुपये की योजनाओं को इसी के आधार पर जोड़ा जा रहा है। आधार कार्ड को खाद्यान्न सुरक्षा और नकद सब्सिडी हस्तांतरण जैसी योजनाओं का आधार बनाया जा रहा है।
किसी ने मुझसे पूछा कि क्या आपके पास आधार कार्ड है? मेरा जवाब 'नहीं' में था, क्योंकि मुडो सरकार से किसी सब्सिडी की आवश्यकता नहीं थी। उसने मुडो कहा कि जिस तरह से सरकार आधार कार्ड के इस्तेमाल के दायरे को बढ़ाती जा रही है, जल्द ही आपको रेल या हवाई टिकट खरीदने के लिए भी इसकी आवश्यकता पड़ सकती है। आधार कार्ड की योजना का शुरुआती उद्देश्य यह पता लगाना था कि देश में कितने लोग रह रहे हैं, लेकिन इसके लिए भी हर दस वर्ष में जनगणना की ही जाती है। सौभाग्य से 23 सितंबर, 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम निर्णय देते हुए कहा कि किसी भी सरकारी सेवा या जन कल्याणकारी योजना का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता। अगर कोई आधार कार्ड के लिए आवेदन करता है तो सरकार को इस बात की जांच करनी होगी कि आवेदन करने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक है या नहीं। ये कार्ड अवैध रूप भारत में रह रहे दूसरे देशों के नागरिकों को जारी नहीं किए जा सकते। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एकदम सही समय पर आया है। एक तरफ सरकार बांग्लादेशियों की बढ़ती घुसपैठ पर नकेल कसने का शोर मचाती है और दूसरी तरफ वोट बैंक की खातिर उनके हाथों में आधार कार्ड थमा रही है। 1996 में तत्कालीन गृहमंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने कहा था कि देश में ढाई करोड़ बांग्लादेशी भारत में रह रहे हैं।
अगर तब से अब तक कोई नया बंग्लादेशी भारत में नहीं भी आया तो भी बढ़ती जनसंख्या की दर से आज 17 वर्ष बाद यह आंकड़ा दोगुना या तिगुना हो गया होगा। तब से अब तक असम और पूवरेत्तर के अन्य राच्यों की जनसांख्यिकी बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ की वजह से बदल चुकी है। कुछ जिलों में तो इन बांग्लादेशियों की तादाद ने भारत के मूल नागरिकों की तादाद को भी पीछे छोड़ दिया है। बहरहाल, आधार कार्ड को राजनीतिक हथियार बनाया जा रहा है। वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित होकर इसका इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने राजनीतिक दलों के सभी समीकरणों को बिगाड़कर रख दिया है। कहा भी गया है कि राजनीति समस्या पैदा करने की कला है। फिर वही राजनीतिक दल उस समस्या को ढूंढ़कर उसका गलत नुस्खों से उपचार करने की कोशिश करते हैं। आधार कार्ड के खत्म होने पर आसमान नहीं गिर पड़ेगा।
पहले ही आधार कार्ड ने काफी कुछ घालमेल किया हुआ है। अपना लेख लिखने के लिए मुडो अपने बैग से पेन निकालना पड़ा। उस बैग में मैं अपने तमाम पहचान पत्र रखता हूं। सांस थामकर मैंने अपने विभिन्न विभागों के जारी किए हुए कार्ड संभाले। ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, पैन कार्ड, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, एयरपोर्ट पहचान पत्र, एयरलाइंस कार्ड, सीजीएचएस कार्ड, एटीएम कार्ड, गन लाइसेंस, स्वतंत्रता सेनानी पहचान पत्र, गृह मंत्रलय का पहचान पत्र, रेलवे यात्र में छूट के लिए गृह मंत्रलय का कार्ड और इसके अलावा कई और महत्वपूर्ण कार्ड। जीवन में पहचान पत्रों की डिमांड तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में वह दिन दूर नहीं, जब सरकार का हर विभाग करदाताओं के पैसे को अपने फायदे के लिए पहचान पत्र बनवाने में खर्च करेगा।अगर सरकार की दिलचस्पी यह जानने में है कि भारत में कितने लोग रह रहे हैं तो इसके लिए 2011 की जनगणना के आकड़ों का इस्तेमाल किया जा सकता है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि सरकार में इतने बुद्धिजीवियों के होते हुए किसी ने भी ऐसे बहुउद्देशीय कार्ड के बारे में नहीं सोचा, जो व्यक्ति की मौत के साथ ही एक्सपायर हो। जिसमें हर विभाग में एक कॉलम हो। हमारे नेता और दुनिया भर के राजनीतिा चीजों के साथ इस कदर उलझ गए हैं कि वे मजाक के पात्र बनकर रह गए हैं। स्टीव चैपमैन ने राजनीति पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि राजनीतिा भले की देह-व्यापार को पतित और अपमानजनक मानें, लेकिन वेश्या राजनीति को भी उसी नजर से देखती है। राजनीतिा रोनाल्ड रीगन ने कहा है कि राजनीति दूसरा सबसे पुराना व्यवसाय है।
मुडो लगता है कि इस दूसरे सबसे पुराने व्यवसाय पर उससे भी पुराने व्यवसाय यानी वेश्यावृत्ति की छाप है। अगर देश में कहीं आधार कार्ड के लिए किसी सबूत की आवश्यकता महसूस की गई तो आधार कार्ड इसके लिए काफी है, लेकिन खेद की बात यह है कि पहचान पत्र को लेकर देश में परिस्थितियां इतनी अस्त-व्यस्त और अव्यवस्थित हो चुकी हैं कि उसे ठीक करने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है।
(लेखक सीबीआइ के पूर्व निदेशक हैं)
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