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करियर के कारीगर

हर स्टूडेंट में कोई न कोई टैलेंट होता है। जरूरत है तो बस उसे समझने और निखारने की। यह काम अध्यापन पेशे को एंज्वॉय करने वाला एक जागरूक टीचर ही कर सकता है, लेकिन अध्यापक को मोटिवेट करने के साथ इस पेशे को और ज्यादा सम्मानित व आकर्षक बनाने की जरूरत है, ताकि लोग आइएएस से ज्यादा टीचर बनने के लिए प्रेरित हों। एक ट

By Edited By: Updated: Tue, 22 Jul 2014 05:18 PM (IST)
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हर स्टूडेंट में कोई न कोई टैलेंट होता है। जरूरत है तो बस उसे समझने और निखारने की। यह काम अध्यापन पेशे को एंज्वॉय करने वाला एक जागरूक टीचर ही कर सकता है, लेकिन अध्यापक को मोटिवेट करने के साथ इस पेशे को और ज्यादा सम्मानित व आकर्षक बनाने की जरूरत है, ताकि लोग आइएएस से ज्यादा टीचर बनने के लिए प्रेरित हों। एक टीचर को करियर के कारीगर के रूप में देखते हुए एजुकेशन सिस्टम के लिए उसकी बदलती भूमिका बता रहे हैं एबीइएस इंजीनियरिंग कॉलेज के जनरल सेक्रेटरी नीरज गोयल..

कुछ साल पहले आई आमिर खान की फिल्म 'तारे जमीं पर' को हर वर्ग के दर्शकों की तारीफ मिली थी। यह एक आठ साल के बच्चे ईशान (दर्शील सफारी) की कहानी है, जिसे 'डिस्लेक्सिया' नामक कथित बीमारी है। उसे स्कूल से नफरत है। क्लास में टीचर द्वारा बोर्ड पर हल किए जाने वाले सवाल उसे आड़ी-तिरछी रेखाएं लगते हैं या उसमें तरह-तरह के पशु-पक्षी दिखाई देते हैं। उसकी इस समस्या को कोई समझना नहीं चाहता। जब उसे अपने टीचर्स और सहपाठियों की मदद मिलनी चाहिए थी, तब सबसे उसे अपमानित होना पड़ता है। यहां तक कि उसके पिता भी उसे नहीं समझ पाते। आखिर में पढ़ाई में उसकी कमजोरी दूर करने और उसे अनुशासित करने के प्रयास में उसकी मर्जी के खिलाफ उसे बोर्डिग स्कूल में डाल दिया जाता है। ईशान वहां खुद को उपेक्षित और अकेला महसूस करता है। उसी दौरान बोर्डिग स्कूल से रामशंकर निकुंभ नाम के एक कला अध्यापक के रूप में आमिर खान जुड़ते हैं, जो अपनी अलग और विशिष्ट अध्यापन शैली के कारण जल्द ही बच्चों के प्रिय बन जाते हैं। निकुंभ साहब ईशान की परेशानी को करीब से समझते हुए उसके मां-बाप और प्रिंसिपल से उस पर चर्चा करते हैं और उसकी कमजोरी को दूर करने के लिए अलग तरीका अपनाते हैं। इससे धीरे-धीरे ईशान का पढ़ाई में इंट्रेस्ट पैदा होने लगता है। निकुंभ ईशान की कलात्मक क्षमता को पहचान कर उसे इस दिशा में प्रेरित करते हैं। एक दिन ऐसा भी आता है जब स्कूल में आयोजित कला प्रतियोगिता में ईशान सबको अचरज में डालता हुआ अव्वल आता है। इस फिल्म से यह साफ निष्कर्ष निकलता है कि हर बच्चे में कोई न कोई टैलेंट होता है, लेकिन यह टैलेंट तभी बाहर निकल पाता है, जब उसे पहचान कर निखारने की दिशा दी जाती है। इस फिल्म की तारीफ तो खूब हुई, पर विडंबना यह है कि हमने इससे सीख लेते हुए अपने टीचिंग मॉड्यूल में कोई व्यावहारिक बदलाव लाने की पहल नहीं की। दरअसल, हम बदलने की बात और जरूरत तो महसूस करते हैं, लेकिन बदलते नहीं।

टैलेंट की परख

आज के समय में अगर किसी स्टूडेंट को आइआइटी में एडमिशन नहीं मिलता, तो घर भर में जैसे मातम-सा पसर जाता है। बच्चे के फेल होने पर उसे किसी काम का न होने के ताने-उलाहने मिलने लगते हैं। पर सवाल यह है कि आइआइटी में एडमिशन न होने पर क्या दुनिया वहीं खत्म हो जाती है? देखा जाए, तो हर बच्चे में कोई न कोई टैलेंट छिपा होता है। इस टैलेंट को जानने के लिए पहले उसके इंट्रेस्ट को समझें, न कि हर किसी को एक ही डंडे से हांकने का प्रयास करें। टैलेंट को समझने और निखारने के लिए अपने एजुकेशन सिस्टम में भी बदलाव लाने की पहल करनी होगी, ताकि वह डिग्री ओरिएंटेड की बजाय टैलेंट ओरिएंटेड बन सके।

दुनिया के बारे में बताएं

यंग इंडिया की तुलना में यूरोप के लगभग हर देश की आबादी बूढ़ी हो रही है। यंगस्टर्स की कमी से वहां ज्यादातर काम टेक्नोलॉजी की मदद से किए जा रहे हैं। आने वाले दिनों में उन देशों में स्किल्ड प्रोफेशनल्स की डिमांड तेजी से बढ़ेगी। इन अवसरों को हासिल करने के लिए हमें अपने बच्चों को दुनिया के बारे में ज्यादा से ज्यादा बताने के साथ-साथ उनमें उनकी रुचि पैदा करनी चाहिए। तभी उनकी आंखें खुलेंगी और वे खुद को उसके मुताबिक डेवलप करने की सोच सकेंगे।

जगाएं इंट्रेस्ट

अगर किसी क्लास या सब्जेक्ट में कोई स्टूडेंट इंट्रेस्ट नहीं ले रहा, तो इससे बच्चे से कहीं ज्यादा टीचर की क्षमता पर सवाल खड़े होते हैं। जाहिर है पढ़ाने के रस्मी और बोरिंग तरीके से ही ऐसा होता है। इससे बचने के लिए टीचर अपडेट रहें और हर सब्जेक्ट को दिलचस्प उदाहरणों के साथ पढ़ाएं-समझाएं, तो स्टूडेंट्स उनमें जरूर रुचि लेंगे। इससे टीचर टीचिंग को एंच्वॉय करेंगे, तो स्टूडेंट्स स्टडी को।

टीचर्स का सम्मान

आज के समय में आम धारणा यही है कि टीचिंग प्रोफेशन में वही लोग आते हैं, जिन्हें कहीं काम नहीं मिलता। जबकि देखा जाए तो देश के भविष्य को गढ़ने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका टीचर्स की ही होती है। आज हम इस बात पर तो गौरवान्वित हो रहे हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी हमारे देश की है, लेकिन क्या हमने अपनी इस युवा-शक्ति को सही दिशा में गढ़ने की कोई कारगर व्यवस्था की है? शायद नहीं। हर साल लाखों ग्रेजुएट्स के पासआउट होने के बावजूद आखिर क्यों हमारी इंडस्ट्री इस बात के लिए चिंतित रहती है कि उसे पर्याप्त संख्या में स्किल्ड लोग नहीं मिल पा रहे? जबकि दूसरी तरफ बेरोजगारी का रोना रोते हैं। अपने देश के लोगों को काबिल बनाने के लिए सबसे पहले अपने टीचर्स को अच्छी तरह ट्रेन करने, उनका सम्मान करने और उन्हें हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराने की की जरूरत है। इस पेशे को इतना ज्यादा गौरवान्वित कर दिया जाए कि हर युवा कुछ और बनने की बजाय टीचर बनने की ही सोचे। इसके आगे उसे आइएएस भी फीका लगे। इस फील्ड से टैलेंटेड लोग जुड़ें।

* किसी स्टूडेंट पर कोई सब्जेक्ट थोपने की बजाय इंट्रेस्ट को समझकर उसका टैलेंट निखारने पर हो जोर।

* बोरिंग तरीके की बजाय किसी सब्जेक्ट को उदाहरणों के साथ रोचक तरीके से पढ़ाया जाए।

* सीखने के लिए सब्जेक्ट में एक्साइटमेंट पैदा किया जाना चाहिए।

* टीचिंग प्रोफेशन की इंपॉर्टेस को समझते हुए इसे ग्लैमराइच्ड किया जाना चाहिए, ताकि टीचर बनने का क्रेज पैदा हो।

प्रस्तुति: अरुण श्रीवास्तव

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