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नई शैली की हिंदी गढ़ रहे दिव्य

युवा लेखक दिव्य प्रकाश दुबे हिंदी के स्थापित प्रतिमानों को तोड़ने में विश्वास करते हैं। उन्हें लगता है कि हिंदी के पाठक तभी बढ़ेंगे, जब आमजन की बोलचाल की भाषा में कहानियां गढ़ी जाएं। आलोचक भले ही उनके इस दृष्टिकोण को हिंदी के विकास के लिए उचित न मानें, लेकि

By Edited By: Updated: Mon, 09 Jun 2014 01:06 PM (IST)
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युवा लेखक दिव्य प्रकाश दुबे हिंदी के स्थापित प्रतिमानों को तोड़ने में विश्वास करते हैं। उन्हें लगता है कि हिंदी के पाठक तभी बढ़ेंगे, जब आमजन की बोलचाल की भाषा में कहानियां गढ़ी जाएं। आलोचक भले ही उनके इस दृष्टिकोण को हिंदी के विकास के लिए उचित न मानें, लेकिन पाठक उनकी हर कहानी में खुद का अक्स ढूंढते हैं। उनकी दोनों पुस्तकें 'ट‌र्म्स एंड कंडीशंस अप्लाई'और 'मसाला चाय' बेस्टसेलर साबित हुई। उनकी अगली किताब एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले लड़के-लड़कियों के जीवन पर आधारित है। इसके अलावा वे एक फिल्म की पटकथा पर भी काम कर रहे हैं।

हिंदी की कहानियां पढ़ने की शुरुआत कब हुई?

ठीक-ठीक याद नहीं है, लेकिन इतना तय है कि कि चाचा-चौधरी कॉमिक्स से कहानियां पढ़ने की शुरुआत हुई। मैं गर्मी की छु˜ियों में किराये पर खूब सारी कॉमिक्स पढ़ता था। जिस दिन 4-5 कॉमिक्स से कम पढ़ता, तो मन में बेचैनी छाई रहती। नई क्लास में जाने पर हिंदी गद्य (कहानी) वाली किताब जल्दी ही खत्म कर देता। इसके बाद मोहल्ले के किसी भैया या दीदी की दसवीं क्लास की हिंदी कहानियों वाली किताब मांगकर पूरी पढ़ डालीं। पापा हंस पत्रिका, जेम्स हेडली चेज, सुरेंद्र मोहन पाठक और ओशो की कोई-न-कोई किताब जरूर घर लाते थे। मम्मी के लिए मनोरमा, गृहशोभा और अखंड ज्योति पत्रिकाएं भी आती थीं। इन सभी को थोड़ा-बहुत अपने हिसाब से पढ़ता रहता था। इंजीनियरिंग कॉलेज जाने पर भी यह क्रम टूटा नहीं। एक दिन बनारस के एक सीनियर शत्रुघ्न सिंह ने 'मुझे चांद चाहिए' और 'शेखर एक जीवनी' पढ़ने के लिए दी। इधर घर पर 'मृत्युंजय' और 'ययाति' यह बताकर पढ़ने को दी गईं कि घर में कभी आग लग जाए तो कुछ बचाना-चाहे न बचाना, लेकिन ये दोनों किताबें जरूर बचा लेना।

कब लगा कि आपको कथा लेखन करना है?

इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान कल्चरल फेस्टिवल के लिए 15 मिनट की स्किट लिखी, जिसे बहुत ही बढि़या रेस्पॉन्स मिला। यह लिखने के बाद पहली बार लगा कि 'यार और लिखा जाए'। अगले दो साल में चार स्किट लिखीं। लिखने में मजा आ रहा था। इंजीनियरिंग के बाद सॉफ्टवेयर की नौकरी करने का मन नहीं था और नौकरी मिल भी नहीं रही थी। उन्हीं दिनों एमबीए की तैयारी के दौरान घर के पास रहने वाले एक भैया ने किसी स्कूल का एंथम सॉन्ग लिखने के लिए मुझसे कहा। मैंने एक घंटे में लिखकर उन्हें थमा दिया। उन्होंने यह कहते हुए मुझे हजार रुपये दिए कि यह सही कीमत से बहुत कम है, लेकिन इसलिए दे रहा हूं ताकि तुम्हें यह विश्वास हो सके कि तुम लिखकर भी कमा सकते हो।

आप इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कर चुके हैं, फिर हिंदी लेखन की ओर झुकाव किस तरह हुआ?

इसकी नींव बहुत पहले ही पड़ गई थी। शुरुआती पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई। मैं अपने मोहल्ले के इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाले कई लड़कों को अचरज से देखता, जब वे बताते थे कि उनके स्कूल में हिंदी में बातचीत करने पर सजा मिलती है। मैंने उसी समय तय कर लिया था कि मैं बड़ा होकर हिंदी के लिए कुछ करूंगा। जब मुझे अवसर मिले, तो मैंने हिंदी में लिखना शुरू किया।

आपके पात्र यथार्थ से जुड़े होते हैं या काल्पनिक?

100 फीसदी यथार्थ से जुड़ी होती हैं मेरी कहानियां। इनके सभी पात्र मेरी आस-पास की जिंदगी की लाइब्रेरी से कॉपी-पेस्ट किए हुए लोग हैं।

अलग-अलग प्रोफेशन में काम करने वाले युवा इन दिनों हिंदी में खूब लेखन कर रहे हैं। इसकी कुछ खास वजह?

कुछ समय पहले तक यह माना जाता था कि अगर आपकी लिखी हुई बात को पाठक आसानी से समझ रहा है, तो इसका मतलब है कि आपने बड़ा हल्का लिखा है। अब लोगों में यह भ्रांति नहीं है। जिसे आसानी से पढ़ा और समझा जा सके, उसे ही लोग सराह रहे हैं। अलग-अलग प्रोफेशन से जुड़े लोग अपने विविध अनुभवों को आसान हिंदी में पेश कर रहे हैं, जिन्हें आम लोगों के बीच खूब पसंद किया जा रहा है। मैं खुद भी एक टेलीकॉम कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूं। घर नौकरी से ही चलता है। हालांकि मैं चाहता हूं कि पूरी तरह से अपने-आप को लेखन के लिए समर्पित कर सकूं, तभी खयाल आता है कि हर महीने घर का किराया देना है।

हिंदी में आए बदलाव को सकारात्मक मानते हैं या नकारात्मक?

इस समय नई पीढ़ी जो हिंदी लिख रही है, इसमें उर्दू, अंग्रेजी, मुंबइया, पंजाबी सब कुछ है। यह बदलाव सकारात्मक या नकारात्मक वर्गीकरण से इतर है। इस नई हिंदी का स्वागत होना चाहिए।

आपके प्रिय रचनाकार कौन हैं?

हिंदी में अज्ञेय, राही मासूम रजा, मनोहर श्याम जोशी, मंटो आदि। विदेशी लेखकों में जॉर्ज ओरविल, रेमंड कार्वर, हेमिंग्वे आदि लेखकों की कृतियों को मैंने खूब पढ़ा है। इन सभी लेखकों ने अपने समय का सच अपने समय की भाषा में लिखा। मैं भी अपने समय का सच अपने समय की भाषा में लिख पाऊं, इसकी प्रेरणा बार-बार लेता रहता हूं।

सोशल साइट्स से हिंदी कथा साहित्य को कितना फायदा मिला है?

हिंदी किताबों के मार्केट में आने से पहले प्री-बुकिंग में ही सैकड़ों कापियां बिक जाना सोशल मीडिया की वजह से ही संभव हुआ है। इनकी मार्केटिंग का पूरा तरीका ही सोशल साइट्स ने बदल दिया है।

लेखन पर शहर का कितना प्रभाव पड़ता है?

यह सौ फीसदी सच है कि शहर का माहौल और मिजाज लेखकों को लिखने के लिए रॉ मेटेरियल देता है!

(स्मिता)