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सम्मान की जंग हारे जनरल

बड़ी उम्मीद लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह को शुक्रवार को कोर्ट से गहरी निराशा हाथ लगी। कोर्ट ने उनकी जन्मतिथि के मामले में सरकार के आदेश में दखल देने से इंकार कर दिया। शीर्ष अदालत का रुख देखते हुए जनरल ने अपनी याचिका वापस ले ली। कोर्ट ने हालांकि जनरल की निष्ठा, ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता की तारीफ की और सरकार ने भी उन पर भरोसा जताया। अब तय हो गया है कि सेनाध्यक्ष को सेना रिकार्ड में अपनी जन्मतिथि 10 मई, 1950 ही माननी होगी और 31 मई, 2012 को वे सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

By Edited By: Updated: Sat, 11 Feb 2012 04:29 PM (IST)
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नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। बड़ी उम्मीद लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह को शुक्रवार को कोर्ट से गहरी निराशा हाथ लगी। कोर्ट ने उनकी जन्मतिथि के मामले में सरकार के आदेश में दखल देने से इंकार कर दिया। शीर्ष अदालत का रुख देखते हुए जनरल ने अपनी याचिका वापस ले ली। कोर्ट ने हालांकि जनरल की निष्ठा, ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता की तारीफ की और सरकार ने भी उन पर भरोसा जताया। अब तय हो गया है कि सेनाध्यक्ष को सेना रिकार्ड में अपनी जन्मतिथि 10 मई, 1950 ही माननी होगी और 31 मई, 2012 को वे सेवानिवृत्ता हो जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने जनरल की याचिका पर दो घंटे तक सुनवाई के बाद अपना आदेश सुनाया। न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा और एचएल गोखले की पीठ ने सरकार के गत वर्ष 21 जुलाई और 22 जुलाई के आदेश में दखल देने से इंकार करते हुए कहा, 'हमें सरकार के आदेश में गंभीर खामी नजर नहीं आती। जनरल ने स्वयं जन्मतिथि मामले में फैसला सरकार पर छोड़ दिया था तो फिर अब उन्हें उस पर कायम रहना चाहिए।' कोर्ट ने उम्र विवाद के इतना आगे खिंचने पर कहा, 'जनरल जैसे वरिष्ठ अधिकारी को इसे खुली बहस का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए था। बल्कि इसे शांति से निपटा लेना चाहिए था।' सुनवाई की शुरुआत में ही सरकार ने कोर्ट को बताया कि वह अदालत के पूर्व निर्देश पर 30 दिसंबर का अपना आदेश आंशिक तौर पर वापस ले रही है।

जन्मतिथि के मुद्दे पर सेनाध्यक्ष के पैरोकारों की दलीलें कठघरे में घिरी नजर आई। अदालत ने एनडीए, आइएमए से लेकर सैन्य अधिकारियों के संबंध में अति महत्वपूर्ण दस्तावेज आर्मी लिस्ट में दर्ज 10 मई, 1950 की उनकी जन्मतिथि को लेकर सेनाध्यक्ष के वकील वरिष्ठ यूयू ललित से तीखे सवाल पूछे। ललित का कहना था कि जनरल की वास्तविक जन्मतिथि 1951 है और उसके बारे में दस्तावेजी सुबूत हैं जबकि 1950 का कोई दस्तावेज नहीं है। उनका तर्क था कि संघ लोक सेवा आयोग [यूपीएससी] आवेदन पत्र के अनुरूप तथ्य बनाए रखने के लिए एनडीए और आइएमए के रिकार्ड में जन्मतिथि 1950 भरी गई थी। सही जन्मतिथि की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए बाद में उन्होंने मैट्रिक का प्रमाणपत्र भी जमा किया था।

उनकी दलीलें काटते हुए पीठ ने कहा, हम यहां जनरल की वास्तविक जन्मतिथि तय नहीं कर रहे। बल्कि हमारे सामने मुद्दा जनरल के सेवा रिकार्ड में दर्ज जन्मतिथि में बदलाव का है। सेना के मूल दस्तावेजों में उनकी जन्मतिथि 1950 ही दर्ज है। ऐसे में उन्होंने यूपीएससी रिकार्ड में जन्मतिथि बदलवाने के लिए क्या किया? कोर्ट ने कहा, हम जनरल सिंह की निष्ठा या ईमानदारी पर सवाल नहीं उठा रहे। लेकिन, सरकार के आदेश की न्यायिक समीक्षा जरूर कर रहे हैं। सेवा के मामले में नियम- कानून होते हैं और कानून के दायरे में रहकर फैसला करना होता है। हमें सरकार के आदेश में कोई कानूनी खामी नजर नहीं आती। सरकार की तरफ अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने भी कहा कि सरकार जनरल की निष्ठा या मंशा पर कोई सवाल नहीं उठा रही।

सरकार तो इस याचिका का विरोध सैद्धांतिक तौर पर कर रही है। इसका यह मतलब नहीं है कि सरकार को सेनाध्यक्ष पर भरोसा नहीं है। पीठ ने सरकार की ये दलीलें आदेश में दर्ज करने के बाद जनरल की याचिका का निपटारा कर दिया।

जनरल की ओर से हालांकि बार-बार प्रतिष्ठा की दुहाई देते हुए वास्तविक जन्मतिथि 10 मई, 1951 घोषित करने की ही अपील की गई। कहा गया कि अगर कोर्ट ऐसा घोषित कर देता है तो भी वे सेवानिवृत्तिमें इसके लाभ का दावा नहीं करेंगे और सरकारी रिकार्ड के हिसाब से मई, 2012 में ही सेवानिवृति ले लेंगे। अगर कोर्ट चाहे तो वे इस बारे में 48 घंटे में हलफनामा भी दाखिल कर सकते हैं। लेकिन, कोर्ट ने उनकी यह दलील नहीं मानी। पीठ ने कहा कि यहां मामला जन्मतिथि तय करने का है ही नहीं। बाद में कोर्ट ने उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।

क्या है विवाद

जनरल की उम्र विवाद के जन्म का कारण सेना की दो शाखाओं के रिकार्ड में उनकी अलग-अलग जन्मतिथि दर्ज होना है। एमएस शाखा में उनकी जन्मतिथि 10 मई, 1950 दर्ज है, जबकि, सेना की एजी शाखा में 10 मई, 1951। रक्षा मंत्रालय ने यूपीएससी फार्म के मुताबिक जनरल की जन्मतिथि 10 मई, 1950 सही मानी है। जनरल अपनी वास्तविक जन्मतिथि 10 मई, 1951 बताते हैं।

कोर्ट में सरकार की दलील

सरकार ने कहा कि जनरल की याचिका स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। 30 दिसंबर का आदेश वापस लेने के बाद इस मामले में सुनवाई के लिए कुछ भी बाकी नहीं बचा है। सरकार ने यह भी कहा कि जनरल ने स्वयं अपनी जन्मतिथि 1950 स्वीकार की थी और अब वे यह विवाद नहीं उठा सकते।

क्या थी जनरल की दलील

जनरल ने कहा कि उनकी वास्तविक जन्मतिथि 10 मई, 1951 है, जो उनके मैट्रिक प्रमाणपत्र व अन्य दस्तावेजों में दर्ज है। सेना में अधिकारियों का रिकार्ड रखने की जिम्मेदारी एजी शाखा की होती है। एजी शाखा में उनकी जन्मतिथि 1951 दर्ज है अत: एजी शाखा के मुताबिक ही एमएस शाखा के रिकार्ड में संशोधन किया जाए। उन्होंने यह याचिका कार्यकाल बढ़वाने के लिए नहीं दाखिल की है बल्कि प्रतिष्ठा और ईमानदारी साबित करने के लिए की है। अगर कोर्ट ने उनकी बात नहीं मानी तो उन्हें झूठा समझा जाएगा। वे 13 लाख की फौज के मुखिया हैं और ये उसकी प्रतिष्ठा से जुड़ा सवाल है।

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