सरकारी बैंकों में घटेगी सरकार की हिस्सेदारी
फंड की समस्या से जूझ रहे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में केंद्र सरकार ने अपनी हिस्सेदारी घटाकर 52 फीसद करने का फैसला किया है। अभी सरकार की हिस्सेदारी इन बैंकों में 58 फीसद से कम नहीं हो सकती। सरकारी हिस्सेदारी की सीमा घटने के बाद बैंक बाजार से ज्यादा पूंजी
By Rajesh NiranjanEdited By: Updated: Thu, 11 Dec 2014 06:34 AM (IST)
नई दिल्ली। फंड की समस्या से जूझ रहे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में केंद्र सरकार ने अपनी हिस्सेदारी घटाकर 52 फीसद करने का फैसला किया है। अभी सरकार की हिस्सेदारी इन बैंकों में 58 फीसद से कम नहीं हो सकती। सरकारी हिस्सेदारी की सीमा घटने के बाद बैंक बाजार से ज्यादा पूंजी जुटा सकेंगे।
इस पूंजी की इन्हें सख्त जरूरत है। इस पैसे का इस्तेमाल बैंक बेसिल-3 मानकों का पालन करने के लिए करेंगे। इन नियमों के मुताबिक भविष्य में वित्तीय क्षेत्र में उथल-पुथल होने पर बैंक अपने ग्राहकों व शेयरधारकों के हितों की रक्षा बेहतर तरीके से कर सकेंगे। सरकारी हिस्सेदारी कम होने के बावजूद इन बैंकों के कामकाज और इनके सरकारी स्वरूप पर कोई अंतर नहीं आएगा। सरकार की तरफ से बताया गया है कि बैंकों को चरणबद्ध तरीके हिस्सेदारी कम करने की छूट दी गई है। बाजार से बैंक 1,60,825 करोड़ रुपये जुटा सकेंगे। वहीं, केंद्र सरकार अगले चार वित्त वर्षों के दौरान बैंकों को 78,895 करोड़ रुपये उपलब्ध कराएगी। हालांकि इक्विटी बेचने की वजह से केंद्र सरकार को 34,500 करोड़ रुपये का लाभांश भी मिलेगा। बैंकों को यह भी कहा गया है कि वह ज्यादा से ज्यादा शेयर आम जनता में बेचकर पूंजी जुटाने की कोशिश करें। देश के 27 सरकारी बैंकों में से 22 बैंकों में सीधे केंद्र की हिस्सेदारी है। इन बैंकों के पास देश के कुल बैंकिंग कारोबार का 70 फीसद हिस्सा है।
सरकार के अनुमान के मुताबिक बैंकिंग से जुड़े अंतरराष्ट्रीय बेसिल-3 नियमों के आधार पर सरकारी बैंकों को अगले कुछ वर्षों के भीतर 4,19,711 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इस उद्देश्य से पिछले चार वर्षों में 58,634 करोड़ रुपये बजट से सरकार ने इन बैंको को दिया भी है। जबकि चालू वित्त वर्ष के दौरान भी 11,200 करोड़ रुपये दिए गए हैं।
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