भारतीय नौसेना की पनडुब्बी प्रोजेक्ट में भागीदारी को तैयार जर्मन फर्म
भारतीय नौसेना की पनडुब्बी परियोजना में भागीदारी के लिए जर्मनी की दिग्गज रक्षा कंपनी टीकेएमएस तैयार है। नौसेना के लिए छह पनडुब्बियां विकसित करने की 50,000 करोड़ रुपये की इस परियोजना पर जर्मन फर्म काफी समय से नजर गड़ाए बैठी है। अब वह अपनी टाइप 214 पनडुब्बी मुहैया कराने का
By Shashi Bhushan KumarEdited By: Updated: Mon, 30 Mar 2015 12:23 PM (IST)
नई दिल्ली। भारतीय नौसेना की पनडुब्बी परियोजना में भागीदारी के लिए जर्मनी की दिग्गज रक्षा कंपनी टीकेएमएस तैयार है। नौसेना के लिए छह पनडुब्बियां विकसित करने की 50,000 करोड़ रुपये की इस परियोजना पर जर्मन फर्म काफी समय से नजर गड़ाए बैठी है। अब वह अपनी टाइप 214 पनडुब्बी मुहैया कराने का प्रस्ताव रक्षा मंत्रलय को देगी।
तकनीक हस्तांतरण को भी तैयार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान पर जोर को ध्यान में रखते हुए टीकेएमएस इस पनडुब्बी की पूरी तकनीक हस्तांतरित करने को तैयार है। साथ ही इस प्रोजेक्ट के लिए गठजोड़ करने को कंपनी ने देश के प्रमुख शिपयार्डस से वार्ता भी शुरू कर दी है।जल्द जारी हो सकता है आरएफपी
थायसेन क्रप मरीन सिस्टम्स (टीकेएमएस इंडिया) के एमडी गुरनाद सोधी ने कहा कि भारतीय रक्षा मंत्रलय जल्द ही इस प्रोजेक्ट के लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) जारी कर सकता है। हम यह प्रस्ताव देने की तैयार कर रहे हैं, इसके तहत हम अपनी एचडीडब्ल्यू क्लास 214 पनडुब्बी मुहैया कराएंगे।कंपनी का दावा
कंपनी का दावा है कि यह पनडुब्बी पोतों और पनडुब्बियों के खिलाफ अभियानों, निगरानी, टोह लेने और खुफिया अभियान संचालित करने की क्षमताओं से लैस है। इसका फ्यूल सेल आधारित एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआइपी) सिस्टम बाजार में उपलब्ध सबसे बेहतरीन तकनीक पर आधारित है।लंबे समय तक समुद्र में रहेगी यह पनडुब्बी परंपरागत डीजल-इलेक्टिक पनडुब्बियों को समुद्र में अभियानों के दौरान अपनी बैटरी रिचार्ज करने के लिए हर बार चंद दिनों के अंतराल पर सतह पर आना होता है। वहीं, एआइपी सिस्टम पनडुब्बी को काफी लंबे समय तक गहरे पानी में बने रहने में मदद करता है। एआइपी के अलावा भारत अपनी नई पनडुब्बियों में उन्नत निगरानी दायरा, कांबैट मैनेजमेंट सिस्टम और बेहतर सेंसर चाहता है। प्रोजेक्ट के तहत विकसित की जाने वाली नई पनडुब्बियों में टारपीडो और मिसाइल दोनों तरह के हथियार इस्तेमाल होंगे।2008 से प्रोजेक्ट पर चल रहा काम इस प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने वर्ष 2008 में रिक्वेस्ट फॉर इन्फॉर्मेशन जारी किया था। इसके बाद से ही जर्मन कंपनी लगातार रक्षा मंत्रलय और नौसेना के संपर्क में है। सोधी ने कहा कि भारतीय नौसेना पिछले 30 साल से ज्यादा समय से हमारी ग्राहक रही है। हमारे बीच मजबूत संबंध है और हम उनकी जरूरतों के अनुरूप काम करने में पूरी तरह से सक्षम हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत गठजोड़ के लिए अभी किसी भारतीय शिपयार्ड का चयन करने के सवाल पर सोधी ने कहा कि अभी वार्ता चल रही है। कंपनी को इस संबंध में रक्षा मंत्रलय द्वारा गठित की गई विशेष समिति की रिपोर्ट का इंतजार है।
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