राजनीति से दूर होंगे सरकारी बैंक
संप्रग से विरासत में मिले बेहद खस्ताहाल सरकारी बैंकों के कामकाज में बड़े पैमाने पर बदलाव का खाका लगभग तैयार है। सब कुछ ठीक रहा तो अगले वित्त वर्ष की शुरुआत से न सिर्फ सरकारी बैंकों का कामकाज पेशेवर बनाने के लिए कुछ अहम घोषणाएं होंगी, बल्कि इनके शीर्ष पदों
By Rajesh NiranjanEdited By: Updated: Fri, 07 Nov 2014 06:24 AM (IST)
नई दिल्ली, [नितिन प्रधान/जयप्रकाश रंजन]। संप्रग से विरासत में मिले बेहद खस्ताहाल सरकारी बैंकों के कामकाज में बड़े पैमाने पर बदलाव का खाका लगभग तैयार है। सब कुछ ठीक रहा तो अगले वित्त वर्ष की शुरुआत से न सिर्फ सरकारी बैंकों का कामकाज पेशेवर बनाने के लिए कुछ अहम घोषणाएं होंगी, बल्कि इनके शीर्ष पदों पर नियुक्तियों का मौजूदा तौर-तरीका भी बदल जाएगा। मोदी सरकार इसकी ठोस व्यवस्था करने जा रही है कि सरकारी बैंकों के प्रमुखों समेत सभी शीर्ष पदों (स्वतंत्र निदेशकों सहित) में कोई राजनीति नहीं होगी।
पिछले दिनों दैनिक जागरण को दिए गए साक्षात्कार में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसके संकेत दिए थे कि जैसा वर्षों से सरकारी बैंकों में चलता रहा है वैसा अब नहीं चलेगा। इन बैंकों के कामकाज से लेकर इनकी माली हालात को सुधारने के लिए रिजर्व बैंक (आरबीआइ) और वित्त मंत्रालय दोनों अपने स्तर पर तैयारी कर रहे हैं। मंत्रालय बैंकों के शीर्ष पदों पर होने वाली नियुक्तियों को पारदर्शी बनाने के साथ ही यह नियम तय करने जा रहा है कि शीर्ष पदों पर सिर्फ पेशेवर लोग बैठें। साथ ही सरकारी बैंकों को राजनीतिक हस्तक्षेप से कैसे दूर रखा जाए, इसका कायदा कानून भी वित्त मंत्रालय बना रहा है।इसके तहत लगभग तय है कि सरकारी बैंकों में चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर (एमडी) का पद अलग-अलग होगा। साथ ही इस बात की पुख्ता व्यवस्था होगी सरकारी बैंकों के स्वतंत्र निदेशकों के पद पर कोई भी राजनीतिक पहुंच वाले व्यक्ति की नियुक्ति न हो। आरबीआइ को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे पीएसयू बैंकों के वित्तीय हालात को सुधारने के लिए कदम उठाए। इसके तहत बैंकों की बढ़ती पूंजी आवश्यकता को किस तरह से पूरी की जाए, इसका रोडमैप आरबीआइ को तैयार करना है। वैसे इस काम में केंद्र सरकार की भी भूमिका होगी। यही वजह है कि वित्त मंत्रालय ने सरकारी बैंकों में अपनी न्यूनतम हिस्सेदारी की सीमा घटाकर 52 फीसद करने का प्रस्ताव तैयार किया है। इसके अलावा आरबीआइ इन बैंकों में फंसे कर्जे (एनपीए) की बढ़ती समस्याओं पर लगाम लगाने के लिए भी कुछ नए नियम तय करने के अंतिम दौर में है।
खास तौर पर फंसे कर्ज को पुनर्गठित करने (कर्जदारों को कर्ज लौटाने की और मोहलत देने) संबंधी मौजूदा नियमों को बदलने का खाका तैयार है। इस संबंध में आरबीआइ और सरकार को इस बात की सूचना हासिल हुई है कि कई बैंक मौजूदा नियमों की आड़ में काफी गड़बड़ी कर रहे हैं। पिछले दिनों मे ऐसे ही मामले में सिंडिकेट बैंक के सीएमडी एसके जैन को निलंबित किया गया था। सूत्रों के मुताबिक बैंकों में होने वाले बड़े बदलाव में सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए भी आरबीआइ की तरफ से कई कदम उठाने की तैयारी है।
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