मोदी के पीएम बनने पर ही रहेगा बाजार में सकारात्मक माहौल
नई दिल्ली। भारत में चुनावों के बाद बहुत जल्द निवेश का सिलसिला शुरू हो जाएगा इसकी संभावना कम है। आम धारणा यह है कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बाजार और अर्थव्यवस्था को तत्काल पटरी पर ला सकती है। ऐसा दुनिया की अग्रणी वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी क्रेडिट सुइस की शोध रिपा
By Edited By: Updated: Fri, 21 Mar 2014 12:10 AM (IST)
नई दिल्ली। भारत में चुनावों के बाद बहुत जल्द निवेश का सिलसिला शुरू हो जाएगा इसकी संभावना कम है। आम धारणा यह है कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बाजार और अर्थव्यवस्था को तत्काल पटरी पर ला सकती है। ऐसा दुनिया की अग्रणी वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी क्रेडिट सुइस की शोध रिपोर्ट में कहा गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, 'हम बहुमत की इस धारणा से असहमत हैं कि चुनाव निवेश के सिलसिले को फिर से संभाल सकते हैं। केवल एक चौथाई परियोजनाएं ही केंद्र सरकार की फंसी हुई हैं। इनमें से दो तिहाई ऊर्जा और स्टील से जुड़ी हैं। दोनों की ही स्थिति ठीक नहीं है। इस कंपनी के मुताबिक, चुनावों के बाद केवल चार स्थितियां हो सकती हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दो-तीन सहयोगियों के साथ राजग की सरकार, उनके नेतृत्व में पांच-छह सहयोगी दलों के साथ राजग की सरकार, राजग के किसी दूसरे नेता के नेतृत्व में आठ-दस सहयोगी दलों की सरकार या कांग्रेस के समर्थन से तीसरे मोर्चे की सरकार। रिपोर्ट में कहा गया है कि पहली स्थिति में बाजार में दो-तीन महीने तक सुधार जारी रहने की उम्मीद है जब तक बाजार में भाग लेने वाले तेजी से बदलाव लाने में सरकार की अक्षमता को महसूस नहीं और उनके आशावादी नजरिया को धक्का नहीं लगे। दूसरी स्थिति में अस्थाई तौर पर बाजार में शांति रहेगी जब तक चुनाव के बाद गठबंधन नहीं हो जाता और मोदी को सत्ता सौंप नहीं दी जाती बाजार की मनोदशा सकारात्मक रहने की उम्मीद है। राजग के किसी अन्य नेता के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने की स्थिति में बाजार का रुख नकारात्मक रहेगा और सरकार संभवत: अस्थाई रहेगी। चौथी स्थिति में भारत की रेटिंग कम होने की आशंका रहेगी। इस संस्था के अनुसार नई सरकार ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र निवेश को दोबारा आकर्षित इस वजह से नहीं कर पाएगी कि ऊर्जा के वितरण प्रणाली में सुधार नहीं हो पाया है और कोयला उत्पादन की वृद्धि दर बहुत धीमी है।