नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक तंत्र बनाने की बात कांग्रेस कर तो रही है, लेकिन काले धन पर लगाम लगाने को लेकर संप्रग-दो का रिकॉर्ड बहुत ही खराब रहा है। पिछले पांच वर्षो से कभी भाजपा तो कभी बाबा रामदेव की वजह से काले धन का मुद्दा छाया रहा, लेकिन इसके खिलाफ कार्रवाई को लेकर हालात वही ढाक के तीन पात वाले रहे।
By Edited By: Updated: Sat, 11 Jan 2014 09:03 PM (IST)
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक तंत्र बनाने की बात कांग्रेस कर तो रही है, लेकिन काले धन पर लगाम लगाने को लेकर संप्रग-दो का रिकॉर्ड बहुत ही खराब रहा है। पिछले पांच वर्षो से कभी भाजपा तो कभी बाबा रामदेव की वजह से काले धन का मुद्दा छाया रहा, लेकिन इसके खिलाफ कार्रवाई को लेकर हालात वही ढाक के तीन पात वाले रहे। ऐसे में मनमोहन सरकार ने घरेलू स्तर पर काली कमाई को खत्म करने और विदेश में जमा भारतीयों के काले धन को स्वदेश लाने का जिम्मा अब अगली सरकार पर ही छोड़ दिया है।
पढ़ें:
एक टैक्स से बढ़ेगा तीन गुणा राजस्व वित्त मंत्रालय के अधिकारी भी मानते हैं कि काले धन को लेकर कानूनी बदलाव, विदेशी सरकारों के साथ सूचनाओं के आदान-प्रदान संबंधी समझौते वगैरह करने का काम अब नई सरकार को ही करना होगा। संप्रग ने काले धन पर अंकुश लगाने के मकसद से वर्ष 2009 के बाद से 46 देशों के साथ कर संबंधी समझौते करने के लिए बातचीत शुरू की थी। अभी तक सिर्फ नौ देशों के साथ वार्ता मुकाम तक पहुंच पाई है, जबकि चार के साथ यह अंतिम मुकाम पर है। इस तरह से अगली जो सरकार बनेगी, उसे 36 देशों के साथ बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाना होगा। इन देशों के साथ समझौते के बाद ही विदेश में जमा भारतीयों के काले धन को स्वदेश लाने में कुछ सफलता मिलेगी। इसी तरह से पिछले दो वर्षो के दौरान दो बार बाहरी एजेंसियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काली कमाई बाहर रखने वालों लोगों के नाम प्रकाशित किए। पहली बार ब्रिटेन के बैंक एचएसबीसी ने सैकड़ों ऐसे लोगों के नाम बताए, जो अपने देश से बाहर काला धन रखते हैं। इनमें कई भारतीय थे। वित्त मंत्रालय ने वर्ष 2012 में इन नामों के खिलाफ जांच भी शुरू की, लेकिन नतीजा कुछ खास नहीं रहा। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय खोजी पत्रकारों के एक समूह ने ऐसे ही लोगों के नाम प्रकाशित किए थे, जिनमें 600 से ज्यादा भारतीय शामिल थे। वित्त मंत्रालय ने इनके खिलाफ भी जांच शुरू की थी। इन दोनों मामलों में जांच प्रक्रिया को अगली सरकार को ही अंजाम तक पहुंचाना होगा।
काले धन के खात्मे पर मनमोहन सरकार की तरफ से गठित समितियों की रिपोर्ट पर अमल की जिम्मेदारी भी अगली सरकार को उठानी होगी। केंद्र ने काले धन के मकड़जाल पर अंकुश के लिए तीन एजेंसियों से रिपोर्ट तैयार करवाई थी। मगर इस रिपोर्ट पर सरकार चुप्पी साध कर बैठ गई है। इनमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी , नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट (एनआइएफएम) और नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च यानी एनसीएईआर शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक इन एजेंसियों ने रीयल एस्टेट और आभूषण कारोबार को घरेलू स्तर पर काले धन का प्रमुख स्त्रोत बताया है। साथ ही इन पर कार्रवाई करने का तरीका भी बताया है।