दस साल में भी नहीं बना महंगाई रोकने का तंत्र
नई दिल्ली [नितिन प्रधान]। चुनाव से ठीक पहले महंगाई रोकने के उपाय करती दिख रही संप्रग सरकार अपने दस साल के शासन में इसे रोकने के तंत्र की नींव भी नहीं रख पाई। सरकारी तंत्र की बेहाली का आलम यह है कि खाद्य उत्पादों की महंगाई इस दौरान चरम पर पहुंच गई। बाजार का तंत्र इतना बिगड़ गया है कि न तो मांग बढ़ने का फायदा किसानों को मिल रहा ह
By Edited By: Updated: Sun, 26 Jan 2014 07:22 PM (IST)
नई दिल्ली [नितिन प्रधान]। चुनाव से ठीक पहले महंगाई रोकने के उपाय करती दिख रही संप्रग सरकार अपने दस साल के शासन में इसे रोकने के तंत्र की नींव भी नहीं रख पाई। सरकारी तंत्र की बेहाली का आलम यह है कि खाद्य उत्पादों की महंगाई इस दौरान चरम पर पहुंच गई। बाजार का तंत्र इतना बिगड़ गया है कि न तो मांग बढ़ने का फायदा किसानों को मिल रहा है और न ही रिकॉर्ड अनाज पैदावार का लाभ जनता को मिल रहा है।
महंगाई रोकने की विफल कोशिशों की विवेचना सरकार की खुद की एक रिपोर्ट में की गई है। योजना आयोग की 'आपूर्ति श्रृंखला में निवेश' विषय पर एक हालिया रिपोर्ट यह स्वीकार करती है कि आपूर्ति श्रृंखला के बुनियादी ढांचे की अकुशलता महंगाई के बढ़ने की प्रमुख वजह रही है। मजे की बात है कि चुनाव से ठीक पहले आई इस रिपोर्ट में योजना आयोग की कमेटी ने अब इस ढांचे को दुरुस्त करने संबंधी सिफारिश की है। योजना आयोग के सदस्य सौमित्र चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति ने माना है कि सब्जियों और फलों की थोक व खुदरा कीमतों में जमीन आसमान का अंतर है। बड़ी मंडियों से फलों और सब्जियों के दाम खुदरा बाजार तक पहुंचते पहुंचते 25 से 40 फीसद बढ़ जाते हैं। इस अंतर को देश में छोटी छोटी मंडियां विकसित कर आसानी से कम किया जा सकता है। पिछले दो तीन साल में इस बात की पुरजोर मांग होती रही है कि बड़ी मंडियों में खाद्यान्न और फल सब्जियों के कारोबार को और उदार बनाया जाए ताकि प्रतिस्पर्धा पैदा कर उनकी कीमतों को नियंत्रित किया जा सके। मगर संप्रग के मुख्य घटक कांग्रेस को इसकी याद चुनाव से ठीक पहले आई। वह भी तब जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सभी कांग्रेस शासित राज्यों से मंडी कानून में बदलाव करने को कहा। चौधरी समिति की रिपोर्ट के मुताबिक स्थितियों में बदलाव नहीं हुआ तो किसानों को उनकी पैदावार का सही भाव आगे भी मिलना मुश्किल है। चूंकि देश में छोटी मंडियों की संख्या अभी काफी सीमित है। लिहाजा किसानों को अपनी पैदावार बड़ी मंडियों में ही छोड़नी पड़ती है। इसे बड़े एजेंट देश के अन्य भागों तक ले जाते हैं। इसके चलते खुदरा बाजार में पहुंचते पहुंचते दाम बढ़ जाते हैं।
संप्रग सरकार के शासन में खाद्य उत्पादों की महंगाई दर रिकॉर्ड 18 फीसद को पार कर गई थी। यही वजह है कि रिजर्व बैंक के लिए महंगाई अभी भी चिंता का कारण है। देश में कोल्ड स्टोरेज के अभाव के चलते पैदावार का बड़ा हिस्सा बेकार चला जाता है। इसलिए चौधरी समिति ने भी इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने की सिफारिश की है।